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    सारण में मडुआ की फसल पर मेहरबान मौसम, पैदावार की प्रबल संभावना, किसान खुश

    Updated: Sat, 06 Sep 2025 01:35 PM (IST)

    जलालपुर प्रखंड में मडुआ की फसल ने इस साल बेहतर प्रदर्शन किया है। किसानों की मेहनत और मौसम के साथ ने मोटे अनाज की खेती को सफल बनाया है। प्रत्येक पंचायत में लगभग 22 एकड़ में मडुआ की खेती हुई है। कृषि विभाग द्वारा बीज वितरण में देरी हुई लेकिन किसानों ने मोटे अनाज के महत्व को समझा है।

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    मडुआ की फसल पर मेहरबान मौसम, पैदावार की प्रबल संभावना

    नागेंद्र सिंह, जलालपुर (सारण)। जलालपुर प्रखंड में इस वर्ष मडुआ की फसल ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। खेतों में लहलहाते मडुआ के पौधे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यदि मौसम का साथ मिले और किसानों को थोड़ा सहयोग समय पर मिल जाए, तो मोटे अनाज भी खेती और सेहत दोनों में क्रांति ला सकते हैं। प्रखंड के प्रत्येक पंचायत में करीब 22 एकड़ में इसकी खेती की गई है। इस प्रखंड में 15 पंचायत है।

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    विश्वामित्री फसलों की पुनः वापसी

    माना जाता है कि मडुआ, सांवा, कोदो, टंगुनी, बाजरा और मक्का जैसी फसलें महर्षि विश्वामित्र द्वारा सृजित ''''विश्वामित्री अन्न'''' हैं। धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब महर्षि विश्वामित्र ने दूसरी सृष्टि की रचना का संकल्प लिया, तो सर्वप्रथम इन पोषक अन्नों का आविष्कार किया। आज ये फसलें पुनः कृषि, स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रही हैं।

    सरकारी देरी से चूका अवसर

    मडुआ की बुआई का समय 15 जून तक और रोपनी जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरा हो जाता है। इस बार भी किसान मौसम के अनुकूल अपने कार्य में सफल रहे। लेकिन कृषि विभाग द्वारा मडुआ बीज का वितरण तब किया गया, जब खेतों में फसल फूल और दाने पकड़ चुकी थी। प्रत्येक पंचायत को 40 किलो बीज मिला, परंतु समय पर वितरण न होने से यह बीज गोदामों में ही रह गया। यह एक गंभीर चूक है, जो यदि सुधारी जाती, तो और अधिक क्षेत्रफल में खेती हो सकती थी।

    मोदी का मोटा अनाज मिशन

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देशवासियों से मोटे अनाजों को अपनाने की अपील की है। उन्होंने मडुआ, कोदो, सांवा और मक्का जैसे फाइबरयुक्त अन्नों को मोटापा, मधुमेह और कुपोषण जैसी बीमारियों से लड़ने का रामबाण बताया है।

    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मडुआ का महत्व

    कृषि विज्ञान केन्द्र मांझी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जीतेंद्र चंद्र चंदोला के अनुसार मडुआ में कैल्शियम, आयरन और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए एक उपयोगी फसल है। उन्होंने बताया कि मडुआ की उन्नत किस्म ए-404 किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है, जिससे प्रति हेक्टेयर 20 से 22 क्विंटल तक उत्पादन संभव है।

    कम लागत में ज्यादा लाभ

    मडुआ की खेती में सिंचाई और उर्वरक की आवश्यकता बहुत कम होती है। यह सूखे क्षेत्रों के लिए आदर्श फसल है। यही कारण है कि बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में मडुआ के आटे की कीमत 60 से 70 रुपये प्रति किलो है, जबकि पितृपक्ष व जितिया जैसे त्योहारों पर यह 150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है।

    सेहत के लिए अमृत तुल्य

    प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. आरसी ठाकुर और महिला चिकित्सक डा विमला शाही का कहना है कि मडुआ में भरपूर मात्रा में कैल्शियम होता है, जिससे यह हड्डियों को मजबूत बनाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रसव के बाद महिलाओं को मडुआ की रोटी खिलाने की परंपरा है। महिलाओं का मानना है कि इससे "कोठ" यानी बच्चेदानी को मजबूती मिलती है।

    इस वर्ष मडुआ की खेती सम्होता, मंझवलिया, रेवाड़ी, रामनगर, कोपा, अनवल, पीयानो, किशुनपुर, कुमना और नवादा जैसे गांवों में बड़े पैमाने पर की गई है। हर वर्ष इसके क्षेत्रफल में वृद्धि हो रही है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है। मडुआ केवल एक अनाज नहीं, बल्कि कुपोषण, गरीबी और कृषि संकट से लड़ने का एक हथियार बनकर उभर रहा है। आवश्यकता है तो बस समय पर सरकारी मदद, बीज वितरण और मार्केट सपोर्ट की। यदि नीति नियंता सच में ‘स्वस्थ भारत’ और ‘सशक्त किसान’ की कल्पना को साकार करना चाहते हैं, तो मडुआ जैसे पारंपरिक और पोषक अनाजों को प्राथमिकता देनी होगी।

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