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    सिर्फ संदेह पर बैंक खाता फ्रीज नहीं किया जा सकता, दिल्ली हाई कोर्ट ने ईडी को फटकारा

    Updated: Sun, 16 Nov 2025 10:46 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाते हुए कहा कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी का बैंक खाता फ्रीज नहीं किया जा सकता। अदालत ने जोर दिया कि खाते को फ्रीज करने के लिए ईडी के पास ठोस सबूत होने चाहिए। न्यायालय ने जांच में पारदर्शिता बरतने और मनमानी कार्रवाई से बचने का भी निर्देश दिया।

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    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल संदेह के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) बैंक खाता फ्रीज नहीं कर सकती। एक महिला का बैंक खाता फ्रीज करने के लिए ईडी को फटकार लगाते हुए अदालत पाया कि मनी लांड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट (पीएमएलए) के तहत फ्रीजिंग आदेश को जारी रखने की अनुमति देने वाले प्राधिकारी ने जरा भी विवेक का प्रयोग नहीं किया। अदालत ने माना कि फ्रीज जारी रखने के लिए ईडी के आवेदन और ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश ने धारण, निरंतरता और पुष्टि की कानूनी अवधारणाओं को मिलाकर अंततः खिचड़ी परोस दी।

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    अदालत ने उक्त टिप्पणी ईडी की अपील याचिका पर की, जिसमें पूनम मलिक नामक महिला का खाता डी-फ्रीज करने के पीएमएलए ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा कि प्राधिकारी, संपत्ति की जब्ती या फ्रीजिंग के तुरंत बाद पीएमएलए के आदेश का पालन किए बिना फ्रीजिंग आदेश को बनाए रखने या जारी रखने का आदेश पारित नहीं कर सकता है।

    पीठ ने कहा कि ईडी को ऐसा करने की अनुमति देना न्याय का उपहास होगा, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति को पीएमएलए द्वारा गारंटीकृत प्रक्रियात्मक सुरक्षा से वंचित किया जा सकेगा। ईडी ने तर्क दिया था कि पूनम मलिक के खातों में जमा नकदी अस्पष्ट थी और स्टर्लिंग बायोटेक समूह के आरोपित कार्यकारी गगन धवन के ड्राइवर के रूप में काम करने वाले उनके पति रंजीत मलिक धन-शोधन गतिविधियों से जुड़ी थी। एजेंसी ने दावा किया कि पूनम मलिक के पति ने 2017 से जांच के अधीन पांच हजार करोड़ रुपये के धोखाधड़ी मामले में नकद प्रबंधक के रूप में काम किया था।

    हालांकि, मामले पर विचार करने के बाद पीठ ने फैसला सुनाया कि एजेंसी मलिक की धन तक पहुंच को प्रतिबंधित करने से पहले अनिवार्य कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रही। अदालत ने कहा कि इनमें ऐसी कोई सामग्री नहीं दी गई जिससे यह साबित हो कि ईडी के अधिकारियों ने पीएमएलए के तहत अनिवार्य विश्वास करने के कारण दर्ज किए थे। आदेशों में केवल इतना कहा गया था कि संदेह है कि मलिक के खातों में धनशोधन का पैसा है।

    पीठ ने कहा कि संदेह को विश्वास करने के कारण के बराबर नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसी कार्रवाई अनुच्छेद 300ए के तहत नागरिक के संपत्ति के संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करती है और इसके पीछे अनुमान के बजाय ठोस तथ्य होने चाहिए। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ईडी के बैंक खातों को जब्ती करने के आदेश कानूनन गलत थे और उन्हें रद किया जाना चाहिए, जैसा कि पीएमएलए ट्रिब्यूनल ने किया था।

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