Trade War Impact: अब ग्रीन हाइड्रोजन से चलेंगे ट्रक, पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुने गए देश के ये 10 हाईवे
भारत व्यापार को बढ़ावा देने के लिए लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रकों के संचालन के लिए 10 राजमार्गों पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का फैसला किया है। इस पहल का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना और लॉजिस्टिक्स लागत को सिंगल डिजिट में लाना है।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। दुनिया के प्रमुख देशों के बीच चल रहे ट्रेड वार को देखते हुए भारत भी अपना निर्यात बढ़ाने के प्रयासों में जुटा है। इस राह में बड़ी चुनौती लाजिस्टिक दर मानी जा रही है। केंद्र सरकार ने ऐसे विकल्पों पर काम शुरू कर दिया है, जो न सिर्फ लाजिस्टिक दर कम करें, बल्कि कार्बन न्यूट्रल के लक्ष्य की दिशा में भी देश को गति मिले।
ऐसे बड़े दृष्टिकोण के साथ केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन से ट्रकों के संचालन का निर्णय लिया है। इसकी सफलता और चुनौतियों के आकलन के लिए देशभर के 10 राजमार्गों को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है।
भारत की लाजिस्टिक दर को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सरकार चौतरफा प्रयास कर रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अब लगातार दोहरा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना भारत को पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनाना है।
इसके लिए निर्यात बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, लेकिन इसमें बड़ी चुनौती लाजिस्टिक दर के रूप में सामने आ रही है। वर्तमान में भारत की लाजिस्टिक दर 14-16 प्रतिशत है, यूरोप एवं अमेरिका में 12 प्रतिशत, जबकि चीन में मात्र आठ प्रतिशत है।
हालांकि, वह दावा भी करते हैं कि बेहतर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण लाजिस्टिक दर छह प्रतिशत घटने की रिपोर्ट आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों ने दी है, लेकिन अब सरकार का लक्ष्य इसे सिंगल डिजिट में लाने का है।
नितिन गडकरी के मुताबिक, इस दिशा में प्रयास बढ़ाते हुए उनके मंत्रालय ने वेस्ट टू वेल्थ कांसेप्ट पर काम करते हुए ट्रकों को ग्रीन हाइड्रोजन से चलाने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि कुछ आटोमोबाइल कंपनियों ने इस कांसेप्ट पर काम करते हुए ग्रीन हाइड्रोजन वाले इंजन बनाए हैं और बाकी कंपनियों ने इंजन उसी के अनुरूप परिवर्तित करना शुरू कर दिया है।
ऐसी ही प्रमुख कंपनियों के साथ मंत्रालय देश के 10 हाईवे पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। इन चिन्हित हाईवे पर ग्रीन हाइड्रोजन फिलिंग स्टेशन स्थापित कर ट्रकों का संचालन कराया जाएगा और फिर देखा जाएगा कि लाजिस्टिक दर में क्या फर्क आता है और बाकी क्या-क्या चुनौतियां सामने आती हैं।
ये हाईवे किए गए चिन्हित
- ग्रेटर नोएडा-दिल्ली-आगरा
- भुवनेश्वर-कोणार्क-पुरी
-अहमदाबाद-वड़ोदरा-सूरत
- साहिबाबाद-फरीदाबाद-दिल्ली
- पुणे-मुंबई
- जमशेदपुर-कलिंग नगर
- तिरुअनंतपुरम-कोच्चि
- कोच्चि-येदापल्ली
- जामनगर-अहमदाबाद
-विशाखापत्तनम-बय्यावरम
ग्रीन हाइड्रोजन की लागत अभी चुनौती
केंद्रीय मंत्री ने यह भी माना है कि ग्रीन हाइड्रोजन से वाहनों का संचालन अभी आसान नहीं है, क्योंकि इसकी लागत अधिक आ रही है। उन्होंने एक कार्यक्रम में प्रक्रिया बताई थी कि आर्गनिक वेस्ट को बायो-डाइजेस्टर में डालने से मीथेन निकलती है। मीथेन से कार्बन-डाई-आक्साइड अलग करके बायो-सीएनजी बनती है।
अब मीथेन से ग्रीन हाइड्रोजन भी तैयार की जाने लगी है। लेकिन एक किलोग्राम ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में 50 यूनिट बिजली का खर्च आ रहा है। यह लागत अभी बहुत है। लेकिन सरकार का प्रयास है कि इसके उत्पादन को बढ़ाते हुए लागत को एक डालर प्रति किलोग्राम पर लाया जाए। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत लगभग 397 रुपये प्रति किलोग्राम है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।