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    क्या 10 साल से ज्यादा रहने वाले किरायेदार का हो जाएगा फ्लैट? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 08:42 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किरायेदार मकान मालिक के स्वामित्व पर सवाल नहीं उठा सकते, खासकर जब उन्होंने लंबे समय तक उन्हें किराया दिया हो। यह फैसला एक पुराने विवाद को निपटाते हुए आया, जिसमें रामजी दास की बहू ने दुकान पर स्वामित्व का दावा किया था। अदालत ने निचली अदालतों के फैसलों को खारिज करते हुए रामजी दास के मालिकाना हक को सही ठहराया और किरायेदारों को बेदखल करने का आदेश दिया।

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    यह विवाद रामजी दास नामक व्यक्ति और उनके किरायेदार के उत्तराधिकारियों के बीच था। 

    नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि कोई भी किरायेदार, जिसने किसी मकान मालिक से रेंट डीड (किरायानामा) के तहत मकान या दुकान किराए पर ली है, वह बाद में उस मकान मालिक के स्वामित्व पर सवाल नहीं उठा सकता। विशेष रूप से तब, जब उसने दशकों तक उसी व्यक्ति या उसके उत्तराधिकारियों को किराया दिया हो।

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    यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन शामिल थे, ने सात दशक पुराने (1953 से चल रहे) एक मकान मालिक–किरायेदार विवाद को निपटाते हुए सुनाया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक यह विवाद रामजी दास नामक व्यक्ति और उनके किरायेदार के उत्तराधिकारियों के बीच था। रामजी दास की बहू (वादी) ने अपने ससुर के 12 मई 1999 को लिखी गई वसीयत के आधार पर विवादित दुकान पर स्वामित्व का दावा किया था। उन्होंने अपने परिवार के मिठाई और नमकीन के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उस दुकान से किरायेदारों को खाली करने की मांग की थी।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी (किरायेदारों के उत्तराधिकारी) ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि रामजी दास मालिक नहीं थे और उनकी वसीयत फर्जी है। उनका कहना था कि दुकान पर असल मालिकाना हक रामजी दास के चाचा, सुआ लाल का था।

    निचली अदालतों का फैसला और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

    ट्रायल कोर्ट ने वादी की याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि वह स्वामित्व साबित नहीं कर सकी और वसीयत संदिग्ध है। अपीलीय अदालत और हाईकोर्ट ने भी यही फैसला बरकरार रखा।

    लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी निचली अदालतों के निष्कर्षों को ''भ्रामक और साक्ष्यों के विपरीत'' बताया। अदालत ने एग्ज़िबिट P-18, यानी वर्ष 1953 की वह रिलिंक्विशमेंट डीड (त्यागपत्र) का हवाला दिया, जिसके जरिए सुआ लाल ने संपत्ति का अधिकार रामजी दास को सौंपा था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस दस्तावेज़ से रामजी दास की मालिकाना हक स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है। इसके अलावा, किरायेदारों और उनके पिता ने 1953 से लेकर रामजी दास और उनके बेटे को किराया दिया था, जिससे यह साबित होता है कि वे उन्हें मालिक मानते थे।

    वसीयत और किरायेदारों का विवाद

    कोर्ट ने यह भी कहा कि 2018 में जारी प्रोबेट ऑर्डर (वसीयत की वैधता को प्रमाणित करने वाला आदेश) को हाईकोर्ट ने गलत तरीके से नज़रअंदाज़ किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए वसीयत पर संदेह करना कि उसमें पत्नी का उल्लेख नहीं है, “कानूनी रूप से उचित कारण नहीं” है। एक बार वसीयत प्रमाणित हो जाने के बाद, उससे प्राप्त स्वामित्व को कानूनी मान्यता मिल जाती है।

    व्यवसाय विस्तार और bona fide आवश्यकता

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि वादी का परिवार मिठाई और नमकीन का व्यवसाय पास की दुकान में चला रहा था और विवादित दुकान की आवश्यकता व्यवसाय विस्तार के लिए सच्ची और bona fide थी।

    कोर्ट ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए किरायेदारों को बेदखल करने का आदेश दिया। साथ ही, जनवरी 2000 से अब तक का बकाया किराया वसूलने का निर्देश दिया गया।

    हालांकि, कोर्ट ने किरायेदारों को छह महीने का समय दिया है, बशर्ते वे दो सप्ताह के भीतर यह शपथपत्र दें कि वे एक महीने के अंदर किराया चुका देंगे और छह महीने के भीतर दुकान खाली कर देंगे। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो मकान मालिक को सारांश निष्कासन (summary eviction) की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार होगा।

     

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