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    Delhi Pollution: पराली नहीं तो कौन बना रहा दिल्ली की हवा 'जहरीली', DSS के डेटा ने किसे ठहराया जिम्मेदार?

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 04:08 PM (IST)

    दिल्ली में दीपावली के बाद वायु प्रदूषण बढ़ गया है। लोग पराली को दोष देते हैं, लेकिन आईआईटीएम पुणे के डेटा के अनुसार, दिल्ली में ऊर्जा, परिवहन, उद्योग जैसे कई कारण हैं। 26 नवंबर को पराली का योगदान 0.88% था, जबकि अज्ञात स्रोतों का 33.39%। वाहनों का उत्सर्जन भी एक बड़ा कारण है। प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाकर ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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    शनिवार, 22 नवंबर को नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर छाए स्मॉग के बीच गुजरता साइकिल सवार। सौजन्य- पीटीआई

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दीपावली के बाद से वायु प्रदूषण का प्रकोप जारी है। ऐसा पहली बार नहीं है बल्कि हर साल दिल्लीवासी जहरीली हवा का सामना करने को मजबूर होते हैं। इसे लेकर हर किसी के जहन में एक ही सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली की हवा को 'जहरीली' बनाने का जिम्मेदार कौन है?

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    आमतौर लोग मानते हैं कि पंजाब और हरियाणा के खेतों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली के धुएं की वजह से दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन आईआईटीएम पुणे के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) का डेटा एक अलग तस्वीर दिखाता है। DSS भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। उदाहरण के तौर पर 26 नवंबर के आंकड़े पर डालिए एक नजर...

    सोर्स प्रदूषण का हिस्सा (%)
    दिल्ली एनर्जी 1.7
    दिल्ली ट्रांसपोर्ट 21.66
    दिल्ली और आसपास के उद्योग 4.26
    कूड़ा जलाने से 1.9
    निर्माण 3.17
    सड़क की धूल 1.6
    रिहायशी 5.41
    अन्य सेक्टर 1.4
    गाजियाबाद 0.96
    गौतमबुद्ध नगर 1.3
    झज्जर 7.54
    रोहतक 5.15
    सोनीपत 3.87
    पानीपत 0.07
    बागपत 0.78
    गुरुग्राम 2.09
    भिवानी 1.26
    जींद 2.35
    पराली 0.88
    अन्य (अज्ञात) 33.39

    अक्टूबर की शुरुआत में दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने में पराली जलाने का योगदान लगभग कुछ भी नहीं था, लेकिन 17 अक्टूबर तक, इसका हिस्सा बढ़कर 2.62 प्रतिशत हो गया और इसी समय एक्यूआई 250 को पार कर गया था। इसके बाद नवंबर में हालात और बदतर हो गए।

    12 नवंबर को पराली का दिल्ली के प्रदूषण में हिस्सा 22.47 परसेंट था, और एक्यूआई बढ़कर 418 (यानी गंभीर श्रेणी) में पहुंच गया था। इसके बाद अगले हफ्ते 18-20 नवंबर को इसका हिस्सा 5.4 परसेंट और 2.8 परसेंट के बीच ऊपर-नीचे होता रहा, फिर भी एक्यूआई 325 से ऊपर यानी बेहद खराब श्रेणी में रहा।

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    ऊपर दिख रहे ग्राफ के अनुसार देखा जा सकता है कि 1 अक्टूबर से 26 नवंबर तक सिर्फ आठ ऐसे दिन रहे हैं जब दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 10% से अधिक रहा। इसमें सिर्फ 12 नवंबर ऐसा दिन था जब पराली का दिल्ली के प्रदूषण में हिस्सा 20% से अधिक रहा। इस तरह यह साफ देखा जा सकता है कि दिल्ली के प्रदूषण की बड़ी वजह ट्रांसपोर्ट व ऐसे कारक हैं जिनका स्रोत ज्ञात नहीं है।

    दिल्ली को और कौन प्रदूषित कर रहा है?

    दिल्ली की जहरीली हवा सिर्फ खेतों में पराली जलाने की वजह से नहीं है बल्कि यह इलाके में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, इंडस्ट्रियल एक्टिविटी और अज्ञात वजहों का एक मिला-जुला रूप है। इसके अलावा डिसीजन सपोर्ट सिस्टम के डेटा से पता चलता है कि दिल्ली में प्रदूषण के और भी बड़े कारण हैं। राजधानी से सटे शहर, जिनमें गौतमबुद्ध नगर, गुरुग्राम, करनाल, मेरठ और दूसरे शहर शामिल हैं, जो दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने में 29.5 प्रतिशत योगदान देते हैं, इसके बाद ट्रांसपोर्ट का 19.7 प्रतिशत हिस्सा है।

    Air Pollution (4)

     

    क्या कहते हैं DSS के आंकड़े

    डिसीजन सपोर्ट सिस्टम के मुताबिक, मंगलवार को पराली जलाने से सिर्फ 1.5 प्रतिशत प्रदूषण हुआ जबकि दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन का योगदान 19.6 प्रतिशत था, जो सभी स्रोतों में सबसे ज्यादा है। इसके एक दिन बाद बुधवार को दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन का योगदान 21.6 प्रतिशत था, जो सभी स्रोतों में सबसे अधिक है।

    ट्रांसपोर्ट के अलावा घरों से निकलने वाला एमिशन (4.8 प्रतिशत), आस-पास की इंडस्ट्रीज (3.7 प्रतिशत) और कंस्ट्रक्शन की धूल (2.9 प्रतिशत) हिस्सा दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने में शामिल है, लेकिन इससे भी हैरान करने वाली बात है कि इसमें 34.8% हिस्सा अज्ञात सोर्स से आता है। इससे इसलिए भी चिंता बढ़ जाती है क्योंकि जब तक प्रदूषण के सोर्स का पता नहीं चल जाता, तब तक उसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता। मालूम हो कि यह आईआईटीएम पुणे के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) का डाटा है, जो भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

    स्मॉग के बीच कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रदूषण के कणों का उत्सर्जन कम से कम हो, लेकिन यह तभी संभव है जब गाड़ियां कम चलें, कूड़ा न जले, निर्माण कार्यों में धूल न उडे़, सड़कें साफ रहें, पानी का छिड़काव हो। अधिक प्रदूषण के दिनों में ऐसे ही कदमों से राहत मिल सकती है। सार्वजनिक परिवहन की मजबूती पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही ग्रेप में बदलाव के साथ उसका सख्ती से पालन भी जरूरी है।


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    डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड