'समाज में हर जीवन है सुरक्षा और सम्मान का हकदार...', भ्रूण लिंग जांच को लेकर दिल्ली HC की अहम टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने भ्रूण जांच कर लिंग बताने के मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि लिंग निर्धारण महिला जीवन के मूल्य को कम करती है। इससे समाज में गलत संदेश जाता है कि लड़कियों का जीवन कम महत्वपूर्ण है। अदालत ने ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई की आवश्यकता बताई ताकि हर जीवन सुरक्षित रहे।

अवैध तरीके से अल्ट्रासाउंड कराने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भ्रूण जांच कर बच्चे के लिंग की जानकारी देने से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाया है। आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की कि लिंग निर्धारण करना न सिर्फ महिला जीवन के मूल्य को कम करती है, बल्कि एक भेदभाव मुक्त समाज की आशा पर कुठाराघात करती है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा की पीठ ने कहा कि यह प्रथा एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देती है जिसमें लड़कियों को समुदाय के समान सदस्य के बजाय बोझ समझा जाता है और गर्भवती महिलाओं को असुरक्षित चिकित्सा प्रक्रियाओं के संपर्क में लाकर उन्हें खतरे में डालती है।
पीठ ने कहा कि अगर ऐसी प्रथाओं को जारी रहने दिया गया, तो यह संदेश जाएगा कि मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं है। ऐसे में यह आवश्यक है कि कानून निर्णायक रूप से हस्तक्षेप करे और यह स्पष्ट संदेश दे कि लिंग की परवाह किए बिना हर जीवन सुरक्षा और सम्मान का हकदार है।
पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 85, 316(2), 89 और 3(5) के तहत की गई प्राथमिकी में आरोपित की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। आरोपित पर तीसरी बार गर्भावती हुई एक महिला का अवैध रूप से अल्ट्रासाउंड करने का आरोप है। इसमें भ्रूण के लिंग की पहचान बच्ची के रूप में उजागर की गई थी।
इतना ही नहीं उसके ऑपरेशन के बाद उसकी मृत्यु हो गई। यह भी आरोप लगाया गया था कि वह व्यक्ति पीएनडीटी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अवैध लिंग निर्धारण की सुविधा देने वाली एक संगठित योजना का हिस्सा था।
पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार अभियुक्त और उसका बेटा भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने और एक ऐसी प्रथा को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से अवैध अल्ट्रासाउंड करने के लिए सक्रिय रूप से मिलकर काम कर रहे थे।
पीठ ने कहा कि भ्रूण के लिंग का निर्धारण करना और उस जानकारी के आधार पर कार्रवाई करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि ऐसी घटना संकेत देती है कि कुछ जीवन अपने लिंग के कारण दूसरों की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की लापरवाही या ढिलाई दूसरों को इसी तरह के कृत्य करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
पीठ ने कहा कि ऐसे में समाज के व्यापक हितों की रक्षा और प्रत्येक अजन्मी बालिका और गर्भ धारण करने वाली महिला के अधिकारों की रक्षा के लिए भी कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जांच में शामिल नहीं हुआ है और इस स्तर पर उससे हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।

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