करिश्मा कपूर के बच्चों की याचिका के विरोध में उतरा प्रिया कपूर का बेटा, कहा-मामला अटकलबाजी और अनुमान पर आधारित
प्रिया कपूर के बेटे ने करिश्मा कपूर के बच्चों की याचिका का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह मामला अटकलबाजी और अनुमानों पर आधारित है। इस विरोध ने मामले को और भी उलझा दिया है। उन्होंने इस याचिका पर अपनी असहमति व्यक्त की है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर 30 हजार करोड़ की संपत्ति से जुड़ी वसीयत की प्रामाणिकता को चुनौती देने वाली अभिनेत्री करिश्मा कपूर के बच्चों याचिका का विरोध करते प्रिया कपूर के नाबालिग बेटे ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि उनका मामला अटकलबाजी और अनुमान पर आधारित है।
प्रिया के छह वर्षीय बच्चे की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने कहा कि वसीयत पेश करने में कोई देरी नहीं हुई, क्योंकि संजय का 12 जून को निधन हो गया था और वसीयत को 30 जुलाई को एक पारिवारिक बैठक के दौरान निष्पादक द्वारा पेश किया गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वर्षों की देरी के बजाय यह केवल एक महीने का मामला था।
वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति ज्योति सिंह के समक्ष कहा कि यह पूरा मामला अटकलों और अनुमान पर आधारित है। उनका कहना है कि 30 जुलाई को निष्पादक ने इसे जल्दबाजी में पढ़ा, एक दस्तावेज को काटा और चुनिंदा ढंग से पढ़ा। अखिल सिब्बल ने कहा कि 30 जुलाई की बैठक के बाद, करिश्मा कपूर की बेटी और नाबालिग बेटे की ओर से वसीयत की प्रति मांगने के लिए एक भी पत्र नहीं लिखा गया।
उन्होंने बताया कि 22 अगस्त को वसीयत की प्रति मांगने के लिए निष्पादक को पहला पत्र लिखा गया। उन्होंने कहा कि वादी नाबालिगों की मां (करिश्मा कपूर) सभी कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए प्रिया कपूर से तुरंत संपर्क करती हैं। वह दस्तावेज़ मांग रही हैं और प्रिय सहयोग कर रही है।
हालांकि, करिश्मा कपूर को वसीयत की प्रति नहीं मिल रही है क्योंकि उन्होंने गोपनीयता समझौते पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था। अखिल सिब्बल ने कहा कि वादी यह कहते हुए मुकदमा दायर कर सकते थे कि वसीयत में कुछ संदिग्ध है, इसलिए उन्हें कोई प्रति नहीं दी गई। लेकिन उन्हें पता था कि उन्हें बाहर रखा गया है, इसलिए उन्हें इसे (वसीयत को) चुनौती देनी ही थी, चाहे कुछ भी हो जाए।
संजय कपूर की विदेशी संपत्तियों के बारे में अखिल सिब्बल ने कहा कि वादी ने इस संबंध में कोई मांग नहीं की है और यह मामला विदेशी क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने यह भी कहा कि जब तक संजय जीवित थे, तब तक दोनों पक्षों के बीच कोई मतभेद नहीं था और सभी एक-दूसरे से विनम्रता से मिलते थे।

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