Delhi Blast से स्पेशल ब्रांच की खामियां उजागर, अर्ली वार्निंग सिस्टम के फेल होने पर उठ रहे सवाल
दिल्ली में हुए विस्फोट के बाद स्पेशल ब्रांच की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। खुफिया तंत्र की विफलता और अर्ली वार्निंग सिस्टम के फेल होने से सुरक्षा ...और पढ़ें

मोहम्मद साकिब, नई दिल्ली। पुरानी दिल्ली में 10 नवंबर को हुए लाल किला के पास विस्फोट कांड ने दिल्ली पुलिस की आंतरिक सुरक्षा का स्तंभ माने जाने वाली स्पेशल ब्रांच की कार्य प्रणाली को सवालों के घेरे में ला दिया है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि स्पेशल ब्रांच का अर्ली वार्निंग सिस्टम समय पर खतरे को क्यों नहीं पहचान पाता जबकि इसकी जिम्मेदारी आतंकवाद, सांप्रदायिक तनाव, विदेशी तत्व और किसी वीवीआईपी सुरक्षा और पुलिस की आंतरिक व्यवस्था की निगरानी करना भी है।
मौजूदा माॅडल कमजोर साबित हो रहा
ऐसे में बार-बार की विफलता तमाम तरह की आशंकाओं को जन्म दे रही है, जिसका फायदा आतंकी साजिश रचने वाले संगठन उठा रहे हैं। कई बार इसकी सफलता भी सामने आती है, लेकिन लाल किले की सुरक्षा घेरा तोड़कर हुआ विस्फोट यह दिखाता है कि मौजूदा माॅडल अब बदलती परिस्थितियों के मुकाबले कमजोर साबित हो रहा है।
दिल्ली में नहीं अलग से एलआईयू
दिल्ली में अन्य राज्यों की तरह कोई अलग लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) नहीं होती। यही कारण है कि स्पेशल ब्रांच राजधानी में जमीनी इनपुट का प्राथमिक स्रोत है। विशेषज्ञों के मुताबिक, स्पेशल ब्रांच के फील्ड स्टाफ को कई बार ऐसे गैर-मूल कार्य दिए जाते हैं जिनका सुरक्षा से कोई संबंध नहीं होता, इनमें अधिकारियों की व्यक्तिगत ‘जासूसी’, राजनीतिक संपर्कों की निगरानी या थानों की अंदरूनी गतिविधियों पर रिपोर्ट रखना शामिल होता है।
वास्तविक सुरक्षा इनपुट पीछे छूट रहे
इससे वास्तविक सुरक्षा इनपुट पीछे छूट जाते हैं। लाल किले के मामले में भी प्रारंभिक संकेत हैं कि क्षेत्रीय संवेदनशीलता को लेकर पर्याप्त जमीनी फीडबैक समय पर अपडेट नहीं किया गया। वहीं दिल्ली के 100 से अधिक अर्ध-ग्रामीण व ग्रामीण जोन में ब्रांच की पकड़ कमजोर से मध्यम मानी जाती है।
इनमें नजफगढ़, कोंडली, अलीपुर, कराला, कापसहेड़ा और बवाना जैसे इलाके शामिल हैं। इसका मुख्य कारण तेजी से बदलती जनसंख्या, अवैध काॅलोनियों का विस्तार, बाहरी राज्यों के बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिक, गुटबंदी और स्थानीय राजनीति का प्रभाव, सीमावर्ती जिलों (हरियाणा, यूपी) से आवागमन में बिना जांच के प्रवेश। यहीं से राजधानी में आने-जाने वाले कई संदिग्धों के ‘ट्रांजिट रूट’ बनते हैं।
डिजिटल एक्टिविटी तेजी से बदल रही
इसके अलावा राजधानी की डिजिटल एक्टिविटी तेजी से बदल रही है। आतंकी वारदातों में शामिल संदिग्ध वीपीएन आधारित चैट चैनल, विदेशी ऐप्स और डार्क-वेब नेटवर्क पर लगातार सक्रिय रहते हैं। इन्हें पकड़ना मुश्किल साबित होता है क्योंकि स्पेशल ब्रांच का डिजिटल विश्लेषण तंत्र अभी भी पुराने माडल पर चलता है।
इससे स्लीपर सेल की शुरुआती गतिविधियां पकड़ में नहीं आतीं। वहीं, ब्रांच में एक ही अधिकारी को स्रोत विकास, रिपोर्टिंग, फील्ड सर्विलांस और कई अन्य काम सौंप दिए जाते हैं, जिससे प्रोफेशनल इंटेलिजेंस का स्तर गिरता है। लाल किले जैसे हाई-वैल्यू जोन में भी पर्याप्त इंटेलिजेंस-ड्यूटी कर्मी तैनात नहीं थे।
नया माॅडल तैयार करने की आवश्यकता
स्पेशल ब्रांच एक मजबूत और ऐतिहासिक रूप से प्रभावशाली खुफिया इकाई है, लेकिन उसका वर्तमान ढांचा तेजी से बदलती सुरक्षा जरूरतों के मुकाबले कमजोर पड़ रहा है। विस्फोट जैसे मामले चेतावनी हैं कि राजधानी की जमीनी खुफिया को राजनीतिक प्रभाव, पुरानी कार्यशैली और तकनीकी पिछड़ेपन से मुक्त करके नया माॅडल तैयार करने की आवश्यकता है। लाल किले के बाहर हुए आतंकी विस्फोट की साजिश पिछले काफी समय से रची जा रही थी। ऐसे में स्पेशल ब्रांच की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
स्पेशल ब्रांच के प्रमुख कार्य
- संवेदनशील बाजारों, धार्मिक स्थलों, विश्वविद्यालयों, रेलवे स्टेशन, आइएसबीटी और पुरानी दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों की निगरानी।
- सामुदायिक तनाव, प्रदर्शन, राजनीतिक गतिविधियों और भीड़-प्रवृत्ति का आकलन।
- संदिग्धों, किरायेदारों और बाहरी राज्यों से आए समूहों की लगातार प्रोफाइलिंग।
- आतंकवाद-रोधी प्राथमिक चेतावनी, स्लीपर सेल गतिविधि, कट्टरपंथी नेटवर्क और डिजिटल निगरानी।
- वीवीआईपी और राजनयिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा से जुड़े इनपुट।
- पुलिस की आंतरिक कार्यशैली और संवेदनशील मामलों में संभावित जोखिमों पर नजर रखना।
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