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    क्लाउड सीडिंग के लिए किए जा रहे खर्च पर उठे सवाल, आईआईटी कानपुर के निदेशक ने भी बताया महंगी तकनीक

    Updated: Wed, 29 Oct 2025 11:21 PM (IST)

    आईआईटी कानपुर के निदेशक ने क्लाउड सीडिंग को महंगी तकनीक बताया है। 300 वर्ग किमी क्षेत्र में परीक्षण की लागत लगभग 60 लाख रुपये आई। विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम वर्षा कराना पैसे की बर्बादी है, क्योंकि प्रदूषण फिर बढ़ जाएगा। स्थायी समाधान के लिए जमीनी स्तर पर काम करना बेहतर है।

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    क्लाउड सीडिंग के लिए हो रहे खर्च पर उठ रहे सवाल।

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। क्लाउड सीडिंग के परिणाम के बाद अब इसके खर्च पर भी सवाल उठ गए हैं। स्वयं आईआईटी कानपुर के निदेशक ने भी इसे थोड़ी महंगी तकनीक बताया है। साथ ही कई अन्य विशेषज्ञों ने भी वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जमीनी उपाय करने के बजाए ऐसे हवाई उपाय करने पर आपत्ति जताई है।

    आईआईटी कानपुर के निदेशक डाॅ. मणींद्र अग्रवाल ने बताया, 'मंगलवार को क्लाउड सीडिंग का सारा परीक्षण 300 वर्ग किमी क्षेत्र में किया गया। मेरे अनुमान के अनुसार, इसकी कुल लागत लगभग 60 लाख रुपये आई। यह मोटे तौर पर प्रति वर्ग किमी लगभग 20,000 रुपये होता है। उन्होंने कहा, 'यदि हम 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र में यह परीक्षण करते हैं, तो इसकी लागत लगभग दो करोड़ रुपये होगी।'

    अग्रवाल ने पूरे परीक्षण की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि यदि यह परीक्षण पूरे शीतकाल में किया जाए और यह मान लिया जाए कि 10 दिन में एक बार बादल छाए रहेंगे, तो इसकी लागत लगभग 25 से 30 करोड़ रुपये आएगी। आईआईटी-कानपुर के निदेशक ने कहा, 'कुल मिलाकर यह कोई बहुत बड़ी राशि नहीं है। दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण पर खर्च की जाने वाली कुल धनराशि इससे कहीं अधिक है।'

    डाॅ. अग्रवाल ने यह भी कहा कि क्लाउड सीडिंग के लिए फ्लाइट कानपुर से दिल्ली गई थी और इस कवायद में करीब 60 लाख रुपये खर्च आया था। अगर हम नियमित तौर पर दिल्ली के आसपास ही किसी एयरपोर्ट से उड़ान भरेंगे तो यह लागत कम हो जाएगी।

    हालांकि दूसरी तरफ विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग के बाद दिल्ली में कृत्रिम वर्षा करवाना सीधे तौर पर पैसे की बर्बादी है और कुछ नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर क्लाउड सीडिंग कराके वर्षा करा भी दी जाए तो दो से तीन दिन में फिर प्रदूषण बढ़ जाएगा।

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    फिर से कृत्रिम वर्षा करवाने की नौबत आ जाएगी। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसमें एक ट्रायल पर 60 लाख रुपये खर्च होते हैं। ऐसे तो इससे प्रदूषण की आधी अधूरी रोकथाम भी बहुत महंगी पड़ेगी।

    केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अपर निदेशक डा एस के त्यागी कहते हैं कि काेई भी योजना बनाने से पहले यह देखना चाहिए कि समस्या की जड़ क्या है। अगर प्रदूषण की स्थायी रोकथाम जमीनी स्तर पर हो सकती है तो उसके लिए क्लाउड सीडिंग जैसे अस्थायी और तात्कालिक उपायों पर करोड़ों का खर्च मूर्खता ही कहा जाएगा।

    वहीं इंडियन पल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन की उप निदेशक राधा गोयल ने भी कमोबेश ऐसी राय रखी। उन्होंने कहा कि 3.21 करोड़ की राशि जमीनी स्तर पर प्रदूषण कम करने के कई स्थायी उपाय किए जा सकते हैं। सरकार को उन्हीं पर फोकस करना चाहिए।

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