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    नेताओं को भा रहा रोड शो, सभाओं से कितना अलग है ये ट्रेंड; कम खर्च और ज्‍यादा लोग या फिर ..?

    Updated: Sat, 08 Nov 2025 01:29 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव में नेताओं को रोड शो खूब भा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कई नेता रोड शो कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, रोड शो 'लीडर एट योर डोर' की तरह है और जनसभाओं की तुलना में कम खर्चीला है। बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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    अजय पांडेय, मुजफ्फरपुर। बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार में नेताओं को रोड शो खूब भा रहा। जनसभा के साथ रोड शो में उतर रहे। मतदाता भी अपने बीच नेताओं को देखकर-पाकर खुश हो रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से जोर पकड़ा यह ट्रेंड विधानसभा में भी पसंद किया जा रहा।

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    पहले चरण के मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा, चिराग पासवान, तेजस्वी यादव, पवन सिंह, मनोज तिवारी, राजनाथ सिंह, शाहनवाज हुसैन जैसे कई नेता रोड शो कर चुके हैं। 11 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान से पहले तक यह दौर जारी रहेगा।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 17 महीनों में पटना में तीन रोड शो कर चुके हैं। दो नवंबर को दिनकर चौराहा से उद्योग भवन तक का रोड शो तीसरा था। इससे पहले 25 मई, 2025 को पटना एयरपोर्ट के नए टर्मिनल के उद्घाटन के बाद किया था।

    दो नवंबर को करीब डेढ़ किमी के रोड शो में लोगों ने उन्हें करीब से देखा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मधुबनी और दरभंगा में रोड शो कर चुके हैं, जबकि तीन नवंबर को प्रियंका ने समस्तीपुर के रोसड़ा में किया था। योगी आदित्यनाथ ने भी चार नवंबर को दरभंगा में रोड शो किया था।

    Modi road show

    पसंद और नापसंद के अनुसार सभाओं में जाते मतदाता

    ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के राजनीतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. मुनेश्वर यादव बताते हैं कि भीड़ और जनसंपर्क के दृष्टिकोण से सभा और रोड शो की प्रकृति होती है। यद्यपि, दोनों का साधन जनसंपर्क व मास कनेक्टिविटी और साध्य गोलबंदी है। जनसभा में लोग नेताओं को सुनने-देखने जाते हैं।

    वहां नेता भीड़ से संवाद तो करते हैं, लेकिन सीमित अपील होती है। जनता पसंद और नापसंद के अनुसार सभाओं में जाती है, इसीलिए आजकल राजनीतिक दल बड़ी सभाओं से पहले जिलों में पार्टी संगठनों के माध्यम से लोगों को जुटाने और उन्हें सभा स्थल तक पहुंचने को प्रेरित करते हैं।

    Rahul gandhi Roadshow

    रोड शो कर्म खर्चीला, अधिक पहुंच

    रोड शो की अलग प्रकृति होती है। डॉ. मुनेश्वर इसे राजनीतिक विज्ञान की भाषा में लीडर एट योर डोर (नेता आपके दरवाजे पर) बताते हैं। पिछले कुछ वर्षों से देश के चुनाव में रोड शो का क्रेज देखा जा रहा। इसमें एक रूट होता है। नेता आपके करीब होते हैं। प्रचार तंत्र के लिए अधिक से अधिक लोगों से मिलते हैं। उनके साथ पूरा काफिला होता है।

    पिछले लोकसभा चुनाव में भी नेताओं को सभाओं से अलग रोड शो करते देखा गया था, इस बार विधानसभा में देखा जा रहा। जनसभाओं की तुलना में यह कम खर्चीला है। पार्टियां छोटी से छोटी जनसभा कर ले, हर स्तर की तैयारी करनी होती है। इसके बावजूद इससे आश्वस्त नहीं हो सकतीं कि लोग वहां तक पहुंचे। बड़े नेताओं को देखने-सुनने के लिए तो लोग पहुंच जाते हैं, लेकिन दूसरों में...! इसलिए इस चुनाव में भी सभाओं के साथ रोड शो पर जोर दिया जा रहा।

    roadshow

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    जनसभा और रोड शो के बीच जातीय समीकरण प्रभावी

    मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग से सेवानिवृत्त डॉ. विधुशेखर सिंह जनसभाओं और रोड शो की प्रवृत्ति से अलग एक और विचार प्रस्तुत करते हैं। उनका मानना है कि बिहार की राजनीति में जाति अहम फैक्टर है। जनसभा और रोड शो के बीच जातीय समीकरण देखा जा रहा है।

    Tejshawi yadav RJD

    पार्टियां प्रत्याशियों के व्यक्तित्व देखने से पहले उसका और क्षेत्र का जातीय समीकरण देखती हैं। संतुलित और साम्य स्थिति में ही प्रत्याशी तय होते रहे हैं। आप यह भी देखते हैं कि नामांकन सभा से लेकर लेकर अन्य सभा तक के लिए भी स्वजातीय स्टार प्रचारक को प्राथमिकता दी जा रही है।

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