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    JNU के छात्र संघ चुनाव में ABVP की हार, जमीनी स्तर पर सतर्कता की कमी और वाम दलों का गठबंधन बना रोड़ा

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 11:50 PM (IST)

    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी को हार मिली है। वामपंथी गठबंधन ने अध्यक्ष सहित सभी प्रमुख पदों पर कब्जा जमाया। एबीवीपी की हार के कारणों में जमीनी स्तर पर सतर्कता की कमी और वाम दलों का गठबंधन शामिल है। वामपंथी गठबंधन ने छात्र हितों पर ध्यान केंद्रित किया और कैंपस की राजनीतिक संस्कृति के साथ तालमेल बिठाकर जीत हासिल की।

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    जेएनयू छात्र संघ चुनाव में लेफ्ट गठबंधन ने चारों सीटें जीती।

    लोकेश शर्मा, नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ चुनाव के नतीजों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को इस बार करारी हार का सामना करना पड़ा है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव चारों पदों पर वामपंथी गठबंधन ने कब्जा जमाते हुए एक बार फिर कैंपस की पारंपरिक वैचारिक धारा को मजबूत किया है।

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    इस हार के बीच पीछे एबीवीपी की कई वजह जमीनी स्तर पर सतर्कता और वाम दलों का आपस में गठबंधन करना रहा। इससे एबीवीपी का वोट वाम गठबंधन के पास चला गया।

    वैचारिक माहौल और कैंपस की परंपरा

    जेएनयू की छात्र राजनीति लंबे समय से वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रही है। भले ही बीते कुछ वर्षों में एबीवीपी ने अपनी उपस्थिति मजबूत की थी, लेकिन विश्वविद्यालय का बड़ा तबका अब भी वामपंथी विमर्श, बहस और आंदोलन की संस्कृति को अहमियत देता है। 2025 के चुनाव में यह परंपरा फिर से स्पष्ट रूप से नजर आई।

    मुद्दों पर कमजोर पकड़

    इस बार चुनावी बहसों में लाइब्रेरी की सुविधाएं, हास्टल की व्यवस्था, मैस, महिला सुरक्षा, लैंगिक समानता और प्रशासनिक पारदर्शिता जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। वामपंथी गठबंधन ने इन मुद्दों पर लगातार अभियान चलाया, जबकि एबीवीपी की रणनीति मुख्यतः राष्ट्रीय मुद्दों और वैचारिक भाषणों तक सीमित रही। इससे छात्रों का एक बड़ा वर्ग खुद को उनसे जोड़ नहीं पाया।

    गठबंधन की ताकत बनाम अकेला मोर्चा

    वामपंथी संगठनों एसएफआइ, आइसा और डीएसएफ ने एकजुट होकर वाम गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ा, जबकि एबीवीपी अकेले मैदान में उतरी। इस एकता का असर मतदान में दिखा और वोटों का ध्रुवीकरण वामपंथ के पक्ष में गया। पिछले कुछ वर्षों में एबीवीपी पर सत्ताधारी विचारधारा का प्रतिनिधि होने का ठप्पा लगा, जिससे छात्र वर्ग का एक हिस्सा उससे दूर हुआ। वहीं, वाम गठबंधन की जमीनी पकड़ मजबूत रही मेस, हास्टल और लाइब्रेरी स्तर तक सक्रियता ने उन्हें फायदा दिलाया।

    मतदाता और प्रगतिशील एजेंडा

    महिला मतदाता पारंपरिक रूप से वाम गठबंधन के पक्ष में झुकते रहे हैं। जेंडर जस्टिस, सेफ कैंपस और फेमिनिस्ट एजेंडा पर निरंतर काम ने उन्हें फिर से वाम दल के करीब लाया। एबीवीपी की हार केवल वोटों के अंतर की नहीं, बल्कि विचारधारात्मक असंगति, स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और संगठनात्मक कमजोरी का परिणाम रही। इसके विपरीत, वामपंथी गठबंधन ने एकता, छात्र हितों पर फोकस और कैंपस की राजनीतिक संस्कृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीत हासिल की।