चीन का आर्थिक विकल्प था भारत, ट्रंप ने... अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने सुनाई खरी-खरी
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ (Trump tariffs India) ने भारत को आर्थिक विकल्प बनाने के प्रयासों को झटका दिया है। चीन प्लस वन रणनीति (China plus one strategy) पर पानी फिरता दिख रहा है क्योंकि अमेरिकी कंपनियों ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत में निवेश किया था।

नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों (US China trade war) में बड़ी दरार डाल दी है। इस कदम ने उन भारी निवेशों को झटका दिया है, जो अमेरिकी कंपनियों ने चीन पर निर्भरता घटाने और भारत को एक आर्थिक विकल्प केंद्र बनाने के लिए किए थे।
भारत ने पिछले कुछ सालों में खुद को दुनिया के सामने चीन के विकल्प के रूप में पेश करने के लिए बड़ी मेहनत की थी। यह प्रयास “चीन प्लस वन” रणनीति का हिस्सा था, जिसे अंतरराष्ट्रीय कारोबारी जगत ने अपनाना शुरू कर दिया था। लेकिन ट्रंप सरकार के अचानक उठाए गए कदम से यह महत्वाकांक्षा धूमिल होती दिख रही है।
नरेंद्र मोदी की सात साल बाद चीन की यात्रा
टैरिफ लागू होने के कुछ ही दिनों में भारतीय उद्योग और अमेरिकी साझेदार अब तक नई परिस्थितियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात साल बाद चीन यात्रा भी (India China relations) इसी पृष्ठभूमि में हुई, जिसने दुनिया का ध्यान खींचा।
भारत के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में तेजी लाना केवल वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुद्दा नहीं, बल्कि घरेलू स्तर पर युवाओं के रोजगार जैसे बड़े सवालों का समाधान भी माना जाता रहा है। लेकिन अमेरिकी समर्थन के बिना यह रास्ता और कठिन होता दिख रहा है। वहीं, कंपनियां अब वियतनाम या मेक्सिको जैसे देशों की ओर रुख कर सकती हैं, जहां टैरिफ कम हैं।
भारतीय अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि यह “ट्रंप झटका” निर्यात वृद्धि को रोक देगा और चीन प्लस वन से जुड़े निवेश को नुकसान पहुंचाएगा।
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भारत का लक्ष्य आने वाले सालों में दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होना है। फिलहाल यह पांचवें स्थान पर है और जल्द जापान को पीछे छोड़ सकता है। लेकिन अगर अमेरिका मदद नहीं करता और उल्टा बाधा डालता है, तो भारत के पास बीजिंग के साथ रिश्ते मजबूत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
भारत-चीन संबंध की बात करें तो 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प से लेकर चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध तक, भारत ने चीन पर सख्ती दिखाई है। वहीं, चीन ने भारत की रेयर एलिमेंट और तकनीक तक पहुंच को सीमित किया है।
भारत को विदेशी निवेश और बाजार की जरूरत
इसके बावजूद, मौजूदा हालात में भारत को विदेशी निवेश और बाजार की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत चीन के लिए अपने दरवाजे खोलता है, तो चीन भी सहयोग के कुछ रास्ते आसान कर सकता है।
भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अमेरिका और चीन, दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन कैसे साधे। अमेरिका के टैरिफ कदम ने निश्चित ही भारत की रणनीति को बड़ा झटका दिया है, लेकिन अब नजरें इस पर हैं कि मोदी सरकार चीन के साथ आर्थिक मोर्चे पर किस हद तक आगे बढ़ती है।
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