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    दिल्ली HC का बड़ा फैसला: भूमि अधिग्रहण पर मुआवजा 89,600 से बढ़ाकर 2 लाख रुपये प्रति बीघा किया

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 10:06 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1989 में शहरी विकास हेतु अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवजा बढ़ाया है। किलोकरी खिजराबाद नंगली रजापुर और गढ़ी मेंडू के ग्रामीणों को अब 2 लाख प्रति बीघा मिलेंगे जो पहले 89600 रुपये थे। अदालत ने सरकार को ब्याज सहित बकाया राशि चुकाने का आदेश दिया है और यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सभी भूस्वामियों को समान मुआवजा मिले।

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    अधिग्रहित की गई जमीनों के लिए भूस्वामियों का हाई कोर्ट ने बढ़ाया मुआवजा

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 1989 में शहरी विकास और यमुना नदी के तटीकरण के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहित की गई जमीनों के लिए भूस्वामियों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने मुआवजा बढ़ा दिया है।न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू की पीठ ने किलोकरी, खिजराबाद, नंगली रजापुर और गढ़ी मेंडू गांवों के ग्रामीणों के लिए मुआवजा 89,600 प्रति बीघा से बढ़ाकर दो लाख प्रति बीघा कर दिया।

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    भूस्वामियों को समान मुआवजा देना चाहिए

    इसके अलावा कई साल पहले अधिग्रहित की गई जमीनों के लिए सरकार को शेष राशि ब्याज सहित चुकाने का आदेश दिया गया। पीठ ने कहा कि सरकार को समान स्थिति वाले सभी भूस्वामियों को समान मुआवजा देना चाहिए।

    पीठ ने कहा कि अनिवार्य अधिग्रहण के मामलों में सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि जिन ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की जाती है, वे स्वेच्छा से पक्ष नहीं होते, बल्कि बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे में समान क्षेत्रों में समान मुआवजा न देने से भूस्वामियों के बीच भेदभाव होगा।

    140 से अधिक अपीलों पर सुनवाई

    अदालत ने उक्त आदेश चार गांवों के ग्रामीणों द्वारा दायर 140 से अधिक अपीलों पर सुनवाई करते हुए पारित किया। इनमें उनकी भूमि अधिग्रहण के बाद उन्हें दिए गए मुआवजे की राशि को चुनौती दी गई थी।

    भूमि अधिग्रहण कलेक्टर ने मूल रूप से बाढ़ के मैदान (सैलाबी) और नदी तल की भूमि के लिए राज्य की नीति के आधार पर 27,344 प्रति बीघा मुआवजा तय किया था।

    ग्रामीणों का तर्क था कि 1959 से 1989 में अधिसूचना की तारीख तक पाश काॅलोनियों के पास स्थित होने और बाजार के बढ़ते रुझान को देखते हुए वास्तविक मूल्य कहीं अधिक था।

    कीमत लगभग 2.07 लाख प्रति बीघा

    हालांकि, सरकार ने तर्क दिया कि बाढ़ के खतरे और नदी तल की प्रकृति के कारण अधिग्रहित भूमि का मूल्य सीमित था। मामले पर विचार करने के बाद पीठ ने अनुमान लगाया कि अधिग्रहण के समय किलोकर गांव की भूमि की कीमत लगभग 2.07 लाख प्रति बीघा होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि अन्य तीन गांवों की जमीनें उसी अधिसूचना के तहत अधिग्रहित की गई थीं और उनकी स्थलाकृति और संभाव्यता भी समान है, इसलिए उन्हें भी समान मुआवजा दिया जाना चाहिए।

    बढ़े हुए मुआवजे के हकदार

    पीठ ने कहा कि एक बार मुआवजे की एक विशेष दर न्यायिक रूप से निर्धारित हो जाने के बाद उस दर का लाभ उन सभी व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए जिनकी जमीन उसी अधिसूचना के तहत अधिग्रहित की गई थी। ऐसे में किलोकरी, खिजराबाद, नंगली रजापुर और गढ़ी मेंडू गांवों में जिन लोगों की जमीन इसी तरह अधिग्रहित की गई है। वे भी बढ़े हुए मुआवजे के हकदार होंगे।

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