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    Bihar Election 2025: उम्मीदवार चयन में जातीय समीकरण का फार्मूला हावी, थोड़ी सी चूक में हो सकता है नुकसान

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 09:40 AM (IST)

    राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार चयन में जातीय समीकरणों को महत्व दिया है। चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टियां जातीय समीकरणों को प्राथमिकता दे रही हैं। उम्मीदवारों को टिकट देते समय उनकी जाति और समुदाय को ध्यान में रखा जा रहा है। विभिन्न पार्टियां अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली जातियों के उम्मीदवारों को चुन रही हैं। जातीय समीकरणों के आधार पर उम्मीदवार चयन का सीधा असर चुनाव परिणामों पर देखने को मिल सकता है।

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    मनोज मिश्र, बेतिया। विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित होते ही जिले की सियासत में जातीय समीकरण एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है। जिले के नौ विधानसभा क्षेत्र- बेतिया, नौतन, चनपटिया, सिकटा, नरकटियागंज, बगहा, वाल्मीकि नगर, लौरिया और रामनगर-में टिकट वितरण से पहले ही सभी प्रमुख दल जातिगत संतुलन साधने में जुट गए हैं।

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    हालांकि अभी किसी दल ने टिकट का ऐलान नहीं किया है, लेकिन टिकट वितरण से पहले जातीय समीकरण को ठोक बजाकर जीत की राह आसान बनाने की कवायत पर मंथन शुरू हो गया है। जिले की सामाजिक संरचना काफी विविध है। यहां भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, यादव, कुर्मी, मुस्लिम, दलित और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका में है।

    लगभग हर सीट पर जाति आधारित वोटिंग पैटर्न पिछले चुनावों में साफ दिखा है। यही कारण है कि दल अपने पुराने समीकरणों को साधते हुए नए सामाजिक गठजोड़ की तलाश में हैं। एक बड़े राजनीतिक दल के पूर्व जिलाध्यक्ष ने कहा कि जिले के हर सीट पर जातीय समीकरण काफी अहम है।

    जातिगत ताना-बाना को नजर अंदाज करना किसी को भी महंगा पड़ सकता है। थोड़ी कसी चूक से बेड़ा गर्क होने का डर बना रहता है। इस कारण सभी राजनीतिक दल टिकट बंटवारे में इसका विशेष ध्यान रखते हैं।

    अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग जाति का प्रभाव

    जिले के सभी नौ विधानसभा सीटों पर अलग-अलग जाति निर्णायक भूमिका में है। बेतिया सीट पर पारंपरिक रूप से ब्राह्मण, राजपूत और बनिया मतदाता असर रखते हैं, जबकि शहर से सटे ग्रामीण इलाकों में यादव और अति पिछड़ा वर्ग भी संख्या में मजबूत हैं।

    राजनीतिक पर्यवेक्षक जितेंद्र तिवारी बताते हैं, बेतिया में कोई भी दल अकेले जातीय समीकरण के भरोसे नहीं जीत सकता, यहां सर्वसमावेशी उम्मीदवार ही टिकता है। नौतन और सिकटा में यादव, मुस्लिम और दलित वोट निर्णायक रहे हैं। यहां परंपरागत रूप से कांग्रेस और वाम दलों का प्रभाव रहा। लेकिन पिछले दो चुनावों में एनडीए ने जातीय समीकरण बदल दिए।

    सिकटा के स्थानीय नागरिक सुरेश प्रसाद कहते हैं, यहां का मतदाता जाति को मानता है, पर उम्मीदवार की पहुंच और व्यवहार भी देखता है। चनपटिया और नरकटियागंज क्षेत्रों में ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ, मुसलमान, राजपूत और कुर्मी समुदाय की भूमिका अहम है।

    यही वजह है कि दल इन सीटों पर उम्मीदवार चयन में बड़ी सावधानी बरत रहे हैं। एक स्थानीय विश्लेषक का कहना है कि चनपटिया में जाति समीकरण के साथ-साथ व्यक्तिगत छवि और परिवार की साख भी वोटिंग को प्रभावित करती है।

    वाल्मीकि नगर और बगहा में थारू जनजाति और मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं, जिससे इन सीटों पर जातीय समीकरण पूरी तरह अलग तरह का स्वरूप लेता है। यहां जनजातीय मतदाताओं की एकजुटता अक्सर परिणाम तय करती है।

    जाति नहीं है जीत की गारंटी

    राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जिले में इस बार कोई भी दल सिर्फ जातीय आधार पर जीत की गारंटी नहीं ले सकता। चुनावी हवा इस बार काम बनाम जात की कसौटी पर भी परखी जा रही है। फिलहाल सभी दल टिकट वितरण में जातीय संतुलन बनाकर आगे बढ़ना चाहते हैं। क्योंकि यहां हर विधानसभा क्षेत्र का समीकरण अलग है और थोड़ी-सी चूक पूरे गणित को पलट सकती है।