By arbind kumarEdited By: Aysha Sheikh
Updated: Sat, 18 Nov 2023 03:30 PM (IST)
Chhath Prasad बिहार में छठ से जुड़ी कई कहानियां हैं। इनमें से ही एक कहानी शेखपुरा के दाल कुएं की है जो 500 वर्ष पुराना है। इस कुएं के पानी से छठ का प्रसाद बनाया जाता है। शेखपुरा के दाल कुएं का निर्माण शेरशाह ने 1534 ई. में कराया था। यह कुआं हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का भी प्रतीक बना हुआ है।
अरविंद कुमार, शेखपुरा। काल के प्रवाह में कई परंपरा बह गई और कई नई परंपराओं ने जन्म लिया, मगर आस्था से जुड़े छठ महापर्व को लेकर अभी भी अधिकांश लोग परंपराओं से बंधे रहकर निष्ठा तथा आदर के साथ उसका निर्वहन कर रहे हैं। छठ से जुड़ी इन्हीं परंपराओं में 500 सौ वर्ष पुराने शेखपुरा के दाल कुआं की महत्ता अभी तक बनी हुई है।
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शेखपुरा के अतीत को अपने सीने में दबाए और बदलाव के इस मूक साक्षी दाल कुआं से अब कोई घरों में पीने का पानी नहीं जाता है, कारण शहर के लगभग सभी घरों नल का पानी पहुंच रहा है। मगर आस्था और परंपरा से जुड़े छठ महापर्व में खरना का प्रसाद बनाने के लिए सैकड़ों घरों में इसी पौराणिक दाल कुआं का पानी का प्रयोग किया जाता है।
कुएं के पास लगती है लोगों की भीड़
पूरब-मध्य में खांडपर स्थित इस कुएं पर छठ के दूसरे दिन आज सुबह से दोपहर बाद तक हजारों की भीड़ लगती है, जो खरना का प्रसाद बनाने के लिए इसी कुएं का पानी ले जाते हैं। शहर के वृद्ध उमा शंकर प्रसाद बताते हैं छठ को लेकर दाल कुआं के पानी का महत्व आस्था से जुड़ा हुआ है।
दादा-परदादा के काल से लोग इस कुएं का पानी का प्रयोग खरना का प्रसाद बनाने में करते हैं। अमीर-गरीब और आम से लेकर खास परिवारों के लोग भी आज खरना के दिन इसी कुएं से पानी ले जाते हैं। घरों में नल-बोरिंग की सुविधा के बाबजूद लोग इस परंपरा से जुड़े हैं।
शेरशाह ने खोदवाया था कुआं
शेखपुरा के दाल कुआं का निर्माण शेरशाह ने 1534 ईस्वी में कराया था। इतिहास के जानकार प्रो लालमणि विक्रांत ने बताया 1903 में प्रकाशित मुंगेर जिला के गज़ट में शेखपुरा के दाल कुआं का अधिकारिक उल्लेख है। 1534 ईस्वी में बना यह कुआं अभी तक विद्यमान है तथा लोगों की प्यास बुझाने के साथ छठ जैसे आस्था वाले पर्व में परंपरा निभाने का भी साधन साबित हो रहा है।
प्रो विक्रांत ने जिला पदाधिकारी से इस पौराणिक और ऐतिहासिक कुएं को संरक्षित करने की मांग की है। विक्रांत कहते हैं छठ जैसे पवित्र पर्व में अफगान शासक द्वारा बनवाया यह कुआं हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का भी प्रतीक बना हुआ है।
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