Father Property Rights: बेटे का पिता के घर में नहीं है कोई अधिकार, कोर्ट ने अपने फैसला में क्या कहा?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि पिता की स्वयं-अर्जित संपत्ति पर बालिग बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। यदि पिता अनुमति वापस लेते हैं, तो बेटे को ...और पढ़ें

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि पिता की स्वयं-अर्जित (self-acquired) संपत्ति पर बालिग बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। (सोर्स- AI Image)
नई दिल्ली। पापा की संपत्ति को लेकर आए दिन कोर्ट में मामले आते रहते हैं। इस बीच राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि पिता की स्वयं-अर्जित (self-acquired) संपत्ति पर बालिग बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।
यदि पिता अपने वयस्क बेटे को घर में रहने की अनुमति वापस ले लेते हैं, तो बेटा कानूनी तौर पर उस घर में रहने का हक नहीं मांग सकता। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें पिता और बेटे के बीच पांच वर्षों से प्रॉपर्टी विवाद चल रहा था।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद सवाई माधोपुर जिले के एक 90×112 फीट के प्लॉट से जुड़ा है, जिसे 1974 में नीलामी से खरीदा गया था। बाद में पिता, श्री खत्री, ने अपने हिस्से पर घर बनाया और बेटे को विवाह के बाद घर के एक हिस्से में रहने की अनुमति दे दी। समय बीतने के साथ बेटे के व्यवहार से परेशान पिता ने 2018 में नोटिस भेजकर यह अनुमति वापस ले ली और बेटे से घर खाली करने और 15,000 रुपये हर महीने वहां रहने का रेंट देने की मांग की।
बेटे ने दावा किया कि यह संपत्ति HUF (हिंदू अविभाजित परिवार) की है और वह इसका सह-अधिकार (Co-Parcener) रखता है। उसने यह भी कहा कि घर का हिस्सा मौखिक रूप से उससे साझा किया गया था। लेकिन अदालतों में वह अपने दावों को साबित करने के लिए कोई पक्का दस्तावेज पेश नहीं कर पाया।
कोर्ट ने क्या कहा?
ट्रायल कोर्ट और फर्स्ट अपील कोर्ट दोनों ने माना कि बेटे की मौजूदगी घर में किसी कानूनी अधिकार से नहीं बल्कि सिर्फ पिता की अनुमति से थी। हाईकोर्ट ने भी यही कहा कि यदि संपत्ति स्वयं-अर्जित है, तो पिता उसका पूरी तरह मालिक है।
वयस्क बेटा केवल प्रेम और पारिवारिक भावना के तहत घर में रहता है, इससे उसके अधिकार पैदा नहीं होते। पिता अनुमति वापस ले ले, तो बेटे को घर खाली करना ही होगा।
कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि लाइसेंस का मतलब सिर्फ पैसे देकर इस्तेमाल करना नहीं होता बल्कि किसी को मुफ्त में अनुमति देना भी लाइसेंस ही माना जाता है और जब लाइसेंस रद्द हो जाए, तो व्यक्ति का अधिकार भी खत्म हो जाता है।
HUF संपत्ति पर क्या नियम है?
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक यदि संपत्ति HUF या पूर्वज की होती, तो स्थिति अलग होती। ऐसी संपत्ति में हर सह-अधिकार को जन्म से अधिकार मिलता है और उसे उपयोग से वंचित करना बेदखली (ouster) माना जाता। लेकिन इस मामले में बेटे HUF का कोई सबूत नहीं दे पाया, इसलिए अदालत ने पिता का दावा सही माना।
फैसले का परिवारों पर क्या असर?
यह फैसला परिवारों के लिए एक स्पष्ट संदेश देता है स्वयं-अर्जित संपत्ति पर माता-पिता का ही अधिकार होता है। वयस्क बेटे-बेटियों के रहने का अधिकार केवल अनुमति पर आधारित है, कानूनी हक पर नहीं।

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