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    नौ साल बाद कोर्ट से दुष्कर्म का मामला झूठा करार, अब आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ चलेगा मुकदमा

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 07:24 PM (IST)

    कड़कड़डूमा कोर्ट ने दुष्कर्म के एक नौ साल पुराने मामले को झूठा बताते हुए आरोपी को बरी कर दिया है। अदालत ने आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ झूठी गवाही देने और झूठा मुकदमा दायर करने के लिए कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया है। महिला को जुर्माना और सात साल तक की कैद हो सकती है।

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    नौ साल बाद कोर्ट से दुष्कर्म का मामला झूठा करार, महिला के खिलाफ चलेगा मुकदमा

    आशीष गुप्ता, पूर्वी दिल्ली। दुष्कर्म के नौ साल पुराने मामले को झूठा करार देते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया। साथ ही आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ झूठी गवाही और झूठा मुकदमा दायर करने के आरोप में कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया।

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    महिला को जुर्माने के अलावा सात साल तक की सजा हो सकती है। कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि झूठे आरोप न केवल निर्दोष व्यक्ति को मानसिक आघात और सामाजिक कलंक झेलने पर मजबूर करते हैं, बल्कि वास्तविक पीड़िताओं के न्याय की राह भी कठिन बना देते हैं।

    कोर्ट ने टिप्पणी की, हमारे सामाजिक परिवेश में, भले ही बरी होने का फैसला मामला बंद कर दे, लेकिन आरोप का अपमान अक्सर बना रहता है। समाज फैसले से ज्यादा आरोप को याद रखता है।

    खासकर इस तरह के झूठे आरोपों के मामलों में प्रतिष्ठा पर लगा दाग गहरा और स्थायी होता है। कोई भी न्यायिक निर्णय इसे पूरी तरह से मिटा नहीं सकता।

    पांडव नगर की एक कंपनी में कार्यरत महिला कर्मचारी ने मालिक पर दुष्कर्म और धमकी देने का गंभीर आरोप लगाते हुए अप्रैल 2016 में मंडावली पुलिस थाने में प्राथमिकी कराई थी।

    महिला ने आरोप लगाया था कि आठ फरवरी 2016 को जब वह कार्यालय में अकेली थी, तब कंपनी के मालिक ने उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था। इसके एक माह बाद आठ मार्च को आरोपी ने कार्यालय में जबरन उसके साथ दुष्कर्म किया और शादी का भरोसा दिलाया।

    महिला ने यह आरोप भी लगाया था कि 26 मार्च 2016 को आरोपी उसे परिवार से मिलवाने के बहाने पटना ले गया और रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में उसके पहचान पत्र पर कमरा लेकर फिर से दुष्कर्म किया।

    दिल्ली लौटने पर आरोपी ने उसे और उसकी बेटी को जान से मारने की धमकी दी थी। इस मामले में कंपनी मालिक को गिरफ्तार किया था, वह करीब 15 दिन न्यायिक हिरासत में रहे। फिर उन्हें जमानत मिल गई थी। जुलाई 2017 में कंपनी मालिक पर आरोप तय कर दिए गए थे।

    आरोपी कंपनी मालिक की ओर से वकील महेश शर्मा ने पक्ष रखते हुए महिला पर वसूली के लिए झूठा मुकदमा करने का आरोप लगाया। अभियोजन की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक रविकांत कुमार सत्यार्थी ने पक्ष रखा। ट्रायल में इस मामले में 16 लोगों की गवाही हुई।

    कोर्ट के आदेश के मुताबिक महिला की मेडिकल जांच में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई। अभियोजन की ओर से पेश गवाहों ने बताया कि कार्यालय और पटना के होटल में दुष्कर्म की कोई घटना नहीं हुई थी।

    कोर्ट ने पाया कि महिला ने पटना के होटल में दुष्कर्म को लेकर न ही स्थानीय पुलिस स्टेशन और न ही दिल्ली लौटने पर आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को कोई शिकायत दी। घर लौटने के बाद वह काफी दिन खामोश रही। तब चार अप्रैल को 2016 को उसने मंडावली थाने में प्राथमिकी कराई।

    ऐसे में गवाहों के बयान से साफ होता है कि कार्यालय व पटना में कोई घटना नहीं हुई। महिला ने दावा किया था कि उसने पहले भी शिकायत दी थी, जिसे पुलिस ने लौटा दिया था।

    इसका कोई रिकार्ड पेश नहीं किया गया। इसके साथ ही महिला के बयानों में कई विरोधाभास सामने आए। कोर्ट ने पाया कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए उसके बयान और कोर्ट में कही गई बातें मेल नहीं खातीं।

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