Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    101 वर्षीय साहित्यकार पद्मश्री रामदरश मिश्र का दिल्ली में निधन, साहित्यजगत में शोक की लहर

    By GAUTAM KUMAR MISHRAEdited By: Neeraj Tiwari
    Updated: Fri, 31 Oct 2025 11:31 PM (IST)

    दिल्ली में 101 वर्षीय साहित्यकार पद्मश्री रामदरश मिश्र का निधन हो गया। उनके निधन से पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर है। रामदरश मिश्र ने हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा। उनके जाने से साहित्य जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है।

    Hero Image

    साहित्यकार पद्मश्री रामदरश मिश्र। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली। जहां आप पहुंचे छलांगे लगाकर, वहां मैं भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे...। पद्मश्री से सम्मानित हिंदी के जाने-माने रचनाकार डाॅ. रामदरश मिश्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस वर्ष अगस्त महीने में उन्होंने 101 वर्ष पूरे किए थे। शुक्रवार शाम द्वारका स्थित अपने बेटे शशांक मिश्र के आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। डाॅ. रामदरश मिश्र के निधन से पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है। उन्होंने  तक 150 से अधिक पुस्तकें लिखी थीं। इनकी पुस्तकों को कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। इसी वर्ष इन्हें साहित्य जगत में अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    डाॅ. रामदरश मिश्र का जन्म 15 अगस्त 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था। इसके बाद गुजरात में आठ साल तक उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया। गुजरात में उन्हें बहुत स्नेह और आदर मिला। इसके बाद वे दिल्ली आए और दिल्ली के ही होकर रह गए। यहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली। इन्होंने कविता, कथा, आलोचना और निबंध सहित विभिन्न विधाओं में लिखा।

    हिंदी साहित्य में इनके योगदान को हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जाना जाता है। उनके उपन्यासों में 'जल टूटता हुआ' और हिंदी साहित्य में इनके योगदान को हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जाना जाता है। उनके उपन्यासों में 'जल टूटता हुआ' और 'पानी के प्राचीर' शामिल हैं। बैरंग-बेनाम चिद्वियां', 'पक गई है धूप' और 'कंधे पर सूरज' उनकी अन्य प्रमुख साहित्यिक कृतियों में से हैं।

    वाणी विहार में शोक की लहर

    डाॅ. रामदरश मिश्र उत्तम नगर के वाणी विहार में रहते थे। इस काॅलोनी में संस्कृत के विद्वान डा रमाकांत बुझ में हिंदी के विद्वान रामदरश मिश्र भी थे। काॅलोनी के लोगों को इस बात का पर्व था कि उनके यहां दो-दो विद्वान रहते हैं। पहले डाॅ. रमाकांत शुक्र और अब रामदरश मिश्र के निधन से पूरी काॅलोनी में शोक की लहर व्याप्त है। कुछ महीने पहले ही जब इनका स्वास्थ्य काफी खराब हो गया, तब ये अपने बेटे के पास द्वारका रहने चले गए थे। मगर काॅलोनी से इनका लगाव बना रहा। अपने आतिथ्य, हंसमुख व सहज स्वभाव के कारण वे सभी के प्रिय थे।

    रचनाएं...

    काव्य : पथ के गीत, बैरंग - बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाजार को निकले हैं लोग, जुलूस कहाँ जा रहा है ?, रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएँ, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, हँसी ओठ पर आँखें नम हैं (गजल संग्रह), बनाया है मैंने ये घर धीरे- धीरे (गजल संग्रह)।

    उपन्यास : पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफ़र, आकाश की छत, आदिम राग, बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार

    कहानी संग्रह : खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, बसंत का एक दिन, इकसठ कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, अपने लिए, अतीत का विष, चर्चित कहानियाँ, श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ, आज का दिन भी, एक कहानी लगातार, फिर कब आएंगे?, अकेला मकान, विदूषक, दिन के साथ, मेरी कथा यात्रा, विरासत, इस बार होली में, चुनी हुई कहानियाँ, संकलित कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ, 21 कहानियाँ, नेता की चादर, स्वप्नभंग, आखिरी चिट्ठी, कुछ यादें बचपन की (बाल साहित्य), इस बार होली में,जिन्दगी लौट आई थी, एक भटकी हुई मुलाकात, सपनों भरे दिन, अभिशप्त लोक, अकेली वह

    यह भी पढ़ें- दिल्ली में 31.95 करोड़ के जीएसटी घोटाले में कंपनी निदेशक गिरफ्तार, आईटीसी धोखाधड़ी कर लगाया चूना