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    Teachers' Day 2021: कोरोना के मुश्किल समय में शिक्षक की भूमिका निभा रौशन की विद्यार्थियों की राह

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 04 Sep 2021 10:29 AM (IST)

    Teachers Day 2021 जब मन में कुछ करने की इच्छा हो और दृढ़ संकल्प मजबूत हो तो मुश्किलों के बीच भी रास्ते निकल ही आते हैं। देश में ऐसे अनेक युवा है जो बेशक शिक्षण के पेशे से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं।

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    शिक्षक दिवस के अवसर पर मिलेंगे अलग-अलग पेशों से जुड़े ऐसे ही कुछ युवाओं से...

    नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। Teachers' Day 2021 पूर्वी इंफाल के इबोथोई कांथोजैम पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर काम करते हैं। वे वर्ल्ड इकोनामिक फोरम में ग्लोबल शेपर के तौर पर भी सक्रिय हैं। स्वैच्छिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं। इन सबके अलावा वह एक शिक्षक भी हैं। समाज के हाशिये पर रहने वाले, गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाते हैं। बताते हैं इबोथोई, ‘मैं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहता हूं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा के स्तर में आज भी विशेष अंतर नहीं आया है। कोरोना के कारण लाकडाउन के चलते जब सभी जगह आनलाइन क्लासेज हो रही थीं, तो गांव के बच्चे इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या से जूझ रहे थे। इसके अलावा कई के पास स्मार्टफोन तक नहीं है। ऐसे में उन्हें पढ़ाना चुनौतीपूर्ण होता है।’ वैसे, इबोथोई की कोशिश रहती है कि वह बेसिक फोन से बच्चों तक पहुंचें और उन्हें पढ़ाया। इसके अलावा, जूम से भी क्लासेज लेते हैं।

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    मेडिकल स्टूडेंट बनीं शिक्षक: असम के तेजपुर की पूजा मेडिकल की स्टूडेंट हैं। उन्हें अक्सर यह बात कचोटती थी कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब परिवारों के बच्चों को अच्छी, गुणवत्ता युक्त शिक्षा नहीं मिल पाती है। उन्हें पढ़ाई के साथ घर के कार्यों में भी हाथ बंटाना पड़ता है। ऐसे में एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने खाली समय में इन बच्चों के लिए कुछ किया जाए। इस तरह, साल भर पहले वे एक संस्था के साथ वालंटियर के रूप में जुड़ीं और गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। पूजा बताती हैं, ‘मैं सोमवार से शुक्रवार तक शाम को तीन घंटे उन्हें फोन से पढ़ाती हूं। वीकेंड्स पर बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान देने के साथ को-करिकुलर एक्टिविटीज करायी जाती है। हमसे चार से लेकर 16 वर्ष की उम्र के बच्चे जुड़े हैं। जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं होती, वहां घरों में असाइनमेंट भेजे जाते हैं। मेरे अलावा, कई और स्टूडेंट वालंटियर्स इसमें योगदान दे रहे हैं।‘ दिलचस्प यह है कि ये युवा न सिर्फ बच्चों को पढ़ा रहे हैं, बल्कि उनकी सहूलियत के लिए अपने पुराने स्मार्टफोन भी उन्हें दिए हैं। पूजा कहती हैं, ‘महामारी के कारण हर जरूरतमंद बच्चे तक पहुंच पाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन कोशिश जारी है। हम चाहते हैं कि सभी बच्चों का सर्वांगीण विकास हो, क्योंकि इन बच्चों के भी बहुत सारे सपने हैं, जो पूरे होने चाहिए।’

    आनलाइन सिखाते हैं शतरंज: कृष्णन कार्तिक शतरंज के खिलाड़ी हैं। कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। रोमानिया, चेक रिपब्लिक, श्रीलंका, मलेशिया जैसे देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 2013 के वर्ल्ड एमेच्योर चेस चैंपियनशिप में भी उन्होंने भागीदारी की थी। दिलचस्प यह है कि वह सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं हैं, बल्कि बच्चों-किशोरों-युवाओं को चेस की कोचिंग भी देते हैं। मूल रूप से केरल के पालाकाड जिले के निवासी कृष्णन ने छत्तीसगढ़ के अलावा पुणे से स्नातक की पढ़ाई की है। 2008 में वह चेस से जुड़े और फिर यह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई। वह एक बेहद दिलचस्प राज बताते हैं, ‘मैं दूरदर्शन पर चेस के मैच देखा करता था। उससे इस खेल में रुचि उत्पन्न हुई और मैंने इंटरनेट पर ग्रैंड मास्टर्स के वीडियोज, उनके डीवीडी देखना एवं इससे संबंधित किताबें पढ़ना शुरू किया और सीखते-सीखते यहां तक पहुंचा हूं। मैं जो भी जानता हूं, उसे अन्य बच्चों को बताना चाहता हूं। इसलिए उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू की है।’ कार्तिक जूम व स्काइप से चेस की क्लास लेते हैं, जिससे देश ही नहीं, विदेश के बच्चों को भी फायदा मिल रहा है। वह आगे बताते हैं, ‘आनलाइन क्लासेज के लिए मुझे साफ्टवेयर आदि में थोड़ा निवेश करना पड़ा है। ग्रैंड मास्टर्स के वीडियोज भी खरीदने पड़े हैं। लेकिन इससे अपनी प्रैक्टिस के साथ बच्चों को गाइड कर पाता हूं।’ लाकडाउन के बाद कार्तिक अपने खेल पर फोकस करने के साथ ही आनलाइन क्लासेज को जारी रखना चाहते हैं।

    देश-दुनिया के बच्चे सीख रहे कथक: दिल्ली के हंसराज कॉलेज से स्नातक के बाद कथक में अलंकार (मास्टर्स) करने वाली अंशिता सूरी युवा नृत्यांगना हैं। नियमित रूप से स्टेज पर अपनी प्रस्तुति देती रहती हैं। करीब डेढ़ वर्ष पहले इन्होंने एक संस्थान से जुड़कर नृत्य सिखाने का निर्णय लिया। पिछले साल कोरोना की दस्तक से पहले तक सब अच्छा ही चल रहा था। लेकिन फिर परिस्थितियां बदलीं और जब सब बंद हो गया, तो इन्होंने कथक की आनलाइन क्लासेज लेनी शुरू की। इसके बाद जो प्रतिक्रिया मिली, उसकी उम्मीद नहीं थी। अंशिका बताती हैं, ‘पहले मैं सिर्फ दिल्ली के बच्चों-युवाओं-महिलाओं को सिखा पाती थी। आज केरल, महाराष्ट्र, जैसे अलग-अलग राज्यों के अलावा जर्मनी, ब्रिटेन एवं दूसरे देशों के बच्चों का भी कथक से परिचय करा पा रही हूं।

    सुखद यह है कि वे इसमें गहरी रुचि ले रहे हैं। इस जुड़ाव को आगे भी जारी रखना चाहूंगी।’ पहले बच्चों के बीच रहकर नृत्य सिखाना और अब जूम पर क्लास लेने में क्या अंतर आया है और वे इसे किस रूप में ले रही हैं? इस सवाल के जवाब में अंशिता बताती हैं, ‘आमने-सामने होने से स्टूडेंट्स के साथ एक निजी संबंध बन जाता है। खासकर छोटे बच्चों को समझाना आसान होता है। आनलाइन में उनके साथ थोड़ी चुनौतियां आती हैं। वे घर के वातावरण में सबके बीच रहकर क्लास ज्वाइन करते हैं। इससे कई बार भटकाव आ जाता है। लेकिन जो वयस्क हैं, उनकी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। वे अपने शौक को घर बैठे पूरा कर पा रहे हैं, जिसके लिए पहले सोचना पड़ता था।’ अंशिता ने नये माहौल में खुद को सकारात्मक तरीके से ढाल लिया है। क्लास से पहले वह उसकी पूरी तैयारी करती हैं। जैसे बच्चों के लिए नोट्स एवं वीडियोज बनाना। उन्हें उनके अभिभावकों के साथ शेयर करना आदि। लेकिन कभी-कभी आनलाइन बच्चों से जुड़े रहने के बावजूद उन्हें क्लास में खालीपन का एहसास होता है।

    बच्चों के लिए ‘अनंत विद्या’ अभियान: तेजपुर (असम) के यूसीआइ फाउंडेशन के संस्थापक रोहन पांडेय ने बताया कि मैं पेशे से एक होटेलियर हूं। लेकिन एक दिन जब सड़क पर रहने वाले बच्चों की जिंदगी को देखा, तो लगा कि उनके लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद हमने अपने यूसीआइ फाउंडेशन के बैनर तले ‘अनंत विद्या’ नाम से एक अभियान शुरू किया, जिसके अंतर्गत हम फिलहाल 80 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के 30 से 35 लोग स्टूडेंट्स वालंटियर के तौर पर पढ़ाने में सहयोग देते हैं। इनमें से कुछ वालंटियर्स ने खुद अपने पुराने स्मार्टफोन बच्चों को दिए हैं, ताकि पढ़ाने में सहूलियत हो। अभियान के लिए फंड्स की व्यवस्था क्राउड फंडिंग से की गई है। इसके अलावा, दोस्तों व समाज से भी सहयोग मिला है। इस अभियान के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जो बच्चे पहले नशा करते थे या भिक्षावृत्ति में संलग्न थे, वे अब पढ़ाई कर रहे हैं। हमारी कोशिश रहती है कि इनका दाखिला स्कूल में कराएं।