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    दिल्ली की सत्ता में वापसी के बाद पहली चुनावी परीक्षा में BJP को झटका, पढ़ें नफा-नुकसान का पूरा गणित

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 06:07 PM (IST)

    दिल्ली में सत्ता में वापसी के बाद भाजपा को पहली चुनावी परीक्षा में हार का सामना करना पड़ा। इस परिणाम से पार्टी को अपनी रणनीति और नीतियों पर पुनर्विचार ...और पढ़ें

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    12 में से 7 सीटों पर जीत के बाद जश्न मनाते बीजेपी के कार्यकर्ता।

    संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। ‘ट्रिपल इंजन’ की सरकार, आक्रामक प्रचार और अनुभवी नेताओं की पूरी ताकत के बावजूद नगर निगम उपचुनाव में भाजपा अपने कब्जे वाले नारायणा, मुंडका और संगम विहार वार्ड बचाने में नाकाम रही। पार्टी 27 वर्ष बाद दिल्ली की सत्ता में लौटी है। सत्ता में आने के लगभग 10 महीने बाद हुई पहली चुनावी परीक्षा में ही उसे करारा झटका लगा है।

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    12 वार्डों में हुए उपचुनाव में से नौ पर पहले से भाजपा का कब्जा था। उपचुनाव के बाद वह सिर्फ सात वार्ड ही बचा पाई। यह नतीजा पार्टी नेतृत्व और दिल्ली सरकार दोनों के लिए चिंता का विषय है। वहीं, आम आदमी पार्टी तीन सीटें जीतकर संतुष्ट हो सकती है। उसे न लाभ हुआ, न नुकसान। कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव मनोबल बढ़ाने वाला रहा क्योंकि उसने संगम विहार वार्ड जीत लिया।

    पार्टी ने उपचुनाव की घोषणा से बहुत पहले ही सभी 12 वार्डों के लिए प्रभारी और संयोजक नियुक्त कर दिए थे। मंत्रियों को अलग-अलग वार्डों का चुनाव प्रभारी बनाया गया था। मुख्यमंत्री स्वयं सभी वार्डों में प्रचार के लिए उतरे। अन्य मंत्री, सांसद और वरिष्ठ नेता भी पूरी ताकत से मैदान में थे।

    ‘ट्रिपल इंजन की सरकार को और मजबूत करने’ के नाम पर वोट मांगे जा रहे थे। इन उपचुनावों को सिर्फ भाजपा शासित नगर निगम का नहीं, बल्कि दिल्ली सरकार के कामकाज का भी रिपोर्ट कार्ड माना जा रहा था। वजह यह कि रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने, कमलजीत सहरावत के सांसद चुने जाने के साथ ही अन्य पार्षदों के विधायक बनने की वजह से ये सीटें खाली हुई थीं। मुख्यमंत्री और कमलजीत सहरावत के अपने वार्डों में भाजपा को बड़ी जीत मिली।

    चांदनी चौक वार्ड भी आप से छीनने में सफलता मिली। लेकिन पार्टी के अपने तीन वार्ड हाथ से निकल गए। इसके प्रमुख कारण वार्डों के पार्षदों के विधायक बनने के बाद उनके काम करने के तौर-तरीकों से स्थानीय लोगों में नाराजगी, सफाई व्यवस्था की लचर हालत, बसों की कमी, क्षतिग्रस्त सड़कें और बढ़ता प्रदूषण।

    कई नेताओं का मानना है कि संगठनात्मक खींचतान ने भी नुकसान पहुंचाया। जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को पांच महीने बीत जाने के बावजूद उनकी टीमें अब तक गठित नहीं हुई हैं। इससे कार्यकर्ताओं में शिथिलता आई, जो हार का एक बड़ा कारण बना।

    आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं के प्रचार से दूरी बनाने के बावजूद पार्टी तीन वार्ड जीतने में सफल रही। हालांकि, चांदनी चौक और चांदनी महल उसके हाथ से निकल गए। नारायणा व मुंडका वार्ड भाजपा से छीनकर उसने नुकसान की कुछ भरपाई कर ली। पहले भी उसके पास तीन वार्ड थे। चांदनी महल में आप के पूर्व विधायक शोएब इकबाल की बगावत महंगी पड़ी। उनके पसंद के नेता को टिकट न मिलने पर उन्होंने अपना उम्मीदवार उतारा और जीत भी हासिल की।

    लगातार हार झेल रही कांग्रेस के लिए संगम विहार वार्ड की जीत किसी संजीवनी से कम नहीं है। पिछले तीन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे एक भी सीट नहीं मिली है। पूर्व के निगम चुनावों में भी उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा था। उपचुनाव से ठीक पहले संगम विहार से पूर्व पार्षद सुरेश चौधरी को पार्टी में शामिल कर उन्हें उम्मीदवार बनाना कांग्रेस के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। इस जीत से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा जिससे संगठन को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

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