अफगानिस्तान को मोहरा बना पाकिस्तान रच रहा बड़ी साजिश! भारत भी तैयार, ऐसे देगा मुंह तोड़ जवाब
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाकर CPEC-II के रूप में लॉन्च करने की तैयारी है। CPEC-II में कृषि औद्योगिक क्षेत्र खनन डिजिटल अर्थव्यवस्था और ग्रीन एनर्जी शामिल होंगे। बीजिंग के लिए अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों तक पहुंचना और तालिबान शासन पर आर्थिक पकड़ बनाना है। पाकिस्तान खुद को अफगानिस्तान का आर्थिक चेहरे के रूप में दिखाना चाहता है।

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की हालिया यात्रा सिर्फ कूटनीतिक घटना नहीं बल्कि एक बड़े आर्थिक खेल की तरफ इशारा है। बीजिंग अब चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाकर इसे CPEC-II के रूप में लॉन्च करने की तैयारी में है। तो क्या यह कदम दक्षिण एशिया की राजनीतिक तस्वीर बदलेगा। साथ ही क्या इससे व्यापार, निवेश और संसाधनों में खींचतान होगी? चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं...
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CPEC-II निवेश का नया चेहरा
CPEC का पहला चरण मुख्य रूप से पाकिस्तान में सड़कें, पावर प्रोजेक्ट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पर केंद्रित था। लेकिन CPEC-II इससे कहीं बड़ा और व्यापक होगा। इसमें कृषि, औद्योगिक क्षेत्र (SEZs), खनन, डिजिटल अर्थव्यवस्था और ग्रीन एनर्जी शामिल होंगे।
बीजिंग के लिए अफगानिस्तान को इसमें जोड़ने का सीधा मतलब है एक ओर अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों (लिथियम, तांबा, रेयर अर्थ मिनरल्स) तक पहुंच और दूसरी ओर तालिबान शासन पर आर्थिक पकड़।
पाकिस्तान की आर्थिक रणनीति: कैसे बना रहा अफगानिस्तान को मोहरा
पाकिस्तान खुद को अफगानिस्तान का आर्थिक चेहरे के रूप में दिखाना चाहता है। शहबाज शरीफ की अगस्त 2025 की चीन यात्रा के दौरान CPEC-II का औपचारिक शुभारंभ होगा। पाकिस्तान उम्मीद कर रहा है कि इससे नए निवेश, रोजगार और औद्योगिक विकास को गति मिलेगी। लेकिन CPEC-I का अनुभव बताता है कि भारी कर्ज़, देरी और सुरक्षा खतरों से लाभ सीमित ही मिला।
अफगानिस्तान के लिए निवेश या हो सकता है कर्ज का जाल?
तालिबान शासन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक वैधता पाने के लिए बेताब है। चीन इस मौके को पकड़कर उन्हें CPEC-II में जोड़ना चाहता है। सवाल यह है कि क्या अफगानिस्तान को वास्तव में निवेश और रोजगार मिलेगा या वह पाकिस्तान की तरह कर्ज़ के जाल में फँस जाएगा?
इसी बीच अमेरिका भी पाकिस्तान में रुचि दिखा रहा है। खासकर बेलुचिस्तान के रेयर अर्थ मिनरल्स और अफगानिस्तान की खनिज संपदा वाशिंगटन के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। ऐसे में पाकिस्तान दोनों महाशक्तियों अमेरिका और चीन को साधने की कोशिश कर रहा है।
भारत के लिए व्यापारिक चुनौती
भारत ने अफगानिस्तान में अब तक सड़कें, स्कूल और डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में निवेश किया है। लेकिन यदि अफगानिस्तान CPEC-II का हिस्सा बनता है तो भारत का आर्थिक प्रभाव कमजोर हो सकता है। खनिजों पर चीन को सीधी पहुंच मिलेगी। इसके अलावा ट्रेड रूट्स पर नियंत्रण होगा पाकिस्तान और अफगानिस्तान मिलकर भारत को साइडलाइन कर सकते हैं।
भारत इससे कैसे निपट सकता है?
भारत को चाबहार पोर्ट (ईरान) और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) को और मजबूत करना होगा ताकि अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुँच बनाए रख सके। मध्य एशियाई देशों (उज़्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान) के साथ सीधे व्यापारिक समझौते भारत के लिए अहम होंगे।
भारत को लिथियम और रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए ऑस्ट्रेलिया, चिली, अर्जेंटीना और अफ्रीकी देशों में साझेदारियां गहरी करनी होंगी। घरेलू खनिज खोज (जैसे जम्मू-कश्मीर में पाए गए लिथियम भंडार) को भी तेजी से विकसित करना होगा।
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