सक्सेस मंत्रा: समस्या के समाधान पर काम करने से मिलती है सफलता
बाजार में संभावनाओं को देखते हुए ही अंकित आलोक बगारिया ने ढाई वर्ष पूर्व बेंगलुरु में ‘लूपवर्म प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की। यहां वे ‘ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा’ के जरिये उच्च प्रोटीन युक्त डाइट का निर्माण कर रहे हैं। उनकी मानें तो नाकामी को स्वीकार करना आसान नहीं होता है।

नई दिल्ली, अंशु सिंह। अमेरिकी ग्लोबल मार्केट इनसाइट्स की रिपोर्ट पर ध्यान दें, तो उच्च प्रोटीन की बढ़ती मांग के कारण खाने लायक कीटों का बाजार वर्ष 2024 तक 71 करोड़ डालर के आसपास पहुंच जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि विश्वभर में करीब दो अरब लोग कीट-पतंगों का रोजाना अपने खाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा, पशु चारे के उत्पादन में भी कीटपालन से एक नई क्रांति आने की उम्मीद जतायी जा रही है। बाजार में संभावनाओं को देखते हुए ही अंकित आलोक बगारिया ने ढाई वर्ष पूर्व बेंगलुरु में ‘लूपवर्म प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की। यहां वे ‘ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा’ के जरिये उच्च प्रोटीन युक्त डाइट का निर्माण कर रहे हैं। कंपनी के सह-संस्थापक एवं सीईओ अंकित की मानें, तो नाकामी को स्वीकार करना आसान नहीं होता है। जितना आपने सोचा होता है, उससे कहीं अधिक बार उससे सामना करना पड़ता है। वैसे में समाधान पर फोकस करना और खुद पर विश्वास रखना होता है। मेरे लिए सफलता का मंत्र यही है कि छोटी-छोटी पहल कर समस्याओं को दूर कर, अपने लक्ष्य को हासिल कर सकूं। इससे ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और आप मुश्किल दौर में भी हतोत्साहित नहीं होते हैं।
महाराष्ट्र के जलगांव के मूल निवासी अंकित ने 2019 में आइआइटी रुड़की से केमिकल इंजीनियरिंग में ड्यूअल डिग्री हासिल की। लेकिन कहीं नौकरी करने या पेशेवर अनुभव लेने के बजाय उन्होंने सीधे बिजनेस की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया। अंकित के अनुसार, उन्हें हमेशा से समस्याओं के संभावित समाधान को लेकर दिलचस्पी थी। एंटरप्रेन्योरशिप में उन्हें वह मौका दिखा, जिसमें वे जान सकते थे कि जो समाधान या आइडिया उनके दिमाग में चल रहे हैं, उन्हें मूर्त रूप देने के बाद क्या सच में कोई सकारात्मक बदलाव आ सकता है? इसके बाद ही उन्होंने ‘लूपवर्म’ की शुरुआत की।
आइआइटी में प्रयोग के दौरान मिला आइडिया
अंकित बताते हैं, ‘आइआइटी रुड़की में पढ़ाई के दौरान ही मैंने ‘इनैक्टस’ चैप्टर के लिए वेस्ट मैनेजमेंट के तीन प्रोजेक्ट्स किए थे। इसमें हमने अपसाइक्लिंग के जरिये फूड एवं एग्री वेस्ट की समस्या का हल निकालने का प्रयास किया था, जिससे कि वह फिर से फूड चेन का हिस्सा बन सकें। हमने काफी शोध किया, जिससे पता लगाया जा सके कि फूड वेस्ट को कैसे दोबारा से उपयोगी बनाया जा सकता है। हमें ऐसे कीटों की जानकारी मिली, जो प्राकृतिक तरीके से ऐसा कर सकते हैं। इससे फूड वेस्ट पक्षियों, मछलियों का आहार बन सकता है।’ संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि दुनिया खासकर पश्चिमी देशों में किस तरह से कीट, खाद्य एवं कृषि क्षेत्र का बड़ा कारोबार बन सकते हैं। अंकित को भी इससे काफी बल मिला और उन्होंने कीटपालन के क्षेत्र में कदम आगे बढ़ा दिए।
सस्टेनेबल फूड सिस्टम बनाने पर जोर
आज वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से अंकित सस्टेनेबल फूड सिस्टम क्रिएट कर रहे हैं। ‘ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा’ की मदद से वह गीले या आर्गेनिक कचरे को कंपोस्ट में तब्दील करते हैं। इसमें करीब 12 दिन लगते हैं। बताते हैं अंकित, ‘लार्वा फूड बाइप्रोडक्ट्स को कंज्यूम कर लेता है और फिर एक उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन (40 प्रतिशत) एवं फैट (35 प्रतिशत) में तब्दील हो जाता है। बाद में इसे एक्सट्रैक्ट किया जाता है, जिसका पशु आहार इंडस्ट्री में पशु चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।’ दरअसल, कीटपालन को पर्यावरण के लिए भी काफी अनुकूल माना गया है। जानकारी के अनुसार, खाने लायक कीड़ों को अगर बड़े पैमाने पर पाला जाए,तो वे पशुओं से मिलने वाले प्रोटीन के बराबर प्रोटीन दे सकते हैं।
तैयारी के साथ बढ़ रहे आगे
अंकित और उनकी टीम ने आने वाले पांच वर्षों में तीन लाख टन प्रोटीन प्रति वर्ष तैयार करने का फैसला किया है। इसमें वे 75 लाख से अधिक फूड एवं एग्री बाइप्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकेंगे। इस समय अधिकांश फूड वेस्ट लैंडफिल्स में भेज दिया जाता है। वह बताते हैं, ‘हम पशु आहार, सप्लीमेंट निर्माताओं एवं श्रिंप फिश निर्माताओं को टार्गेट कर रहे हैं, जिन्हें हम यह इंसेक्ट प्रोटीन फ्लोर एवं फैट आयल बेच सकेंगे। इस समय छह पेट फूड एवं तीन एनिमल फीड कंपनियों से बात चल रही है। इसके अलावा, हम इंसेक्ट फार्मिंग यूनिट्स के विकेंद्रीकरण पर भी विचार कर रहे हैं, जिसके लिए प्रगतिशील विचारधारा वाले किसानों एवं लोगों से भी संपर्क किया जा रहा है, ताकि वे अपने यहां इंसेक्ट यूनिट्स स्थापित कर सकें। हम उन्हें सेटअप के साथ ट्रेनिंग सपोर्ट देंगे। उन्हें इनपुट देने के साथ ही प्रोडक्ट को निश्चित दर पर वापस खरीदने का भरोसा भी दे रहे हैं।
नये बिजनेस में धैर्य आवश्यक
माना जाता है कि एक एग्री बायोटेक बिजनेस को स्थापित करने में काफी समय लगता है, क्योंकि इसमें अच्छी पूंजी लगती है। इसके अलावा, रिसर्च एवं डेवलपमेंट की लंबी प्रक्रिया होती है। किसी भी प्रयोग के बाद उनके परिणाम आने में काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कई बार प्रयोग असफल भी हो जाते हैं। अंकित कहते हैं, ‘हमें काफी धैर्य रखना होता है। क्योंकि विधि नई होने के साथ यह मार्केट भी नया है। ज्यादा लोगों को इसकी आर्थिक क्षमता एवं प्रभाव के बारे में पता नहीं है। इस कारण से सही सपोर्ट मिलने में कई सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हम खुशनसीब रहे कि शुरुआती रिसर्च करने के लिए हमें कुछ ग्रांट्स मिल गया।’ इनका कहना है कि कोई भी बिजनेस करने से पहले पूरे वैल्यू चेन को समझना होता है, जिसके लिए हम समाधान निकालना चाह रहे हैं। प्रत्येक स्टेकहोल्डर की जरूरतों को समझने एवं जानने के बाद ही एक मजबूत बिजनेस माडल विकसित किया जा सकता है। उसके बाद ही हम कस्टमर्स, पार्टनर्स तक पहुंच सकते हैं और उन्हें उपयुक्त समाधान दे सकते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में टिके रहने के लिए लंबी प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।

अंकित आलोक बगारिया, सह-संस्थापक एवं सीईओ, लूपवर्म प्राइवेट लिमिटेड

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