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    यमुना का जलस्तर थोड़ा बढ़ने पर क्यों डूब जाती है दिल्ली? चौंकाने वाली वजह आई सामने

    Updated: Sat, 06 Sep 2025 08:59 AM (IST)

    यमुना नदी की सफाई के दावों के बावजूद पिछले छह दशकों में इसकी जल धारण क्षमता 50% तक कम हो गई है। गाद जमा होने बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण और अवैध निर्माण के कारण नदी की गहराई आधी रह गई है। हथिनी कुंड से छोड़ा गया पानी गाद के कारण दिल्ली की सड़कों पर भर जाता है।

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    हथिनी कुंड से छोड़ा गया पानी गाद के कारण दिल्ली की सड़कों पर भर जाता है। जागरण

    संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। यमुना की सफाई के बड़े-बड़े दावे इसकी गहराई में ही अटके हुए हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छह दशक में यमुना की जल धारण क्षमता 50 फीसदी कम हो गई है। यानी नदी की गहराई अपनी मूल गहराई से आधी रह गई है। गहराई में इस कमी का सबसे बड़ा कारण इसमें जमा गाद है।

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    इसकी सफाई के नाम पर सरकार ने हर बार बजट और टेंडर जारी किए, लेकिन इसकी सफाई नहीं हुई। अगर यह गाद हटा दी गई होती तो हथिनी कुंड से छोड़ा गया 3.29 लाख क्यूसेक पानी नदी खुद ही सोख लेती। यह दिल्ली की सड़कों या घरों की चौखट पर इस तरह न भटकता।

    लोगों के लिए संकट न खड़ा होता। सितंबर 1978 में हथिनी कुंड से आठ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था, तब दिल्ली में लोहा पुल के पास यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर तक पहुंच गया था। वहीं, जुलाई 2023 में मात्र 3.59 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने से जलस्तर 208.66 मीटर और इस वर्ष 3.29 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने से जलस्तर 204.88 मीटर पर पहुंच गया।

    इससे साफ है कि 1978 के मुकाबले यमुना की जलधारण क्षमता करीब 50 फीसदी कम हो गई है। इसका मुख्य कारण नदी के बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण व निर्माण और उसकी तलहटी में गाद जमा होना है। दिल्ली व केंद्र सरकार द्वारा गठित कमेटियों की रिपोर्ट में भी इसे लेकर चिंता जताई जा चुकी है।

    इसके बाद भी समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अब भी यमुना खादर में निर्माण कार्य के साथ ही मलबा डाला जा रहा है।

    बैराज और पुल पर बन गए हैं टीले

    केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर दूर हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा गया पानी अब पहले की तुलना में कम समय में दिल्ली पहुंचता है। इसका मुख्य कारण नदी क्षेत्र में अतिक्रमण और गाद है।

    पहले नदी का पानी अधिक चौड़े क्षेत्र से गुजरता था, जिससे उसकी गति धीमी थी। अब प्रवाह क्षेत्र की चौड़ाई कम है, इसलिए गति बढ़ गई है। वहीं, नदी से गाद न हटाने के कारण सिग्नेचर ब्रिज, आईटीओ बैराज, यमुना बैंक समेत कई जगहों पर रेत के टीले बन गए हैं, जो नदी के प्रवाह में बाधा बन रहे हैं। यमुना नदी की सफाई और उसके तल प्रबंधन संबंधी स्थायी समिति ने फरवरी-2024 में संसद में पेश रिपोर्ट में भी इस बारे में चिंता जताई थी।

    रिपोर्ट में कहा गया था कि अवैध खनन और मलबा डालने से ऐसे हालात बने हैं। समिति ने बताया कि हरियाणा में पांच साल में रेत खनन के 3,792 मामले दर्ज किए गए। अत्यधिक रेत खनन से नदी तल में परिवर्तन होता है, जिससे नदी का मार्ग प्रभावित होता है और साथ ही तट का कटाव भी होता है।

    अवैध खनन को रोकने के लिए, यमुना बेसिन राज्यों को समन्वय बढ़ाने और अतिक्रमण, मलबा डंपिंग और रेत खनन की जानकारी एकत्र करने हेतु एक पोर्टल बनाने का भी सुझाव दिया गया था।

    रिपोर्ट में मलबा डंपिंग के बढ़ते मामलों को दूर करने के लिए नियम बनाने और मलबा हटाने हेतु नियंत्रित ड्रेजिंग (मलबा और गाद निकालने के लिए खुदाई) की संभावना तलाशने के सुझाव दिए गए थे, लेकिन उचित कदम नहीं उठाए गए। इसलिए खनन और मलबा डंपिंग की समस्या बनी हुई है।

    दिल्ली में लगभग 22 किलोमीटर क्षेत्र में यमुना पर तीन बैराज और 20 पुल बनाए गए हैं। इससे भी नदी का प्रवाह बाधित होता है। खादर क्षेत्र में सड़कें बनाई गईं। साथ ही, निर्माण सामग्री पहुँचाने के लिए प्रवाह क्षेत्र को बाधित करके रास्ता बनाया जाता है। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे छोड़ दिया जाता है। प्रवाह बाधित होने के कारण नदी तल पर गाद जमा होने की समस्या बढ़ती जा रही है। अगर नदी का प्रवाह इसी तरह बाधित होता रहा तो दिल्ली में बाढ़ की गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।

    - बीएस रावत, समन्वयक, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल

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