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    'मन की बात' की तर्ज पर अब सुनें 'खादी की बात', जान पाएंगे कारीगरों की संघर्ष से सफलता की गाथा

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 09:07 PM (IST)

    44वें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में 'खादी की बात' कार्यक्रम शुरू किया गया है, जहां खादी कारीगरों के संघर्ष और सफलता की कहानियां सुनाई जा रही हैं। उत्तर प्रदेश मंडप में हैंडलूम साड़ियाँ, विशेष रूप से टीशू सिल्क, आकर्षण का केंद्र हैं, जिनकी कीमत 1,000 रुपये से 2.80 लाख रुपये तक है। झारखंड मंडप में लाख की चूड़ियां भी महिलाओं को खूब पसंद आ रही हैं, जिससे 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।

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    44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में ''खादी की बात'' भी सुनी जा सकती है।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकप्रिय कार्यक्रम ''मन की बात'' की तर्ज पर 44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में ''खादी की बात'' भी सुनी जा सकती है। भारत मंडपम के हाल नं. छह में लगे खादी मंडप में इसके लिए बाकायदा एक स्टूडियो भी बनाया गया है। मेले में भाग लेने आए देश भर के खादी कारीगरों की संघर्ष से सफलता की गाथा को खादी और ग्रामोद्योग आयोग के विभिन्न आनलाइन प्लेटफार्म पर प्रसारित किया जा रहा है।

    जागरण से बातचीत में आयोग के अध्यक्ष मनोज कुमार ने बताया कि खादी कारीगरों का साक्षात्कार और उनके संघर्ष- सफलती की कहानी हर किसी के लिए प्रेरक कही जा सकती है। उन्हें सुनकर औरों के मन में भी जोश भरता है। इसीलिए इस साल खादी मंडप में ''खादी की बात'' शुरू की गई है।

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    एक हजार से लेकर 2.80 लाख तक की साड़ियां आकर्षण का केंद्र

    उत्तर प्रदेश मंडप में हैंडलूम का स्टाल भी मेला दर्शकों का भा रहा है। हैंडलूम साड़ी आजमगढ़ के मोहम्मद ताबिश ने बताया कि पिछले दो दशक से उनके पिताजी द्वारा इस व्यापार मेले में स्टाल लगाया जा रहा है और पिछले 10-15 सालों से वह भी आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी टीशू सिल्क की ये साडिय़ां लोगों को बहुत पसंद आ रही हैं। ताबिश ने बताया कि उनकी टीशू सिल्क की साडिय़ां रेखा, शबाना आजमी विद्या बालन आदि कई बालीवुड अभिनेत्रियां पहनती हैं।

    ताबिश ने बताया कि टीशू सिल्क के अलावा शाही कोरा, प्योर ओरगेंजा, कप्तान सिल्क, खड्डी जार्जेट को भी महिलाओं में पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा उनके पास ऐसी साड़ी भी है जिसे विटामिन डी की जरूरत होती है और साल में एक बार धूप दिखाना जरूरी होता है वरना उस साड़ी को जिस कीड़े से बनाया जाता है वो साड़ी को खा जाते हैं। ताबिश बताते हैं कि उनके पास इस समय 1000 हजार से लेकर दो लाख 80 हजार तक की साडिय़ां हैं जो महिलाओं को काफी पसंद आ रही हैं।

    लाख की चूड़ियां और कड़े भी आ रहे पसंद

    झारखंड मंडप का एक और महत्वपूर्ण आकर्षण लाख की चूड़ियां और कड़े का स्टाल है, जिसे झबर मल संचालित करते हैं। वे पिछले चार वर्षों से लगातार इस मेले में भाग ले रहे हैं। हर वर्ष महिलाओं के लिए नए व आधुनिक डिजाइन लेकर आते हैं। झबर मल बताते हैं कि उनके संगठन में लगभग 400 महिलाएं लाख की चूड़ियां बनाती हैं, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका प्राप्त होती है। यह हस्तकला न पारंपरिक भी है और महिला कारीगरों के लिए आर्थिक उन्नति का महत्वपूर्ण साधन भी बन चुकी है।