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    सावधान ! बिना सोचे हो रहा Antibiotics का जब-तब इस्तेमाल, 2050 तक 20 लाख लोगों को मौत के मुहाने पर लाएगा

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 09:04 PM (IST)

    नई दिल्ली मामूली बीमारियों में भी एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन Antimicrobial resistance (एएमआर) का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में एएमआर से हर साल लाखों मौतें हो रही हैं और यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो 2050 तक यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। इस समस्या से बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग सावधानीपूर्वक और डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए।

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    डॉक्टरों ने कहा- 2050 तक महामारी का रूप ले सकता है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जुकाम व बुखार जैसी मामूली बीमारी में भी मेडिकल स्टोर से Antibiotics लेने वाले सावधान हो जाएं। आपकी ये आदत Antimicrobial resistance (AMR) यानी रोगाणुरोधि प्रतिरोध की वजह बन रही है।

    यह वो स्थिति होती है, जिसमें रोगाणु (बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी) एंटीबायोटिक्स के प्रति Resistance विकसित कर रहे हैं। इसके चलते संक्रमण बढ़ने पर एंटीबायोटिक कारगर नहीं रहता है।

    यह भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट की 2019 से 2021 के बीच की स्टडी के मुताबिक भारत में एएमआर की वजह से तीन से चार लाख मौतें हर साल हो रही है।

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    यदि अभी से इसका प्रबंधन नहीं किया गया तो 2050 तक मौतों का आंकड़ा 20 लाख तक पहुंचने की आशंका है। प्रेस क्लब आफ इंडिया में बृहस्पतिवार को रिएक्ट एशिया पैसिफिक की ओर से आयोजित जनजागरूकता कार्यशाला में यह चिंता विशेषज्ञों ने जाहिर की।

    आईएमए-एएमआर स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष डाॅ. नरेंद्र सैनी ने कहा कि धरती पर बैक्टीरिया इंसानों से पहले वजूद में रहे हैं। ये हमारी त्वचा से लेकर शरीर के अंदर भी हैं। इनमें से कुछ फायदेमंद होते हैं और कुछ हानिकारक।

    बिना सोचे-समझे दवा लेकर हम फायदेमंद बैक्टीरिया को भी मार रहे हैं। सटीक क्लीनिकल जांच से डाॅक्टर शरीर को बीमार करने वाले बैक्टीरिया की पहचान करते हैं और उसी के अनुरूप एंटीबायोटिक्स का कोर्स चलाते हैं।

    कोर्स बीच में छोड़ने पर भी एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का खतरा रहता है। आखिरी एंटीबायोटिक डैप्टोमाइसीन की खोज 1983 में हुई, पर इसे मार्केट में आने में दो दशक का समय लगा।

    हमारे पास जो भी एंटीबायोटिक दवाएं हैं, वे अब काम नहीं कर रहीं। इसलिए एएमआर समस्या बनती जा रही है। उन्होंने ने कहा कि आईएमए ने इसके लिए एएमआर कमेटी बनाई है।

    पूरे भारत के डाक्टरों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि मरीज को बेवजह एंटीबायोटिक न लिखा जाए। सेंटर फार साइंस एंड इनवायरमेंट की राजेश्वरी सिन्हा ने कहा कि एक्सट्रीम वेदर यानी ज्यादा बारिश या बाढ़ जैसी स्थिति में बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और पैरासाइट्स तेजी से बढ़ते हैं।

    इनके चलते वाॅटर बाेर्न, फूड बाेर्न और वेक्टर बाेर्न बीमारियां भी बढ़ती हैं। इस अवसर पर रीएक्ट एशिया पैसिफिक के निदेशक डाॅ. एसएस लाल, ह्यूमन हेल्थ एक्सर्ट डाॅ. संगीता शर्मा, डाॅ. सैम प्रसाद, डाॅ. हाईफा, डाॅ. सरबजीत सिंह चड्ढा आदि रहे।

    एचआईवी और एएमआर सर्वाइवर ने साझा किए अनुभव

    एएमआर सर्वाइवर भक्ति चौहान ने पढ़ाई के दौरान उन्हें टीबी डिटेक्ट हुई, जबकि इसकी कोई फैमिली हिस्ट्री नहीं थी। डाॅक्टर ने दवा भी शुरू कर दी। बाद में जांच में पता चला कि यह सामान्य टीबी नहीं, बल्कि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी है। सटीक डायग्नोसिस से दवा का सही कोर्स चला। छह महीने में ही वे बिल्कुल स्वस्थ हो गईं।

    वहीं एचआईवी सर्वाइवर पूजा मिश्रा ने बताया कि 14 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई। 17 वर्ष की आयु में जब वे ग्रेजुएशन कर रही थीं, तब पति को टीबी हो गया। सामान्य तौर पर टीबी जांच के साथ ही एचआईवी टेस्ट भी कराया जाता है। मुझे भी टेस्ट के लिए बोला गया।

    रिपोर्ट एचआईवी पाॅजिटिव आई। सुनते ही मेरे हाथ-पांव ने काम करना ही बंद कर दिया। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। इसमें लाइफ टाइम दवा लेनी पड़ती है, पर मानसिक स्थिति के चलते शुरू में दवा छोड़ती रही। पिछले 15 वर्षों से लगातार दवा ले रही हूं और एकदम स्वस्थ हूं।

    पशुपालन में 70 फीसदी एंटीबायोटिक का प्रयोग

    पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅ. चंचल भट्टाचार्या ने कहा कि खाद्य आपूर्ति का बड़ा हिस्सा पशुपालन पर निर्भर है। लगभग 70 फीसदी एंटीबायोटिक का पशुपालन में इस्तेमाल भी खतरे की घंटी है। पोल्ट्री फार्मिंग, डेरी, मछली पालन में भी यह धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है।

    हम एंटीबायोटिक सीधे तौर पर न भी लें तो फूड चेन के जरिये यह हमारे शरीर में ट्रांसमिट हो रहा है। ऐसे में किसानों, पशु चिकित्सकों और कर्मचारियों को भी जागरूक करने की जरूरत है।

    इन आदतों से होगा एएमआर से बचाव

    • व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखें।
    • हाथों को साबुन या सैनिटाइजर से साफ करें।
    • खांसते या छींकते समय मुंह व नाक को रुमाल से ढंके।
    • भीड़ वाली जगहों पर यथासंभव मास्क का उपयोग करें।
    • एंटीबायोटिक्स का उपयोग विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह पर ही करें।
    • एंटीबायोटिक्स का कोर्स एक बार शुरू हो जाए तो बीच में न छोड़ें।
    • जो एंटीबायोटिक्स आप ले रहे हैं, उसे किसी और को न दें।

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