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    पाक्सो केस के आरोप में राहत: दिल्ली HC ने कहा- बिना साक्ष्य 'शारीरिक संबंध' कहना पर्याप्त नहीं

    Updated: Tue, 21 Oct 2025 06:14 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाक्सो मामले में कहा कि बिना ठोस सबूतों के सिर्फ 'शारीरिक संबंध' का आरोप लगाना काफी नहीं है। अदालत ने जोर दिया कि अभियोजन पक्ष को यौन उत्पीड़न साबित करना होगा, केवल आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा। पाक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज करने के लिए यौन उत्पीड़न के स्पष्ट प्रमाण जरूरी हैं, बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप से जुड़े एक मामले में आरोपित को राहत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की कि बिना किसी साक्ष्य के केवल शारीरिक संबंध शब्द का प्रयोग बलात्कार या गंभीर यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अपीलकर्ता को बरी करते हुए पीठ ने कहा कि बिना किसी साक्ष्य के शारीरिक संबंध शब्द का प्रयोग यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है।

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    अदालत ने कहा कि पीठ ने कहा कि यदि अभियोजन पक्ष अपेक्षित तरीके से अपना काम नहीं कर रहा है, तो अदालतें मूकदर्शक नहीं रह सकतीं और उन्हें मुकदमे में सहभागी भूमिका निभानी होगी। 

    न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने कहा कि आइपीसी की धारा-376 और पाक्सो अधिनियम की धारा-छह के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि टिकने योग्य नहीं है। अदालत ने इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए कहा कि अदालत मामले का अपने गुण-दोष के आधार पर फैसला करने के लिए बाध्य है।

    पीठ ने कहा कि पीड़िता और उसके माता-पिता ने बार-बार कहा कि शारीरिक संबंध स्थापित हुए थे, हालांकि, इस अभिव्यक्ति का क्या अर्थ था, स्पष्ट नहीं था।

    नाबालिग पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसके चचेरे भाई ने 2014 में शादी का झूठा झांसा देकर एक साल से अधिक समय तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।उक्त मामले में दोषी करार देकर 10 साल की सजा देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को अपीलकर्ता ने चुनौती दी थी।

    पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल पीड़िता, उसके स्वजन की गवाही पर आधारित मौखिक साक्ष्य और रिकाॅर्ड में कोई फोरेंसिक साक्ष्य नहीं है।

    अदालत ने कहा कि शारीरिक संबंध शब्द का प्रयोग या परिभाषा न तो आइतपीसी और न ही पाक्सो अधिनियम के तहत की गई है। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पीड़िता का शारीरिक संबंध शब्द से क्या आशय था।

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