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    सिनेमा का एजेंडा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सवाल उठाना भी होना चाहिए: विवेक अग्निहोत्री

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 09:12 PM (IST)

    फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कहा कि सिनेमा का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज से सवाल करना भी है। उन्होंने बंगाल फाइल्स फिल्म के बारे में बात करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य किसी राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाना नहीं था। उन्होंने विभाजन की त्रासदी और वामपंथी विचारधारा के बारे में भी अपने विचार साझा किए।

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    जागरण संवादी में अपने विचार रखते निर्माता निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री साथ में प्रशांत कश्यप। ध्रुव कुमार

    रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। फिल्में बिना एजेंडा के नहीं बनतीं, क्योंकि हर फिल्म किसी न किसी विचार, संदेश या सोच को आगे बढ़ाने का माध्यम होती हैं। ये बातें फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कही।

    उन्होंने विद्यार्थियों से सिनेमा और एजेंडा के बीच के गहरे संबंध पर विस्तार से चर्चा की और अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सिनेमा का एजेंडा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सवाल उठाना भी होना चाहिए। बिना एजेंडा के फिल्म सर्कस के समान होती है। मेरा एजेंडा समाज के अर्ध-सत्य को उजागर कर पूर्ण सत्य दिखाना है।

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    भारतीय सिनेमा का पतन तब शुरू हुआ जब वो धीरे-धीरे काॅरपोरेट और एनआरआई सोच के प्रभाव में चला गया और अब फिल्मों में आम आदमी की कहानियों को छोड़ दिया गया।

    विवेक ने बताया कि उनकी फिल्म बंगाल फाइल्स का उद्देश्य किसी चुनाव या राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित नहीं था। शुरू में इसका नाम द दिल्ली फाइल्स बंगाल चैप्टर रखा गया था, लेकिन बाद में दर्शकों की स्पष्टता के लिए इसका नाम बंगाल फाइल्स रखा गया ताकि फिल्म की सच्चाई स्पष्ट हो जाए।

    बंगाल फाइल्स बनाने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि बंगाल का पार्टीशन भारत की आधुनिक राजनीति में अनछुआ और अनसुना विषय था।

    बंगाल में परिवारों के साथ जो अत्याचार हुए, वह इतिहास की वह कहानी थी, जो आज तक दबाई गई थी। मुख्यधारा के फिल्म निर्माताओं ने इस ऐतिहासिक ट्रामा को नजरअंदाज किया, इसलिए उन्हें दर्शकों को ये दिखाना जरूरी लगा।

    उन्होंने बंगाल के विभाजन पर बात करते हुए कहा कि आज भी बहुत से लोग इस बारे में बात करने से डरते हैं। डायरेक्ट एक्शन डे पर भी बात की और समझाया कि कैसे विभाजन की राजनीति ने भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता का टुकड़ा तोड़ दिया।

    विभाजन के निर्णय में राजनीति का कितना बड़ा रोल था, जिसमें केवल आठ लोगों ने भारत की तकदीर लिख दी थी। उन्होंने कहा कि विभाजन के पीछे सिर्फ राजनैतिक विचार नहीं था, बल्कि एक सामाजिक सिद्धांत था कि हिंदू नापाक हैं, इसलिए अलग राष्ट्र होना चाहिए।

    उन्होंने गोपाल मुखर्जी जैसे महत्वपूर्ण किरदारों पर बात करते हुए कहा कि मुखर्जी ने उस समय ऐसे प्रयासों के खिलाफ आवाज उठाई थी।

    उन्होंने कहा कि उनकी रुचि बायोग्राफी में नहीं है, चूंकि अधिकांश बायोग्राफियां या तो किसी महान व्यक्ति की प्रशंसा में होती हैं या किसी अपराधी की कहानी को चमकाकर पेश किया जाता है।

    विद्यार्थी जीवन में वामपंथी विचारधारा ने आकर्षित किया

    विद्यार्थी जीवन में मुझे वामपंथी विचारधारा की ओर आकर्षण महसूस हुआ। लेकिन धीरे-धीरे यह समझा कि छात्र आंदोलन का गलत इस्तेमाल हो रहा था। वामपंथी लाॅबी विद्यार्थियों को ब्रेनवाश कर राष्ट्रविरोधी बना रही थी।

    विश्वविद्यालयों में विद्रोही सोच को सीमित कर दिया गया। विवेक ने स्पष्ट किया कि उनकी विचारधारा परिवर्तन की प्रक्रिया किसी सरकार के बदलाव से नहीं जुड़ी थी, बल्कि समय के साथ समझने व सच का सामना करने से हुई थी।

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