2500 की रिश्वतखोरी के आरोप ने ले लिए जीवन के 23 साल, भ्रष्टाचार मामले में डीडीए के दो पूर्व इंजीनियर बरी
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के दो पूर्व इंजीनियरों को 2500 रुपये की रिश्वतखोरी के आरोप में 23 साल बाद बरी कर दिया गया। अदालत ने सबूतों के अभाव में यह फैसला सुनाया, जिससे इंजीनियरों को राहत मिली, जिन्होंने इस लंबी कानूनी लड़ाई में बहुत कुछ सहा। इस मामले ने भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण होने वाली पीड़ा को उजागर किया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने 1991 में दर्ज हुए एक भ्रष्टाचार मामले में डीडीए के दो पूर्व जूनियर इंजीनियरों को 23 वर्ष बाद बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिश्वत मांगने का आरोप साबित करने में कई गंभीर खामियां रहीं और संदेह का लाभ अभियुक्तों को दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति अमित महाजन ने वर्ष 2003 में हुई ट्रायल कोर्ट की सजा को रद कर दिया।
हाई कोर्ट ने माना कि जांच में अनियमितता थी, लेकिन कहा कि इस आधार पर मुकदमे को स्वत अवैध नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए अदालत ने केस के मेरिट पर विचार किया। सुबूतों की समीक्षा में सामने आया कि शिकायतकर्ता सोमनाथ यह साबित नहीं कर सका कि जिस संपत्ति से जुड़ी अनुमति के लिए वे इंजीनियरों से संपर्क में थे, वह संपत्ति वास्तव में उनकी या उनकी पत्नी की थी। यहां तक कि निर्माण संबंधी कोई दस्तावेज भी नहीं था।
अदालत ने कहा कि मांग, स्वीकारोक्ति और बरामदगी की पूरी श्रृंखला विश्वसनीय और ठोस साक्ष्यों से सिद्ध नहीं होती। हाई कोर्ट ने कहा, आरोप सिद्ध न होने पर संदेह का लाभ अभियुक्तों को दिया जाना चाहिए। यह मामला 1991 में एंटी-करप्शन ब्रांच (एसीबी) द्वारा की गई ट्रैप कार्रवाई से संबंधित था, जिसमें डीडीए के इंजीनियर हर स्वरूप वर्मा और अशोक कुमार गुप्ता पर निर्माण से जुड़ी फार्म प्रक्रिया आगे बढ़ाने के बदले 2,500 रुपए रिश्वत मांगने का आरोप लगा था।
ट्रायल कोर्ट ने दोनों इंजीनियरों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात और 13 के तहत दोषी ठहराते हुए डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई थी। अभियुक्तों ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, पर अपील दो दशकों से अधिक लंबित रही।
उनकी मुख्य दलील थी कि जांच ऐसे अधिकारियों ने की थी जिनका पद कानून के मुताबिक पर्याप्त नहीं था। रिकार्ड में यह निर्विवाद था कि जांच इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों ने की और उच्चाधिकारियों की वैध अनुमति 1999 में आई यानी आठ वर्ष बाद।

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