जानलेवा हुई दिल्ली की हवा... पूरी तरह बेअसर साबित हुए ग्रीन पटाखे; फूलने लगा लोगों का दम
दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता 5 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। ग्रीन पटाखों के दावों के बावजूद प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक रहा। पराली जलाने की घटनाओं में कमी के बावजूद स्थिति गंभीर बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन पटाखों की गुणवत्ता में कमी के कारण प्रदूषण कम नहीं हुआ। नीरी ने कई पटाखा कंपनियों को तकनीक ट्रांसफर की है, लेकिन गुणवत्ता नियंत्रण जरूरी है।

दिल्ली में प्रदूषण का कहर: ग्रीन पटाखे बेअसर
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर को दिवाली पर वायु प्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए भले ही इस बार यहां सिर्फ ग्रीन पटाखों की बिक्री के दावे किए गए थे लेकिन ग्रीन पटाखों के नाम पर जो पटाखे बेचे और चलाए गए, उन्होंने खूब प्रदूषण किया। स्थिति यह रही कि राष्ट्रीय राजधानी में दिवाली के बाद वायु गुणवत्ता मंगलवार की सुबह पांच वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई।
औसत पीएम 2.5 स्तर 488 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के चौंकाने वाले आंकड़े तक पहुंच गया जोकि डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाई गई लिमिट से लगभग 100 गुना अधिक है। यह हालात तो तब रहे जब कि पराली यानी फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में 77.5 प्रतिशत की कमी आई है जोकि आमतौर पर सर्दियों में दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक बड़ी वजह मानी जाती है। वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद ( सीएसआइआर) के राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के मुख्य वैज्ञानिक व ग्रीन पटाखों पर काम कर रहे डॉ. आरजे करुपदम ने कहा कि यदि ग्रीन पटाखे चले होते तो सुधार दिखना था।
यह नहीं चले हैं तो इसके लिए इनफोर्समेंट एजेंसियां जिम्मेदार है। उनकी तकनीक सौ प्रतिशत प्रमाणित है।डा. करुपदम ने दैनिक जागरण से चर्चा में बताया कि ग्रीन पटाखों से वायु प्रदूषण में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी दर्ज होती है। वैसे भी ग्रीन पटाखे कोई नई बात नहीं है और वह पिछले कई सालों से इस पर काम कर रहे हैं। यहां तक कि जिन पटाखा कंपनियों को इसके लाइसेंस दिए जा रहे हैं, उनके तैयार ग्रीन पटाखे का वह परीक्षण भी करते हैं। हालांकि यह एक ही बार लाइसेंस देने के दौरान ही किया जाता है।
इसके बाद कंपनियां गुणवत्ता के तहत ग्रीन पटाखे तैयार कर रही हैं या नहीं, यह देखना पेसो ( पेट्रोलियम व विस्फोटक सुरक्षा संगठन) का काम है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में नीरी ने देशभर के 1,403 पटाखा कंपनियों को ग्रीन पटाखा बनाने की तकनीक ट्रांसफर की है। इन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया है। इनमें करीब 125 कंपनियां अकेले दिल्ली-एनसीआर की है। इस दौरान करीब 25 प्रतिशत कंपनियों के पटाखों को खराब गुणवत्ता वाला पाए जाने पर उनके आवेदन को खारिज भी किया गया। उन्होंने बताया कि अभी वायु प्रदूषण में पटाखों से होने वाले प्रदूषण की कितनी हिस्सेदारी है, इसे लेकर कोई अध्ययन नहीं है।
इस बार सीपीसीबी के साथ मिलकर अध्ययन करा रहे हैं, जिससे सारी स्थिति साफ हो सकती है। इसकी रिपोर्ट अगले साल तक आएगी। उन्होंने वायु प्रदूषण के साथ ही पटाखों से होने वाले शोर को कम करने की दिशा में किए जा रहे कामों की जानकारी दी और कहा कि वे जल्द ही 125 डेसिबल तक क्षमता पर पटाखे तैयार करने जा रहे हैं। अभी जो पटाखे तैयार हो रहे हैं, वह 140 से 170 डेसिबल तक शोर तक करते हैं।
पेसो को देंगे हर साल ग्रीन पटाखों की गुणवत्ता जांचने की सलाह
डॉ. करुपदम ने कहा कि ग्रीन पटाखों को गुणवत्ता तय मानक के तहत बनी रहे, यह बहुत जरूरी है। इसके लिए पेसो को हर साल सभी पटाखा कंपनियों में तैयार होने वाले ग्रीन पटाखों को जांच करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह इसे लेकर जल्द ही पेसो को एक एडवाइजरी भी जारी करेंगे।
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