प्रदूषण से जंग में सालों से चलाए जा रहे हवा में तीर, दिल्ली में सरकारें बदलीं पर नहीं सुधरे हालात
दिल्ली में प्रदूषण की समस्या वर्षों से बनी हुई है। कई सरकारों ने इसे कम करने की कोशिश की, लेकिन हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि दिल्ली के नागरिकों को स्वच्छ हवा मिल सके। सरकारों को मिलकर प्रभावी नीतियां बनानी होंगी।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली में नासूर बन चुके वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह वाहनों का धुंआ, यातायात जाम और इस जाम के कारण सड़कों पर रेंगते वाहन हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बार बार पड़ती रही कड़ी फटकार के बावजूद दिल्ली की सरकार इसी समस्या का समाधान नहीं निकाल पा रही है।
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बेहतर हो नहीं पा रही और सड़कों पर निजी वाहन बढ़ते जा रहे हैं। चाहे 15 साल शासन करने वाली कांग्रेस सरकार रही हो या 11 साल तक राज चलाने वाली आप सरकार और चाहे अब मौजूदा भाजपा सरकार.. सार्वजनिक परिवहन और लचर ही हुआ है। डीटीसी के बेड़े में बसों की संख्या घटती ही गई है।

विडंबना यह कि समस्या की मूल जड़ से वाकिफ होते हुए भी सरकारें हवा में तीर चलाते हुए जनता को गुमराह करने का काम ही करती रही हैं।
आप सरकार ने स्मॉग टावर, सुपरसाइट, बायोडीकंपोजर और ड्रोन से मिस्ट स्प्रे कराने जैसे हवाहवाइ उपायों पर जनता के करोड़ों रुपये खर्च किए थे, जबकि भाजपा सरकार ने विशेषज्ञों की कड़ी आपत्ति के बावजूद अपने सिर क्लाउड सीडिंग की नाकामी का सेहरा बांधा लिया है।
प्रदूषण से जंग में सरकारों की गंभीरता का आलम इससे भी पता चलता है कि पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में जमा राशि का भी सदुपयोग नहीं हो पा रहा तो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत राजधानी को मिल रहे अनुदान का भी 50 प्रतिशत तक व्यय नहीं हो पाया।
आनंद विहार में ट्रायल के दौरान ही फ्लॉप हुआ ड्रोन से मिस्ट स्प्रे
प्रदूषण कम करने के लिए ड्रोन से मिस्ट स्प्रे करने का पूर्व उदाहरण देखने को नहीं मिलता। इसका इस्तेमाल निगरानी के लिए ही किया जाता रहा है। कोलकाता में भी छह हॉट स्पॉट के लिए 20 से अधिक ड्रोन केवल प्रदूषण की निगरानी के लिए लगाए गए हैं। लेकिन फिर भी आठ नवंबर 2024 को आप सरकार के कार्यकाल में आनंद विहार में ड्रोन से मिस्ट स्प्रे का ट्रायल हुआ।
बताया जाता है कि 15 किग्रा वजन के ड्रोन की कीमत 4.5 लाख रुपये होती है। 15 हजार एमएएच लीथियम बैटरी वाला ड्रोन एक बार चार्ज होने पर 45 मिनट तक उड़ता है। इसे बहुत दूर अथवा अधिक ऊंचाई तक नहीं ले जाया जा सकता।

आनंद विहार में 8 नवंबर 2024 को ड्रोन से मिस्ट स्प्रे का ट्रायल। जागरण आर्काइव
बैटरी खत्म होने पर यह गिर भी सकता है। इसे चलाने के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से मान्यता प्राप्त पायलट चाहिए जो आठ घंटे के लिए आठ से 10 हजार रुपये तक लेता है। कोलकाता में ड्रोन के इस्तेमाल पर प्रतिमाह 20 से 25 लाख रुपया खर्च हो रहा रहा है।
दिल्ली के 13 हॉट स्पॉट के लिए चार से पांच ड्रोन प्रति की दर से 52 से 65 ड्रोन चाहिए होंगे। यानी प्रतिमाह 60 से 75 लाख रुपये का खर्चा। अब अगर परिणाम की बात करें तो शुक्रवार को आनंद विहार का एक्यूआइ 413, शनिवार को 377 और रविवार को 350 था। रविवार को मिस्ट स्प्रे हुआ भी नहीं। यानी तीन दिन में सबसे कम एक्यूआइ उस दिन रहा, जिस दिन ड्रोन उड़ा ही नहीं। कहने का मतलब, ड्रोन नहीं बल्कि हवा ने कम किया प्रदूषण।
सफेद हाथी साबित हुआ स्मॉग टावर
सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर अगस्त 2021 में स्मॉग टावर लगाया गया था। दिल्ली सरकार ने इसे लगाने के लिए करीब 23 करोड़ का व्यय किया था। सितंबर 2021 में एक अन्य स्मॉग टावर सीपीसीबी द्वारा आनंद विहार में लगाया गया था।
दो वर्षों तक आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं की एक टीम ने विशिष्ट क्षेत्रों में स्वच्छ वायु प्रदान करने में इस स्मॉग टावर की दक्षता और मुख्य प्रदूषक तत्वों पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर कम करने में इसके प्रदर्शन का अध्ययन किया।

बाबा खड़क सिंह मार्ग स्थित स्माग टावर। आर्काइव
अध्ययन के निष्कर्षों से परिचित दिल्ली सरकार के सूत्र बताते हैं कि 50 मीटर के दायरे में यह टावर हवा को 70 से 80 प्रतिशत, 300 मीटर के दायरे में 15-20 प्रतिशत और 500 मीटर तक 10 से 15 प्रतिशत ही साफ किया जा सकता है। एक किमी से ज्यादा के दायरे में यह बिल्कुल निष्प्रभावी होने लगता है। इसीलिए स्वयं दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की सिफारिश पर इसे बंद कर दिया गया था।
डीपीसीसी के सूूत्र बताते हैं कि एनजीटी में दाखिल एक रिपोर्ट में डीपीसीसी ने अप्रभावी स्मॉग टावर को लेकर यहां तक कहा कि टावर स्थापित करना व्यावहारिक नहीं है, इसलिए मौजूदा टावरों को संग्रहालयों में बदला जा सकता है। वहीं कनाट प्लेस में स्मॉग टावर की प्रभावशीलता पर अपने अध्ययन में आईआईटी-बाम्बे ने पाया था कि दो वर्षों में पीएम-10 के लिए 100-199 मीटर, 200-399 मीटर और 400 मीटर से अधिक की दूरी पर क्रमशः 17 प्रतिशत, 16 प्रतिशत और 16 प्रतिशत पाया गया था।
बायो डीकंपोजर पर खर्च हुए हर साल करीब 40 लाख रुपये
आप सरकार ने राजधानी में पराली जलाने से रोकने के लिए 5,000 एकड़ बासमती और गैर बासमती धान के खेतों में पूसा का बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव करना शुरू किया। कहा गया कि माइक्रोबियल घोल पूसा बायो डीकंपोजर को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है जो धान के पराली को 15 से 20 दिनों के अंदर खाद में बदल सकता है।

18 अक्टूबर 2022 को बाहरी दिल्ली के हिरंकी गांव स्थित खेत में बायो डीकंपोजर का किया जा रहा छिड़काव। जागरण आर्काइव
सरकार ने इसे सीधे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से खरीदा और दस लीटर घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव किया। कई साल तक किए गए इस प्रयोग पर हर बार करीब 40 लाख रूपये का खर्च आया जबकि इसे प्रचार प्रसार पर इससे कहीं ज्यादा खर्च कर दिया गया। नतीजा, इस उपाय से भी कोई बहुत सकारात्मक नहीं निकला। इसकी वजह यह भी रही कि पराली जलाने की घटनाएं राजधानी में नहीं के बराबर ही होती रही हैं।
राउज एवेन्यू में शुरू की गई सुपरसाइट भी पड़ी बंद
दिल्ली में प्रदूषण की सही प्रामाणिक स्थिति जानने के लिए आप सरकार ने पहले वाशिंगटन डीसी यूनिवर्सिटी से करार किया तो फिर आईआईटी कानपुर से हाथ मिला राउज एवेन्यू में एक सुपरसाइट स्थापित कर सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी शुरू कराई। लेकिन वाशिंगटन डीसी वाली रिपोर्ट आप सरकार के अनुकूल नहीं निकली जबकि आईआईटी कानपुर से यह कार्य इसलिए वापस ले लिया गया क्योंकि डीपीसीसी के तत्कालीन चेयरमैन अश्विनी कुमार को यह कांट्रेक्ट देने में पारदर्शिता नहीं मिली थी।
नतीजा, सुपरसाइट एवं सोर्स अपार्शन्मेंट स्टडी सवालों के घेरे में तो आ ही गई, कुछ माह में ही बंद भी कर दी गई। आज आलम यह है कि राउज एवेन्यू स्थित सर्वोदय स्कूल में सुपरसाइट और उसके उपकरण धूल फांक रहे हैं। इस पर खर्च हुए करीब 12 करोड़ भी व्यर्थ ही गए।
क्लाउड सीडिंग भी रही बेनतीजा
दिल्ली कैबिनेट ने सात मई 2025 को पांच क्लाउड-सीडिंग परीक्षणों के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी, जिसकी कुल परियोजना लागत 3.21 करोड़ रुपये थी। यानी प्रत्येक परीक्षण की लागत लगभग 64 लाख रुपये। 28 अक्टूबर को इसके दो ट्रायल हुए। आईआईटी कानपुर का सेसना विमान मेरठ की तरफ से दिल्ली में दाखिल हुआ।

28 अक्टूबर 2025 को बाहरी दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के लिए सेसना विमान से इस तरह छोड़े गए फ्लेयर्स। सौजन्य : दिल्ली सरकार
पश्चिमी विक्षोभ के कारण बादलों से घिरे आसमान में दिल्ली सरकार ने मंगलवार को बुराड़ी के आसपास उत्तर-पश्चिम दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के दो परीक्षण किए। दोनों परीक्षणों में आठ-आठ फ्लेयर्स से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिकों का मिश्रण बादलों में छोड़ा गया। हालांकि दिल्ली में वर्षा एक बार भी नहीं हुई, खासकर उन इलाकों में जो उड़ान पथ के मार्ग में थे।
जब तक दिल्ली के प्रदूषण की मूल जड़ पर प्रहार नहीं होगा, कोई फायदा नहीं होने वाला। वायु प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर नौटंकी ज्यादा हो रही है जबकि गंभीरता बहुत कम नजर आती है। ई- बसें भी बेमानी साबित हो रही हैं क्योंकि उनमें यात्री नजर नहीं आते। प्रदूषण खत्म करने के लिए दिखावटी नहीं, कारगर और ठोस उपाय चाहिए।
-सुनीता नारायण, महानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई)

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