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    गोल्ड बार या पुरानी ज्वैलरी एक्सचेंज करते वक्त कैसे हो जाती है वैल्यू कम, क्या आप भी है इन चार्जिज से बेखबर?

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 09:18 AM (IST)

    दिवाली के समय बस नया गोल्ड ही नहीं खरीदा जाता। बल्कि पुरानी गोल्ड ज्वैलरी या बार के बदले भी नया गोल्ड बनाया जाता है। अक्सर लोग ये सोचते हैं कि जितने रुपये की वैल्यू अभी गोल्ड की चल रही है। उनका गोल्ड उतने रुपये में बिक जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है

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    पुरानी ज्वेलरी एक्सचेंज: क्या आप छिपे हुए चार्जिज से अनजान हैं?

    नई दिल्ली। दिवाली आने में बस एक हफ्ते का समय बचा है। ये समय लोग सबसे ज्यादा गोल्ड और सिल्वर ज्वेलरी खरीदते हैं। वहीं दिवाली से दो या तीन पहले आने वाले उत्सव धनतेरस के समय सोने या चांदी का छोटा से छोटा सिक्का खरीदना शुभ माना जाता है। 

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    इसलिए इस समय देशभर में सोने और चांदी की डिमांड सबसे ज्यादा है। इस समय लोग सिर्फ गोल्ड या सिल्वर ज्वेलरी खरीदते नहीं है, बल्कि इन्हें बेचकर नई ज्वेलरी बनाने का भी सोचते हैं। अक्सर हमें लगाता है कि जितने ग्राम की हमारी ज्वेलरी है, उस हिसाब से चल रही मौजूदा वैल्यू में ये एक्सचेंज हो जाएगा। 

    लेकिन गोल्ड ज्वेलरी एक्सचेंज करते वक्त कई तरह से चार्जिज लगाए जाते हैं। जिससे इनकी वैल्यू कम हो जाती है। आइए जानते हैं कि आपके पुराने गोल्ड ज्वैलरी पर क्या-क्या चार्जिज लगाए जाते हैं और इससे कैसे वैल्यू कम हो रही है। 

    कैसे तय होती है पुराने ज्वेलरी की वैल्यू?

    सबसे पहले आपके पुरानी ज्वेलरी को पिघलाया जाता है, ये देखने के लिए की ये कितने ग्राम और कैरेट का है। गोल्ड की वैल्यू ग्राम और कैरेट के हिसाब से ये तय होती है। वैसे तो मशीन के द्वारा भी चेक किया जा सकता है। लेकिन एक्चुअल ग्राम और कैरेट पिघाले पर ही पता चलता है। 

    पिघलाने के लिए समय कई जौहरी Melting Charges लेते हैं, जो आपके ओवरऑल वैल्यू से घटाया जाता है। 

    मेकिंग चार्ज

    अलग-अलग दुकान का अलग-अलग मेकिंग चार्ज हो सकता है। ये मेकिंग चार्ज 8 फीसदी से लेकर 28 फीसदी या इससे भी ज्यादा हो सकते हैं। अगर आप पुरानी ज्वेलरी से नई ज्वेलरी बना रहे हैं, तो इस पर मेकिंग चार्ज लगाना वाजिब है। 

    जीएसटी (GST)

    जब भी आप कोई नई ज्वेलरी खरीदते हैं, तो आपको 3 फीसदी जीएसटी गोल्ड वैल्यू पर देना होता है। वहीं 5 फीसदी जीएसटी आपके मेकिंग चार्ज पर लगता है।  हालांकि बेचने पर आपका यहीं टैक्स बढ़ जाता है। क्योंकि कैपिटल टैक्स गेन के अंतर्गत आ जाता है।  गोल्ड बेचने पर आपको एसटीसीजी और एलटीसीजी  के हिसाब से टैक्स देना पड़ता है।  

    एसजीएसटी के अंतर्गत अगर आपने सोना 3 साल से पहले बेचा और आपको जितने रुपये का फायदा हुआ, उस पर आपको टैक्स देना होगा। 

    इसी तरह अगर आपने गोल्ड 3 साल बाद बेचा, तो वे एलटीसीजी के अंतर्गत आ जाएगा, इस पर आपको 20 फीसदी टैक्स देना होगा।