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    कृत्रिम वर्षा पर 3.21 करोड़ खर्च की तैयारी: वातावरण ही नहीं मिल रहा अनुकूल; छह माह में छह बार मिली तारीख

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 12:39 AM (IST)

    कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारी पर 3.21 करोड़ रुपये खर्च होने हैं, लेकिन अनुकूल वातावरण न मिलने से परेशानी हो रही है। पिछले छह महीनों में छह बार तारीख मिलने के बाद भी कृत्रिम वर्षा शुरू नहीं हो पाई है, क्योंकि मौसम अनुकूल नहीं है।

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    प्रतीकात्मक तस्वीर।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। प्रदूषण से जंग में दिल्ली सरकार छह माह से कृत्रिम वर्षा के ट्रायल की तैयारी कर रही है। करीब इतनी ही बार ट्रायल की तारीख भी दे चुकी है लेकिन यह ट्रायल होने में ही नहीं आ रहा। दीवाली से अगले दिन भी नहीं हो पाया। अब 25 या 26 अक्टूबर की चर्चा चल रही है जबकि संभावना तब भी नहीं के बराबर है। वजह, मौसम विभाग के पूर्वानुमान में इन दोनों दिन भी बादल छाने का कोई अनुमान नहीं है। विचारणीय पहलू यह भी है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान की दिशा में कृत्रिम वर्षा को अव्यवहारिक करार दे दिया था। इसके पीछे तार्किक कारण भी बताए गए थे।

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    ट्रायल की लागत करीब 55 लाख

    गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने कैबिनेट की एक बैठक में सात मई को कृत्रिम वर्षा के पांच ट्रायल के लिए मंजूरी दी थी। हर क्लाउड-सीडिंग ट्रायल की लागत करीब 55 लाख होगी। पांच ट्रायल के लिए कुल अनुमानित खर्च 2.75 करोड़ है। इसके अलावा, एक बार की व्यवस्था जैसे एयरक्राफ्ट की कैलिब्रेशन, कैमिकल स्टोरेज-लाजिस्टिक के लिए 66 लाख का खर्च तय किया गया है। प्रोजेक्ट की कुल लागत 3.21 करोड़ रहेगी।

    प्रोजेक्ट की कमान आईआईटी कानपुर के पास 

    इस प्रोजेक्ट को आईआईटी कानपुर के दिशा-निर्देश में संचालित किया जाना है, जो पूरे प्रोजेक्ट की योजना, एयरक्राफ्ट की तैनाती, कैमिकल के छिड़काव, वैज्ञानिक माडलिंग और ट्रायल्स की निगरानी करेगा। दिल्ली सरकार इस ट्रायल के लिए आईआईटी कानपुर को फंड जारी करेगी।

    जानकारी के मुताबिक इसके ट्रायल को लेकर मई के अंत, जून की शुरुआत, जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में अनेक बार संभावित तिथि दी गई। नवीनतम तारीख दीवाली से अगले दिन की थी। लेकिन यह ट्रायल हो अब तक नहीं पाया। वजह, आसमान में इसके लिए उपयुक्त बादलों का न होना। सरकार ने लगभग 100 वर्ग किमी के क्षेत्र में, मुख्यतया दिल्ली के बाहरी इलाकों में किया जाना है। पांच ट्रायल प्रस्तावित हैं। ट्रायल के बाद ही वैज्ञानिक रूप से यह मूल्यांकन होगा कि क्लाउड-सीडिंग वायु गुणवत्ता पर कितना प्रभाव डालती है।

    13 सरकारी विभागों और एजेंसियों से एनओसी प्राप्त

    बकौल पर्यावरण मंत्री, इस ट्रायल के लिए सभी संबंधित 13 सरकारी विभागों और एजेंसियों की एनओसी प्राप्त हो चुकी है। डीजीसीए ने भी नवंबर के अंत तक दो माह के लिए रनिंग मंजूरी दी हुई है। केवल मौसम विभाग की हरी झंडी का इंतजार है, जो कृत्रिम वर्षा के लिए उपयुक्त बादल होने पर दी जाएगी।

    यहां विचारणीय तथ्य यह है कि आईआईटी कानपुर एवं मौसम विभाग से मिले इनपुट के आधार पर 2024 में ही एक आरटीआइ के जवाब में सीपीसीबी ने कृत्रिम वर्षा को दिल्ली में कृत्रिम वर्षा को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक व्यवहारिक विकल्प नहीं माना था। वजह, सर्दियों के दौरान, जब वायु प्रदूषण चरम पर होता है, हवा में पर्याप्त नमी नहीं होती। नमी कृत्रिम वर्षा के लिए अति आवश्यक है। क्लाउड सीडिंग के लिए 50 प्रतिशत या उससे अधिक नमी वाले बादल होने चाहिए।

    वातावरण नहीं मिला अनुकूल

    सीपीसीबी ने अपने जवाब में यह भी कहा था कि 2017 में गर्मियों के दौरान आईआईटी कानपुर के जरिये क्लाउड सीडिंग के लिए सात बार प्रयास किया, लेकिन छह बार में यही सामने आया कि प्रदूषण थामने के लिए जिस मात्रा व फ्रीक्वेंसी के साथ वर्षा होनी चाहिए, वह कृत्रिम वर्षा से ताे संभव ही नहीं है। बादलों में नमी न होने के कारण ट्रायल हो भी नहीं पाए थे। सीपीसीबी ने ट्रायल के लिए मौसम विभाग की भी सलाह को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया था।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

    कृत्रिम वर्षा यानी 'क्लाउड सीडिंग' का मकसद है बादलों में कुछ रसायन (जैसे सिल्वर आयोडाइड एवं नमक) डालकर वर्षा कराना, ताकि हवा में मौजूद जहरीले कण नीचे गिर जाएं और हवा साफ हो जाए। सरकार इसे एक 'वैज्ञानिक उपाय' बता रही है, लेकिन असल में यह एक दिखावटी समाधान है।

    दूसरे देशों में भी क्लाउड सीडिंग के मिले-जुले परिणाम रहे

    'कृत्रिम बारिश' केवल थोड़ी देर के लिए हवा को साफ कर सकती है। जैसे ही वर्षा बंद होती है, प्रदूषण वापस अपनी जगह पर लौट आता है। असली जरूरत है प्रदूषण के मुख्य कारणों पर काम करने की जैसे गाड़ियों का धुंआ, फैक्ट्रियों से निकलता धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, पराली जलाना और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र लेकिन बार-बार की तरह, सरकार असली समाधान से भाग रही है। हम वायु को शुद्ध करने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन उसे प्रदूषित होने से रोकने की कोई ठोस कोशिश नहीं करते। दूसरे देशों में भी क्लाउड सीडिंग के मिले-जुले परिणाम रहे हैं। बीजिंग ओलंपिक से पहले इसका उपयोग किया था, लेकिन वहां भी नतीजे स्थायी नहीं थे। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों से पर्यावरण को और नुकसान हो सकता है।

    - भवरीन कंधारी, ग्रीन एक्टिविस्ट एवं प्रमुख, वारियर्स माम

    स्पष्ट विश्लेषण करने की आवश्यकता

    कृत्रिम वर्षा का उद्देश्य सूखे का सामना कर रहे क्षेत्रों या जहां प्राकृतिक वर्षा अपर्याप्त है, वहां वर्षा को बढ़ाना है। इसके माध्यम से हवा में फैले प्रदूषक कण पदार्थ को नियंत्रित करना सफल नहीं हो सकता। तीन चार दिनों तक लगातार वर्षा होने पर भी, वायु गुणवत्ता मुश्किल से संतोषजनक श्रेणी तक पहुंच पाती है। ऐसे में कुछ देर की हल्की वर्षा से प्रदूषण कम नहीं होगा। प्राकृतिक वर्षा के अभाव में, कृत्रिम वर्षा की प्रभावशीलता का स्पष्ट विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

    -डाॅ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी

    क्या कहते हैं पर्यावरण मंत्री?

    क्लाउड सीडिंग तभी होती है जब बादल हों। पहले ‘क्लाउड’ आता है, फिर ‘सीडिंग’। बिना बादल के क्लाउड सीडिंग संभव नहीं। इसलिए विज्ञान को समझे बिना बयानबाजी न करें।

    -मनजिंदर सिंह सिरसा, पर्यावरण मंत्री, दिल्ली सरकार

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