गणित में कमजोर, लेकिन IIT पहुंचे...इसरो छोड़ी और खड़ी कर दी रॉकेट कंपनी; Vikram-I के मालिक की कहानी कमाल है!
पवन कुमार चांदना, गणित में कमजोर होने के बावजूद आईआईटी खड़गपुर पहुंचे और इसरो में नौकरी पाई। उन्होंने स्काईरूट नाम की एयरोस्पेस कंपनी की स्थापना की, जिसने विक्रम-I रॉकेट बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 नवंबर को इसे लॉन्च किया, जिससे यह दुनिया भर में चर्चित हो गया।

गणित में कमजोर, लेकिन IIT पहुंचे...इसरो छोड़ी और खड़ी कर दी रॉकेट कंपनी; Vikram-I के मालिक की कहानी कमाल है!
Pawan Kumar Chandna Success Story: गणित में कमजोर होने की छवि अक्सर सपनों की राह रोक देती है, लेकिन पवन कुमार चांदना ने इसे अपनी पहचान नहीं बनने दिया। मेहनत की, पढ़ाई जारी रखी और आखिरकार आईआईटी खड़गपुर पहुंचे। आगे चलकर इसरो में नौकरी मिली। वही जगह जहां रॉकेट और विज्ञान रोज जन्म लेते हैं। लेकिन उनके भीतर एक और बड़ा सपना धधक रहा था- खुद का रॉकेट बनाना। फिर एक दिन उन्होंने सुरक्षित करियर छोड़ जोखिम चुना और अपने दोस्त नागा भरत के साथ मिलकर स्काईरूट नाम की एयरोस्पेस कंपनी खड़ी कर दी।
वही स्काईरूट, जिसने Vikram-I रॉकेट बनाया, जिसे 27 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Mo) दुनिया के सामने पेश किया और विश्व में इसकी चर्चा होने लगी। अब हर किसी के मन में सवाल है कि आखिर पवन कुमार चांदना और नागा भरत कौन हैं, कैसे शुरू हुई ये कंपनी, कितने लोग इसमें काम करते हैं और कैसे सपना हकीकत बना? चलिए जानते हैं पूरी कहानी।
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कौन हैं पवन कुमार चांदना? (Who is Pawan Kumar Chandna)
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जन्मे पवन कुमार चांदना, साल 1991 में पैदा हुए एक ऐसे नौजवान हैं, जिन्होंने बचपन के सपनों को जमीन पर उतारकर आसमान तक पहुंचा दिया। नाम सुनते ही भले आप उन्हें एक साधारण इंजीनियर समझें, लेकिन ये वही शख्स हैं, जो आज भारत के निजी अंतरिक्ष तकनीक के सबसे बड़े चेहरों में गिने जाते हैं। आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक और Thermal Science & Engineering में पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उनकी नजरें सिर्फ एक जगह टिकी थीं- खुला आसमान, रॉकेट और भविष्य की उड़ान।
कॉलेज के दिनों में ही उन्हें रॉकेट डायनेमिक्स और लॉन्च सिस्टम का ऐसा चस्का लगा कि आगे चलकर इसरो ने भी उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। करीब 6 साल तक उन्होंने PSLV और GSLV जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम किया और रॉकेट इंजीनियरिंग का असली खेल सीखा। लेकिन 2018 आते-आते उनका सपना और बड़ा हो चुका था। सुरक्षित नौकरी छोड़कर उन्होंने नागा भरत डाका (Who is Naga Bharath Daga) के साथ स्काईरूट एयरोस्पेस की नींव रखी।
स्काईरूट यानी एक ऐसी कंपनी, जिसका मकसद था भारत को प्राइवेट स्पेस रेस में आगे ले जाना। शुरुआती समय में फंडिंग सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन उनकी तकनीकी समझ और स्पष्ट लक्ष्य ने निवेशकों को आकर्षित किया।
पवन कुमार चांदना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी ऐसी कोई प्लानिंग नहीं थी कि वह एक रॉकेट लॉन्चर कंपनी बनाएंगे। लेकिन हां, स्पेस-रॉकेट में उनकी दिलचस्पी थी। इसरो में रहते हुए पवन GSLV प्रोजेक्ट का भी हिस्सा रहे, जो कि इसरो का तीसरा सबसे बड़ा रॉकेट लॉन्चर है।
45 मिनट में 10 करोड़ और 5 साल में 750 करोड़ की फंडिंग
एक इंटरव्यू के दौरान पवन ने फंडिंग से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताया। उनके अनुसार कंपनी की पहली बड़ी फंडिंग सिर्फ 45 मिनट की मीटिंग में ही 10 करोड़ रुपए के चेक के साथ मिल गई। पवन ने कहा कि निवेशकों का यह भरोसा उनके विजन और तकनीकी क्षमता की सबसे बड़ी पुष्टि था। शुरूआती पूंजी मिलते ही कंपनी ने विकास की रफ्तार पकड़ ली और अगले पांच साल में कुल 750 करोड़ रुपए की फंडिंग जुटाने में सफल हो गई।
पवन के मुताबिक अब कंपनी का लक्ष्य और भी आगे का है- भविष्य में रॉकेट के जरिये कार्गो और फ्लाइट्स को सीधे अंतरिक्ष में भेजना। स्काईरूट इसके लिए 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन तैयार कर रही है, जिसके जरिए वह मैन्युफैक्चरिंग का समय महीनों से घटाकर कुछ दिनों में लाने का दावा करती है। कंपनी के मुताबिक ऐसा मॉडल भारत की प्राइवेट स्पेस इंडस्ट्री में गेमचेंजर साबित हो सकता है।
आज पवन चांदना सिर्फ रॉकेट नहीं बना रहे, वो भारत के युवाओं को साबित कर रहे हैं कि सपना बड़ा हो तो लॉन्चपैड खुद बन जाता है।
स्काईरूट कितनी बड़ी कंपनी और क्या काम करती है?
स्काईरूट एयरोस्पेस देश की सबसे बड़ी प्राईवेट एयरोस्पेस कंपनी है, जिसने देश में स्पेस-टेक्नोलॉजी के निजीकरण का रास्ता खोला है। कंपनी छोटे और मीडियम सैटेलाइट लॉन्च के लिए रॉकेट तैयार करती है। कंपनी में आज 350 से ज्यादा लोग काम करते हैं और इसकी मार्केट वैल्यू 4330 करोड़ रुपए से ज्यादा है।
क्या है विक्रम-I? (What is Vikram-I)
विक्रम-I स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित एक मल्टी-स्टेज लॉन्च व्हीकल है, जिसका नाम भारत के स्पेस प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई के सम्मान में रखा गया है। यह हल्का लेकिन बेहद मजबूत कार्बन फाइबर से बना रॉकेट है, जो लगभग 300 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट तक ले जाने में सक्षम है।
इसकी ऊंचाई करीब सात मंजिला इमारत जितनी है और इसमें 3D-प्रिंटेड लिक्विड इंजन लगाए गए हैं, जिससे यह तेज, कुशल और आधुनिक तकनीक वाला लॉन्च व्हीकल बनता है। स्काईरूट का कहना है कि विक्रम-I सिर्फ 24 घंटे में असेंबल होकर लॉन्च के लिए तैयार किया जा सकता है, जो इसे कम लागत में तेजी से स्पेस एक्सेस देने वाले रॉकेट्स में शामिल करता है। कंपनी जल्द ही इसे लॉन्च करने की तैयारी में है।

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