दिल्ली-NCR को बाढ़ से कैसे मिलेगी राहत? डेनमार्क मॉडल या साबरमती प्लान अपनाए सरकार
नोएडा में जागरण विमर्श के दौरान अशोक कुमार जैन ने दिल्ली को स्पंज सिटी के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इससे बाढ़ से बचाव पानी का पुन उपयोग और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद मिलेगी। यमुना नदी के किनारे अनियमित निर्माण और पुराने मास्टर प्लान में संशोधन न होने के कारण दिल्ली में बाढ़ की समस्या बढ़ रही है।

जागरण संवाददाता, नोएडा। बाढ़ और जलभराव की समस्या बढ़ती जा रही है। इससे भी भयावह शहरी बाढ़ की स्थिति है। खासकर दिल्ली और गुरुग्राम में अगर एक घंटे बारिश होती है तो सात से आठ घंटे तक लोग जलभराव में हांफते रहते हैं। आने वाले दिनों में ऐसी भयावह स्थिति देखने से बचना है तो हमें सिंगापुर और हांगकांग की तर्ज पर दिल्ली को स्पंज सिटी की तरह विकसित करना होगा।
यह बातें दिल्ली विकास प्राधिकरण के पूर्व योजना आयुक्त अशोक कुमार जैन ने सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में कहीं।
उन्होंने स्पंज सिटी को परिभाषित करते हुए कहा कि स्पंज सिटी एक शहरी नियोजन अवधारणा है, जिसमें शहरों को प्राकृतिक स्पंज की तरह डिजाइन किया जाता है, जो वर्षा जल को सोखता है, संग्रहीत करता है और धीरे-धीरे छोड़ता है। यह शहरों को बाढ़ से बचाने, पानी का पुन: उपयोग करने और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करता है। स्पंज सिटी में फुटपाथ, रूफटॉप गार्डन, ग्रीन वॉल और टेरेस जैसी हरित बुनियादी ढांचा प्रणालियों का उपयोग किया जाता है।
दिल्ली में 2023 में भी बाढ़ आई थी, लेकिन इस बार बाढ़ का पानी रिहायशी इलाकों में भी घुस गया। सिविल लाइंस और हकीकत नगर में बाढ़ जैसे हालात बन गए थे। जैन ने कहा कि दिल्ली की आबादी नदी से कट गई है। हमने नदी तल पर बड़े-बड़े मकान, उद्योग और कॉलोनियां बनानी शुरू कर दी हैं। नदी के रास्ते में रुकावट आने से हमें हर साल बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
यमुना नदी तल के 207 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर पूरी तरह से रोक होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। राजनीतिक कारणों से यमुना के किनारे और नदी तल में अनियमित कॉलोनियां बनाई गईं और उद्योग लगाए गए।
इसका नतीजा यह है कि हर साल बरसात में हमें नदी का रौद्र रूप देखने को मिलता है। 1976 में नाला 600 किलोमीटर तक फैला था। यमुना नदी तल 48 किलोमीटर तक था, जो सिकुड़कर एक तिहाई रह गया है।
उन्होंने कहा कि 1976 में दिल्ली के लिए बने मास्टर प्लान को इतने सालों में न तो संशोधित किया गया और न ही नया बनाया गया। 1976 में दिल्ली की आबादी 30 लाख थी और आज तीन करोड़ से ज्यादा है। 49 साल पुराने मास्टर प्लान से तीव्र शहरीकरण की योजना नहीं बनाई जा सकती।
जागरण विमर्श में दिए गए प्रमुख सुझाव।
- यमुना नदी को नहरों में परिवर्तित किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ की स्थिति में पानी रिहायशी इलाकों में न घुसे।
- अहमदाबाद नदी की तर्ज पर साबरमती नदी की तरह यमुना नदी पर भी रिवरफ्रंट बनाया जाना चाहिए।
- मास्टर प्लान जीआईएस आधारित होना चाहिए और इसमें हर साल आने वाले बाढ़ चक्र का भी उल्लेख होना चाहिए ताकि राहत प्रदान की जा सके।
स्पंज सीटी की क्या है अवधारणा
पूर्व योजना आयुक्त ने कहा कि हमें 20 साल आगे की सोचकर मास्टर प्लान बनाना होगा। इसमें दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के 14 विभागों के अलावा सबसे महत्वपूर्ण स्थानीय स्तर पर सामुदायिक भागीदारी है। हमें सामुदायिक स्तर पर स्थानीय निवासियों से चर्चा करके और उनके सुझाव लेकर मास्टर प्लान बनाना चाहिए, तभी यह व्यावहारिक होगा। 2017-18 में आईआईटी, दिल्ली को दिल्ली का मास्टर प्लान बनाने के लिए कहा गया था, लेकिन यह अभी भी अधर में लटका हुआ है।
आईआईटी, दिल्ली ने मास्टर प्लान बनाने से पहले जो विजन डॉक्यूमेंट दिया था, वह बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं था, इसलिए उसे अस्वीकार कर दिया गया। शहरी नियोजन के मास्टर प्लान में समुदायों की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण है। उनके अनुभव और सुझाव ही बेहतर नियोजन की संभावना को जन्म देंगे।
बाढ़ से जूझ रहा दिल्ली-एनसीआर, कैसे होगा समाधान
- 1976 में दिल्ली की जल निकासी व्यवस्था के लिए एक मास्टर प्लान बनाया गया था, उसके बाद से अब तक उसमें कोई संशोधन नहीं किया गया है।
- यमुना नदी तल के 207 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, फिर भी धड़ल्ले से निर्माण कार्य हो रहे हैं।
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