अमेरिका यात्रा के दौरान सिखों के संदर्भ में दिए गए अपने बयान को लेकर राहुल गांधी ने जिस तरह यह कहा कि उन्होंने वहां कुछ गलत नहीं कहा था और भाजपा झूठ फैलाकर उन्हें चुप करना चाहती है, उससे यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि वह अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने पर आमादा हैं। उनके रवैये से यह भी साफ है कि उन्हें कांग्रेस की उन मूल नीतियों से कहीं कोई मतलब नहीं, जिनके तहत पार्टी सभी देशवासियों को एक साथ लेकर चलना अपना उद्देश्य बताती थी। वह जानबूझकर वही गलती कर रहे हैं, जो इंदिरा गांधी ने की थी और जिसके चलते पंजाब और साथ ही देश को बहुत बुरे नतीजे भोगने पड़े।

लगता है कि वह अपनी दादी की गलती से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं। यह आश्चर्यजनक है कि उनकी सेहत पर इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा कि खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने उनके बयान को सही ठहराया और उसे अपने पक्ष में भुनाने में जुट गया। अच्छा होता कि राहुल गांधी इस पर विचार करते कि उन्होंने अपने आपत्तिजनक बयान से खालिस्तानियों को खुराक देने का ही काम किया है। उन्होंने सिखों को लेकर अमेरिका में दिए गए अपने बयान का बचाव करते हुए यह प्रश्न भी पूछा कि क्या भारत ऐसा देश नहीं होना चाहिए, जहां हर सिख बिना डरे अपने धर्म का पालन कर सके? आखिर उन्हें यह आभास कैसे हो गया कि भारत ऐसा देश नहीं है? क्या यहां किसी को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की आजादी नहीं है?

हो सकता है कि राहुल गांधी यह माहौल बनाकर पंजाब में राजनीतिक लाभ हासिल करने में सफल हो जाएं कि सिखों की धार्मिक आजादी के लिए संकट पैदा होने वाला है, लेकिन इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वह अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए जाति, पंथ, क्षेत्र के आधार पर लोगों में वैमनस्य पैदा करने में जुट गए हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन्होंने केवल सिखों की धार्मिक आजादी को लेकर ही बेतुका बयान नहीं दिया, बल्कि वह जाति गणना पर जिस तरह जोर देने में लगे हुए हैं, उससे भी जातिगत वैमनस्य को बल मिल रहा है।

इसे और बल देने के लिए वह आरक्षण को लेकर भी यह झूठ फैलाने में लगे हुए हैं कि उसे हटाने की साजिश रची जा रही है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि उन्होंने किस तरह यह दुष्प्रचार किया कि मोदी सरकार संविधान बदलने का इरादा रखती है। कम से कम कांग्रेस को तो इसका आभास होना ही चाहिए कि विभाजनकारी राजनीति के कैसे दुष्परिणाम होते हैं। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं कि जो कांग्रेस देश की आजादी का श्रेय लेती है, उसका ही नेता देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचाने का काम कर रहा है।