'देश में एनएसडी जैसे पांच-छह केंद्र खुलने चाहिए...' जागरण फिल्म फेस्टिवल में मनोज बाजपेयी सीखने के अवसर पर दिया जोर
अभिनेता मनोज बाजपेयी ने जागरण फिल्म फेस्टिवल में कहा कि एनएसडी में छात्रों को सीखने के पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहे हैं क्योंकि शिक्षकों की कमी है। उन्होंने भारत में एनएसडी जैसे और संस्थान खुलने की बात कही। वे अपनी नई फिल्म इंस्पेक्टर झेंडे के प्रमोशन के लिए आए थे जो चार्ल्स शोभराज के तिहाड़ जेल से भागने की घटना पर आधारित है।

रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। आजकल नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) से स्नातक युवाओं की यह शिकायत आम है कि उन्हें सीखने का उतना अवसर नहीं मिल रहा, जितना पहले मिलता था। कारण एक तो शिक्षकों की कमी है, दूसरा जो हैं वो इतना व्यस्त हैं कि वे छात्रों को समय नहीं दे पाते।
यह बात बृहस्पतिवार को जागरण फिल्म फेस्टिवल में अभिनेता मनोज बाजपेयी ने थिएटर और एनएसडी पर बात करते हुए कही। उन्होंने कहा, मैं खुद कई बार एनएसडी में पढ़ाने गया हूं।
मुझे लगता है कि भारत में एनएसडी जैसे पांच-छह और सरकारी संस्थान खुलने चाहिए। यह विशेष रूप से मध्यवर्गीय छात्रों के लिए आशीर्वाद होंगे, थिएटर में आने वाले अधिकांश छात्र इसी वर्ग से होते हैं।
सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में कार्यक्रम की शुरुआत में जब मनोज बाजपेयी मंच पर आए, सिनेप्रेमियों ने उनके फिल्मों के पात्रों भीखू म्हात्रे समेत कई अलग-अलग पात्रों के नाम लेकर मनोज जिंदाबाद के नारे लगाए। दर्शकों के इस प्रेम से वह काफी अभिभूत नजर आए।
नेटफ्लिक्स पर शुक्रवार को रिलीज होने वाली अपनी फिल्म इंस्पेक्टर झेंडे के प्रमोशन के लिए आए मनोज के साथ मंच पर फिल्म के निर्देशक चिन्मय मंडलेकर, अभिनेता जिम सरभ, नेटफ्लिक्स ओरिजिनल्स की निदेशक हेड रुचिका कपूर और मुंबई पुलिस के पूर्व अधिकारी मधुकर बाबूराव झेंडे भी मौजूद रहे।
यह फिल्म वर्ष 1986 में तिहाड़ जेल से सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज के फरार होने और उसे पकड़ने वाले मधुकर बाबूराव झेंडे पर आधारित है। निर्देशक चिन्मय मंडलेकर ने इस सच्ची घटना को हास्य के रंग में पिरोते हुए दर्शकों के सामने रखने का प्रयास किया है।
मनोज ने बताया कि उन्होंने इस फिल्म के असली नायक इंस्पेक्टर मधुकर बाबूराव झेंडे से पुणे में मुलाकात की। चार घंटे चली बातचीत में झेंडे ने अपने अनुभव साझा किए और अंत में उन्हें अखबार की पुरानी कटिंग्स की फाइल थमाते हुए कहा, ये लो, अब अपनी कहानी खुद गढ़ो।
मनोज ने आगे कहा कि फिल्म में दिखाया गया यह किरदार ऐसा इंसान है, जो खुद कौशलयुक्त नहीं है, लेकिन फिर भी वह एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी को पकड़ने निकलता है, जो कि ब्लैक बेल्टधारी और बेहद चालाक है। यही विरोधाभास इस फिल्म को खास बनाता है।
इस फिल्म में कार्ल भोजराज (चार्ल्स शोभराज का परिवर्तित नाम) का किरदार निभाने वाले अभिनेता जिम सरभ ने कहा कि दिल्ली उन्हें बहुत पसंद है और खासतौर पर लोधी गार्डन में टहलना उन्हें सुकून देता है। मुंबई की तुलना में दिल्ली की हरियाली उन्हें लुभाती है।
उन्होंने बताया कि अपने किरदार की तैयारी के लिए उन्होंने शोभराज के पुराने इंटरव्यू और वीडियो खंगाले। सरभ ने कहा कि यह किरदार आत्ममुग्ध और बेहद चालाक है। वह कभी ऐसा कुछ नहीं कहता जिससे खुद फंस जाए। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
फिल्म के निर्देशक चिन्मय मंडलेकर ने कहा कि उन्होंने इस कहानी को इस तरह लिखा है कि दर्शकों को इसमें हंसी और रोमांच दोनों का अनुभव होगा।
उनका मानना है कि कार्ल भोजराज जैसा सीरियल किलर अपने आप में एक रहस्य है और उसकी गिरफ्तारी जैसी गंभीर घटना को हल्के-फुल्के अंदाज में दिखाना फिल्म को खास बनाता है।
शूल से शुरू हुआ दैनिक जागरण से नाता: मनोज
कार्यक्रम के दौरान मनोज बाजपेयी ने दैनिक जागरण से अपने पुराने रिश्ते को भी याद किया। उन्होंने बताया कि उनकी फिल्म शूल की प्राइवेट स्क्रीनिंग के दौरान ही दैनिक जागरण के साथ संबंध शुरू हुए थे।
मनोज ने कहा, कि मैंने जागरण समूह के अधिकारियों से कहा था कि मैं इस फिल्म का प्रचार अलग-अलग शहरों में करना चाहता हूं। शूल देखने के बाद वह भी प्रभावित हुए। मैं हमेशा दावा करता हूं कि फिल्मों का शहर दर शहर प्रमोशन मैंने शुरू किया।
उस दौरान मैं खुद फिल्म की रील वाला कैन लेकर फ्लाइट से कानपुर, पटना, जयपुर और हैदराबाद जाता था। वहां मीडिया को फिल्म दिखाकर प्रेस वार्ता करता था। मेरी इस तकनीक ने काम किया और शूल पहले ही दिन से हिट हो गई। सत्या को जबकि हिट होने में एक सप्ताह लगा।
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