ऐसा सृजन करें कि 100 वर्ष बाद भी किया जाए याद... गायक एवं अभिनेता पीयूष मिश्रा ने युवाओं को किया प्रेरित
लेखक पीयूष मिश्रा ने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि जीवन में ऐसा काम करो जो सौ साल बाद भी याद किया जाए चाहे वह कला हो या साहित्य। उन्होंने साहित्य और सिनेमा के अंतर को समझाया और युवाओं को जल्दबाजी से बचने और तैयारी करने की सलाह दी। मिश्रा ने दिल्ली को अपनी प्रेमिका और मुंबई को पत्नी बताया। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए संतुष्टि व्यक्त की।

मुहम्मद रईस, नई दिल्ली। मौत सत्य है। अगले 10-15 वर्ष में मैं भी दुनिया से चला जाउंगा। 'आरंभ है प्रचंड' और 'एक बगल में चांद होगा-एक बगल में रोटियां' जिंदा रहेंगे। युवा ये बात याद रखें कि ऐसा कुछ करना है जो सौ-डेढ़ सौ वर्ष बाद भी याद किया जा सके।
यह कला, साहित्य या अभिनय कुछ भी हो सकता है। आप में से कई लोग लिख सकते हैं। लिखो, काटो, फिर से लिखो। अपना लिखा काटना सीखो। ऐसी 50 चीजें आप कर सकते हैं।
जागरण संवादी कार्यक्रम के 'साहित्य का बढ़ता दायरा' सत्र में शुक्रवार को अभिनेता, गायक व लेखक पीयूष मिश्रा के एक-एक वाक्य युवाओं को रोमांचित और प्रेरित करते गए।
उत्सुक छात्र-छात्राओं को साहित्य और सिनेमा का अंतर भी बताया। कहा, साहित्य तो सदियों से है, पर सिनेमा का इतिहास करीब 150 वर्ष का है। दोनों के बीच बहुत फर्क है। साहित्य से सिनेमा बना सकते हैं, पर सिनेमा साहित्य नहीं है।
स्क्रीनप्ले एक अलग विद्या है, जिसका साहित्य से लेना-देना नहीं है। पर सिनेमा बहुत ही प्रभावशाली माध्यम है। वहीं ओटीटी अपनी तरह का अलग कंटेट है। साहित्य से इसकी तुलना ठीक नहीं।
युवा थोड़े से उतावले हैं। सब कुछ जल्दी हासिल करना चाहते हैं। पर यह भी ध्यान रखें किसी भी क्षेत्र में जाएं, उसकी तैयारी करें, ट्रेनिंग लें। यही आपको संघर्ष के दिनों में तराशेंगे।
बारहवीं, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष यही मौका है। सोच लो तो पीछे मुड़कर मत देखो। जो दिखाया जा रहा, वो नहीं करना है, बल्कि वो करना है, जो सोचा है। हर बाधा तोड़कर आगे बढ़ें, वक्त का इंतजार न करें।
आज तो दिल टूटते ही नहीं, ब्रेकअप होते हैं
उम्र के इस पड़ाव पर भी मैं अपने आप को युवा ही मानता हूं। मैं बूढ़ा होना नहीं चाहता, इसी तरह मरना पसंद करूंगा। मैं तो अपने गीतों में जिंदा रहूंगा, पर आप सोचे 50 साल बाद या सौ साल बाद आप कहां मिलोगे। मेहनत करो, जल्दबाजी मत दिखाओ।
युवा पीढ़ी की यही समस्या है। इश्क के मामले में भी जल्दबाजी दिखाते हैं। अब तो दिल टूटते ही नहीं, ब्रेकअप और रिबाउंड होते हैं। दिल हमारे जमाने में टूटा करते थे। प्यार करना और रोमांस करना सीखो।
दिल्ली है मेरी प्रेमिका
दिल्ली से मेरा पुराना नाता है। मुंबई से भी रिश्ता है। इसे यूं समझ सकते हैं कि दिल्ली मेरी प्रेमिका है और मुंबई बीवी। दिल्ली आना वैसे ही लगता है, जैसे बीवी से छिपकर प्रेमिका से मिल रहा हूं। हर पुराने सुखद और रोमांचक पल जेहन में ताजा हो जाते हैं। इस बार तो मिरांडा हाउस पहुंचा हूं तो बात ही अलग है।
जिंदगी ने नहीं शिकायत, बहुत कुछ मिला
ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से निकलकर दिल्ली और फिर मुंबई तक पहुंचा। 2003 में मुंबई गया। पत्नी और माता को साथ लेकर। देर से ही सही नाम कमाया।
चरित्र अभिनय के ही मौके मिले, पर इसे लेकर जिंदगी से कोई शिकायत नहीं। जितना सोचकर निकला था, उससे ज्यादा ही मिला है।
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