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तेजी से बढ़ रहा है Solar Energy में निवेश, जानिए कैसे करेगा भारत के Carbon फुटप्रिंट कम करने में मदद

पीएम मोदी ने दुनिया को भरोसा दिलाया है कि भारत आने वाले साल में कार्बन फुटप्रिंट को कम करेगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सोलर एनर्जी काफी मददगार साबित हो सकता है। भारत में अंतराष्ट्रीय निवेशक इस क्षेत्र में तेजी से निवेश भी कर रहे हैं।

By Gaurav KumarEdited By: Gaurav KumarUpdated: Sun, 04 Jun 2023 10:00 PM (IST)
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Investment in solar energy is increasing rapidly, know how it will help in reducing India's carbon footprint
नई दिल्ली, गौतम मोहनका । स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेजी से बदलाव लाने के लिए सौर ऊर्जा में निवेश करना सबसे अच्छे समाधानों में से एक हो सकता है। यह आर्थिक और पर्यावरण दोनों ही नजरिए से बेहतर है।

जहां एक तरफ सौर ऊर्जा एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने में मदद करेगा, वहीं दूसरी तरफ यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करेगा, ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाएगा, रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।

क्या है भारत का लक्ष्य?

दरअसल भारत ने 2030 तक 500 GW स्वच्छ ऊर्जा स्थापित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। अगले पांच सालों में 250 GW अक्षय ऊर्जा जोड़ने की सरकार की योजना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

लेकिन ये इतना आसान नहीं है। इसके लिए, इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश को आकर्षित करने की जरूरत है। साथ ही घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देते हुए आयात पर देश की निर्भरता को कम करना होगा।

सौर ऊर्जा के क्या हैं फायदे

सौर ऊर्जा में सूरज से मिलनी वाली ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक प्रचुर और नवीकरणीय संसाधन है। सौर बुनियादी ढांचे में निवेश सीमित जीवाश्म ईंधन संसाधनों को कम किए बिना या जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाली ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन किए बिना बिजली पैदा कर सकता है।

यह जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से जुड़े हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद करेगा। सौर ऊर्जा प्रणालियां की खासियत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों को छोड़े बिना बिजली का उत्पादन करना है।

सौर ऊर्जा से मिलेगी कार्बन फुटप्रिंट कम करने में मदद

इन गैसों का ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में एक बड़ी हिस्सेदारी है। सौर ऊर्जा की तरफ जाकर देश अपने कार्बन फुटप्रिंट को काफी कम कर सकता है और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर सकता है।

इसके अलावा, सौर ऊर्जा प्रणालियां वायु प्रदूषण को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती है। क्योंकि यह सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, या पार्टिकुलेट मैटर का उत्पादन नहीं करती हैं, जो आमतौर पर पारंपरिक जीवाश्म ईंधन-आधारित बिजली उत्पादन से जुड़े होते हैं।

हवा की गुणवत्ता में भी होगा सुधार

सौर प्रतिष्ठानों के साथ पारंपरिक बिजली संयंत्रों को बदलने से हवा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और सांस से जुड़ी बीमारियों को कम किया जा सकता है। इसके जरिए मानव और पारिस्थितिक तंत्र दोनों के लिए स्वस्थ वातावरण तैयार किया जा सकता है।

दरअसल सौर ऊर्जा विकेंद्रीकृत और वितरित ऊर्जा उत्पादन मॉडल प्रदान करती है। सौर इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने से व्यक्तियों, समुदायों और देशों को अपनी स्वयं की बिजली उत्पन्न करने की अनुमति मिलती है। इससे केंद्रीकृत पावर ग्रिड और आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी।

इसके अलावा यह ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ाता है, ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करता है, और जीवाश्म ईंधन के आयात से जुड़े मूल्य में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनावों की वजह से होने वाली दिक्कतों को कम करता है।

तेजी से बढ़ रहा है सोलर उद्योग

सौर उद्योग हाल के कुछ सालों में तेजी से विकास की ओर बढ़ा है, जिससे रोजगार के कई अवसर पैदा हुए हैं। सौर ऊर्जा में निवेश स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ नवाचार और सतत विकास की दिशा में बढेगा।

यह तकनीक मैन्युफैक्चरिंग, इंस्टॉलेशन, मेंटेनेंस, रिसर्च एंड डवलपमेंट, और अपने से जुड़ी अन्य सेवाओं सहित रोजगार के क्षेत्रों को बढ़ावा दे रही है। फोटोवोल्टिक (पीवी) सिस्टम, ऊर्जा भंडारण और ग्रिड एकीकरण में सौर ऊर्जा ड्राइव इनोवेशन और तकनीकी प्रगति में निरंतर निवेश किया जा रहा है।

इन क्षेत्रों में लगातार बढ़ते कदम सौर ऊर्जा की दक्षता और सामर्थ्य में सुधार कर रहे हैं और यह व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिए तेजी से व्यवहार्य और आकर्षक विकल्प बनता जा रहा है।

सोलर एनर्जी में निवेश महत्वपूर्ण

सौर बुनियादी ढांचे में प्रारंभिक निवेश महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन की तुलना में सौर ऊर्जा की परिचालन लागत कम है। सौर पैनलों का जीवनकाल लंबा होता है और उनके रखरखाव की जरूरत काफी कम होती है।

जैसे-जैसे तकनीक उन्नत हो रही है वैसे-वैसे सौर ऊर्जा की लागत में लगातार गिरावट आ रही है। अगर हम जीवाश्म ईंधन की कीमतों की संभावित अस्थिरता पर विचार करें तो सौर ऊर्जा में निवेश करने से दीर्घकालिक लागत बचत हो सकती है।

भारत में सौर ऊर्जा निवेश पर हाल के सालों में काफी फोकस रहा है क्योंकि देश का लक्ष्य अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करना और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना है। सरकार ने सौर ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलों और नीतियों को लागू किया है।

प्रमुख कार्यक्रमों में से एक जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (JNNSM) है, जिसे 2010 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना और ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना है। जेएनएनएसएम सौर परियोजनाओं में निवेश आकर्षित करने के लिए सब्सिडी, कर लाभ और वायबिलिटी गैप फंडिंग जैसे कई ऑफर दिए गए हैं।

अंतरराष्ट्रीय कंपनियों कर रही हैं सोलर में निवेश

भारत ने हाल के सालों में सौर ऊर्जा क्षमता स्थापना में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है, जिसमें यूटिलिटी-स्केल और रूफटॉप सौर परियोजनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। सौर पैनलों की गिरती लागत और अनुकूल नीतियों ने क्षेत्र के विकास में योगदान दिया है।

कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में सौर ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया है, जिनमें प्रमुख सौर डेवलपर्स, उपकरण निर्माता और वित्तीय संस्थान शामिल हैं। संक्षेप में कहें तो, सहायक सरकारी नीतियों, अनुकूल बाजार स्थितियों और बढ़ती पर्यावरणीय जागरूकता के मद्देनजर भारत में सौर ऊर्जा निवेश लगातार बढ़ रहा है।

अक्षय ऊर्जा के लिए देश की प्रतिबद्धता और इसकी विशाल सौर क्षमता, स्वच्छ ऊर्जा की तरफ देखने वाले घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए बेहतर मौके प्रदान कर रही है।

(लेखक गौतम सोलर के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)