कैदियों के पैरोल में देरी पर हाईकोर्ट सख्त, दिल्ली सरकार को सुनाई खरी खोटी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पैरोल में देरी को लेकर दिल्ली सरकार की आलोचना की। अदालत ने कहा कि लंबी सजा काट रहे कैदियों के प्रति अधिकारियों में संवेदनशीलता की कमी है। न्यायालय ने पैरोल आवेदनों पर समय पर निर्णय न लेने पर नाराजगी व्यक्त की, जिससे कैदियों में अशांति और निराशा फैलती है। अदालत ने प्रमुख सचिव (गृह) को इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने के लिए तलब किया और दोषी को कुछ शर्तों के साथ चार सप्ताह की पैरोल दी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पैरोल में देरी को लेकर दिल्ली सरकार की आलोचना की।
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक हत्या के दोषी को पैरोल देने से इनकार करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, दिल्ली जेल नियम, 2018 के उल्लंघन के लिए दिल्ली सरकार के संबंधित अधिकारियों की कड़ी आलोचना की है।
न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों में लंबी सजा काट रहे कैदियों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अधिकारी यह समझने में विफल रहे हैं कि निर्धारित समय सीमा के भीतर पैरोल या फर्लो न देने से केवल अशांति पैदा होती है और राहत का उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
ऐसे कैदियों को राहत देने का उद्देश्य उन्हें पारिवारिक संबंध स्थापित करने और लंबी कैद के कारण होने वाले अवसाद और तनाव से बचाने में सक्षम बनाना है। पीठ ने कहा कि ऐसा न करने पर जेल में अनुशासनहीनता और अराजकता फैल सकती है।
अदालतों में ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, पीठ ने दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) को 6 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि बार-बार दिए गए निर्देशों का कोई नतीजा नहीं निकला है। पीठ ने प्रमुख सचिव (गृह) को अदालत में पेश होने और यह बताने का निर्देश दिया कि इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है।
अदालत ने एक हत्या के दोषी द्वारा एक महीने की पैरोल की मांग करने वाले आवेदन पर निर्णय न लेने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त टिप्पणी और आदेश दिया।
पीठ ने कहा कि अधिकारियों द्वारा कैदियों को पैरोल और फर्लो देने से इनकार करने के कई मामले सामने आए हैं, जो इन प्रावधानों को लागू करने के मूल उद्देश्य के प्रति उनकी उपेक्षा को दर्शाता है।
दोषी ने याचिका दायर कर कहा कि उसने 22 जुलाई को पैरोल के लिए आवेदन किया था, जिसमें उसने सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को बनाए रखने और लंबी कैद के कारण उत्पन्न आंतरिक तनाव और अवसाद को कम करने की आवश्यकता का हवाला दिया था।
उसने यह भी कहा कि एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी, सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को 35,000 रुपये के निजी मुचलके और एक जमानती पर चार सप्ताह की पैरोल प्रदान की। साथ ही, उसे प्रत्येक रविवार को संबंधित थाने के थाना प्रभारी के समक्ष उपस्थित होने और पैरोल अवधि समाप्त होने पर जेल में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
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