दिल्ली में AQI के आंकड़े लगातार सवालों के घेरे में, शामिल नहीं किए जाते सभी 39 मॉनिटरिंग स्टेशनों के डेटा
दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर को लेकर चिंता बढ़ रही है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के आंकड़ों में हेरफेर के आरोप लग रहे हैं। दिवाली की रात कई निगरानी स्टेशनों से डेटा गायब रहा, जिससे संदेह पैदा हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि AQI की गणना में दी गई छूट का इस्तेमाल डेटा को कम दिखाने के लिए किया जा रहा है। CPCB के पूर्व अधिकारियों ने भी डेटा में छेड़छाड़ की संभावना जताई है।
-1762527542751.webp)
आईटीओ स्थित सीपीसीबी का वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। नवंबर महीना शुरू होते ही दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है और शुरू हो जाता है सांसों का संघर्ष। सरकार और सरकारी एजेंसियां वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए अल्पकालिक उपायों की नौटंकी में लग जाती हैं तो जहां कहीं संभव हो, आम जन को गुमराह करने से भी परहेज नहीं किया जाता। मसलन, उनके सामने प्रदूषण की सही तस्वीर न आने देना।
इसी कड़ी में इस वर्ष वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) के आंकड़े इस साल लगातार सवालों के घेरे में हैं। दीवाली की रात छह घंटे तक विभिन्न वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के आंकड़े गायब रहने से जो संदेह का माहौल बना, वह उसके बाद भी बार- बार एक्यूआइ डेटा में अप्रत्याशित उतार चढाव से बना हुआ है।
ऐसा लगता है कि इस बार ग्रेप का तीसरा और चौथा चरण न लगने देने की मंशा से भी ऐसा किया जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पूर्व अधिकारी व पर्यावरणविद भी डेटा में छेडछाड़ से इन्कार नहीं कर रहे।
एक्यूआइ डेटा से छेड़छाड़ को समझने के लिए दो नवंबर का उदाहरण लिया जा सकता है। इस दिन दिल्ली का 24 घंटे का औसत एक्यूआइ 366 था। अगले दिन यह अचानक 309 रह गया। लेकिन ये राहत की खबर नहीं है।
गहन पड़ताल से पता चला कि ये गिरावट असल में हवा की सफाई नहीं, बल्कि डेटा प्रबंधन में चालाकी का नतीजा था। जमीन पर स्माग छाया था जबकि शहर के सबसे प्रदूषित हफ्ते में मानिटरिंग स्टेशनों से गायब आंकडों, एक्यूआइ गणना के संदिग्ध पैटर्न और नियमों की ढील ने एक्यूआइ को ठीक बना दिया।
ऐसे होती है एक्यूआई की गणना
दिल्ली के 39 मानिटरिंग स्टेशनों से छह प्रदूषकों (पीएम 2.5, पीएम 10, कार्बन मोनोआक्साइड (सीओ), ओजोन (ओ3)), नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ 2) और सल्फर डाइआक्साइड (एसओ 2) का 24 घंटे का औसत निकाला जाता है। हर स्टेशन पर सबसे खराब प्रदूषक का सब-इंडेक्स ही एक्यूआइ बनता है, फिर सभी का औसत शहर का आधिकारिक एक्यूआइ। लेकिन यहां तीन बड़ी छूट हैं जो खेल बिगाड़ सकती हैं-
-सभी 39 स्टेशन जरूरी नहीं : कुछ स्टेशनों को छोड़कर भी एक्यूआइ निकाला जा सकता है।
-पूरे 24 घंटे डेटा जरूरी नहीं : 16 घंटे काफी हैं।
-सभी प्रदूषक चेक करने की जरूरत नहीं : तीन में से सिर्फ एक पीएम 2.5 या पीएम 10 हो, तो भी एक्यूआइ मापा जा सकता है।
हालांकि ये ढील स्टेशन खराब होने पर मदद करती है, लेकिन प्रदूषण पीक पर डेटा गायब हो तो एक्यूआइ को कम दिखाने का हथियार बन जाती है।
उदाहरण एक : 28 अक्टूबर से तीन नवंबर तक दोपहर चार बजे के औसत एक्यूआइ में पीएम 2.5 प्रमुख होना चाहिए था। लेकिन 32-36 स्टेशनों पर ही पीएम 2.5 हावी रहा। बाकी पर पीएम 10 और तीन नवंबर को लोधी रोड स्टेशन पर नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ 2) प्रमुख हो गया।
उदाहरण दो : 28-29 अक्टूबर को आठ प्रतिशत स्टेशनों में 24 घंटे से कम डेटा था, जो तीन नवंबर को 19 प्रतिशत हो गया। सबसे ज्यादा डेटा दोपहर 12 से तीन बजे गायब रहा, जो दिन का सबसे साफ समय है। सुबह सात से 11 बजे और रात दो बजे भी डेटा कम दर्ज हुआ, जो प्रदूषित घंटे हैं।
उदाहरण तीन : 28 अक्टूबर से तीन नवंबर तक के हफ्ते में एक्यूआइ की गणना में औसतन 36-38 स्टेशन ही इस्तेमाल हुए। सिर्फ एक नवंबर को पूरे 39 स्टेशन शामिल किए गए।
उदाहरण चार : दो से तीन नवंबर के बीच तीन स्टेशनों पर एक्यूआइ में सबसे बड़ी गिरावट हुई- लोधी रोड (आइआइटीएम द्वारा संचालित) - 319 से 164। श्री अरविंदो मार्ग (डीपीसीसी द्वारा संचालित) - 294 से 157। आइटीओ (सीपीसीबी द्वारा संचालित) - 280 से 155। इन तीनों पर प्रमुख प्रदूषक बदल गया। आइटीओ और अरविंदो मार्ग पर पीएम 2.5 से पीएम 10, लोधी रोड पर पीएम 2.5 से एनओ 2।
आइटीओ पर सुबह चार पांच बजे डेटा रुका, जब इंडेक्स 50 से नीचे था। दोपहर 12 बजे शुरू हुआ तो 350 पार पहुंच गया। हर घंटे एक दो स्टेशन पीएम 2.5 डेटा मिस करते हैं। आइटीओ जैसे प्रदूषित इलाकों में यह शहर के औसत को नीचे लाता है। स्टेशनों पर अचानक उतार-चढ़ाव कैलिब्रेशन (ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मापक उपकरण की सटीकता को जांचने के लिए उसकी रीडिंग की तुलना एक ज्ञात सटीकता वाले मानक उपकरण से की जाती है) या बाहरी हस्तक्षेप का स्पष्ट संकेत देते हैं
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
एक्यूआइ डेटा के साथ चालाकी करना असंभव नहीं है। जरूरत पड़ने पर ऐसा किया भी जा सकता है। हालांकि ऐसा कब और क्यों किया गया या नहीं किया गया, मैं नहीं कह सकता। -पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, सीपीसीबी
देखिए यह सही है कि एक्यूआइ अत्यधिक होने पर वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों और सीपीसीबी सर्वर का अप डाउन लिंक ठप हो जाता है। एक्यूआइ के छह मानकों में प्रमुखता पीएम 2.5 और पीएम 10 की ही रहती है तथा औसत एक्यूआइ निकालने के सभी स्टेशनों का डेटा अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद मैं नहीं मानता कि दिल्ली के एक्यूआइ डेटा से कोई छेड़छाड़ की जा रही हो। एक सच यह भी है कि दिल्ली मानिटरिंग स्टेशन पूरे देश में सर्वाधिक हैं, इतने की जरूरत ही नहीं है। - डॉ. अनिल गुप्ता, सदस्य, सीपीसीबी-डीपीसीसी
एक्यूआइ का डेटा किसी अन्य एप का नहीं बल्कि सीपीसीबी का ही विश्वसनीय रहा है, लेकिन पूर्व वर्षों में। वर्तमान में यह स्थिति नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन पर गंभीरता से न ध्यान दिया जा रहा है, न ही निगरानी की जा रही है। - सुनीता नारायण, महानिदेशक, सीएसई

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।