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    सफा नदी पर आज भी पुल का इंतजार, लोग भुगत रहे कालापानी की सजा

    Updated: Thu, 16 Oct 2025 03:11 PM (IST)

    सुपौल के परसागढ़ी उत्तर पंचायत का वार्ड नंबर-3, फसियाकोठी, आज भी विकास से वंचित है। यहां बहने वाली सफा नदी लोगों के लिए कालापानी की सजा जैसी है। बरसात में स्थिति और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। पुल के अभाव में शिक्षा, स्वास्थ्य और दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित है। निवासियों को अब भी पुल का इंतजार है।

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    सफा नदी पर आज भी पुल का इंतजार

    संवाद सूत्र, जदिया (सुपौल)। परसागढ़ी उत्तर पंचायत का वार्ड नंबर-3, जिसे आज स्थानीय लोग फसियाकोठी के नाम से जानते हैं, कभी अंग्रेजी हुकूमत के जमाने में फांसी घर के रूप में कुख्यात था। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी यहां के निवासियों की ज़िंदगी किसी आजीवन सजा से कम नहीं है। 

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    इस इलाके से होकर सफा नाम की एक छोटी नदी गुजरती है, जो यहां के निवासियों के लिए जीवन रेखा नहीं, बल्कि कालापानी की सजा जैसी बनी हुई है। नदी के दोनों किनारों पर लोग बसे हैं, पर पश्चिमी तट पर रहने वाले दर्जनों परिवारों के लिए यह नदी एक स्थायी बाधा बन गई है। 

    राशन-पानी का इंतजाम कर लेने को मजबूर

    खासकर बरसात के दिनों में जब नदी उफान पर होती है, तब लोगों का घर से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। बरसात के समय यहां के लोग सूरज ढलने से पहले ही राशन-पानी का इंतजाम कर लेने को मजबूर होते हैं। 

    यहां न तो कोई पक्का रास्ता है और न ही पुल की कोई व्यवस्था ही है। स्कूल जाने वाले बच्चे, बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने की ज़रूरत हो या फिर दैनिक ज़रूरतें हर कदम पर यह नदी इनकी राह रोकती है।

    लोगों की किस्मत नहीं बदली

    स्थानीय लोगों ने कई बार जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक स्तर तक अपनी समस्याएं रखीं, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं, समाधान नहीं। कई चुनाव आए और गए, लेकिन फसियाकोठी के लोगों की किस्मत नहीं बदली। यहां के लोग वर्षों से नदी पर एक पुल की मांग कर रहे हैं। 

    उनका कहना है कि यह कोई राजनीतिक मांग नहीं, बल्कि एक बुनियादी ज़रूरत है, जिससे बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और बुजुर्गों की स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित हो सके। 

    21वीं सदी के भारत में जहां चंद्रयान चांद पर पहुंच चुका है, वहीं सुपौल के इस कोने में आज भी लोग नदी पार करके ज़िंदगी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या सरकार और प्रशासन इन आवाज़ों को सुनेगा।