जयंत राज बनाम जितेंद्र सिंह की जंग: मंत्री का अनुभव या बदलाव की हवा; अमरपुर के वोटर किसे देंगे मौका?
अमरपुर में जदयू के जयंत राज और कांग्रेस के जितेंद्र सिंह के बीच मुकाबला है। जयंत राज विकास कार्यों के दम पर वोट मांग रहे हैं, जबकि जितेंद्र सिंह बदलाव की बात कर रहे हैं। मतदाता सरकार के कामकाज और विकास के अधूरे वादों को ध्यान में रखकर फैसला करेंगे। जातीय समीकरण भी अहम भूमिका निभाएगा, क्योंकि कुशवाहा, राजपूत, यादव और मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं।

अमरपुर जिले की राजनीति के दो ऐसे ध्रुव हैं, जहां सत्ता और संघर्ष की कहानी हर चुनाव में अलग ही दिखाई-सुनाई देती है। विधानसभा क्षेत्र में मतदान से पहले राजनीतिक तापमान चरम पर हैं। अमरपुर विधानसभा सीट पर फिर वही दो चेहरे। जदयू के जयंत राज और कांग्रेस के जितेंद्र सिंह आमने-सामने हैं। मंत्री पद के अनुभव और संगठन की ताकत से लैस जयंत राज विकास की मिसाल पेश करने की कोशिश में हैं, जबकि जितेंद्र सिंह राजद के परंपरागत व स्वजातीय समर्थन के सहारे जीत की राह खोज रहे हैं। दोनों सीटों पर जातीय गणित और नेतृत्व की छवि आपस में गुंथकर ऐसी राजनीतिक बुनावट बना रही है, जिसमें हर धागा किसी न किसी उम्मीद की कहानी कहता है। मतदाता किसे चुनेंगे, जानने के लिए पढ़ें दैनिक जागरण की ग्राउंड रिपोर्ट..
अमरपुर सीट: जयंत राज और जितेंद्र सिंह के बीच सीधा टक्कर
अमरपुर विधानसभा क्षेत्र के सियासी मैदान में वही पुराने चेहरे हैं, लेकिन जनता का मूड कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है। एक ओर हैं जदयू के मंत्री जयंत राज, दूसरी ओर कांग्रेस के जितेंद्र सिंह। मुकाबला दिलचस्प है। गांव से लेकर बाजार तक, हर जगह चर्चा का विषय यही है कि इस बार जनता किसे मौका देगी। अनुभव को या बदलाव को।
क्या सोच रहे मतदाता?
अमरपुर बाजार की एक चाय की दुकान पर बैठे बासुकी भगत और पूरन भगत कहते हैं- 'वोट तो नीतीश और मोदी को देखकर होगा, कोई भरम नहीं है। उनके लहजे में सरकार के प्रति भरोसा झलकता है।' वहीं कौशलपुर गांव की चीना देवी का अंदाज कुछ अलग है। वह कहती हैं, 'जो दस हजार दिया, हम तो वोट उसी को करेंगे। बाबू, इतनी उम्र हो गई, कभी किसी ने हमारी चिंता नहीं की। जिसने की, उसे वोट नहीं देंगे तो किसे देंगे।'
पान दुकान चलाने वाले प्रकाश कुमार की बातें लोगों की सोच का एक और पहलू उजागर करती हैं। वे कहते हैं, 'हवा तो उसी की चल रही है, जिसकी सरकार है। अगर हाईवे बन जाता तो जाम की समस्या से निजात मिल जाती। घोषणा तो हुई है, उम्मीद है बन जाएगा, तब भागलपुर जाना आसान हो जाएगा।' यह टिप्पणी बताती है कि जनता सरकार के कामकाज पर नजर रखे हुए है, पर विकास के अधूरे वादों को भी नहीं भूली है। राजनीतिक समीकरण की तस्वीर भी उतनी ही दिलचस्प है।
पिछली बार पहली बार चुनाव लड़कर जीतने वाले जयंत राज अब मंत्री के रूप में जनता के बीच हैं। वे अपने काम, योजनाओं और डबल इंजन सरकार के विकास माडल को गिनाते हुए दूसरी बार जीत का दावा कर रहे हैं। जितेंद्र सिंह इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं। वे राजद के पारंपरिक यादव-मुस्लिम वोट बैंक, अपने राजपूत समुदाय और मंत्री विरोधी वोटों को एकजुट कर चुनावी जंग को संतुलित बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है, जनता अब बदलाव चाहती है, अमरपुर को नई दिशा देने की जरूरत है।
अमरपुर में जातीय समीकरण का क्या?
अमरपुर की राजनीति में जातीय संतुलन अहम भूमिका निभाता है। कुशवाहा, राजपूत, यादव और मुस्लिम वोटर यहां निर्णायक हैं। पिछले चुनाव में जयंत राज को 53 हजार, जितेंद्र सिंह को 50 हजार और मृणाल शेखर को 40 हजार वोट मिले थे। इस बार मृणाल शेखर जदयू के साथ हैं, जिससे जयंत राज को संगठनात्मक लाभ मिल सकता है। कुल मिलाकर, अमरपुर का चुनाव इस बार किसी लहर पर नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्दों और काम के आकलन पर टिकेगा।
जयंत राज सत्ता और अनुभव पर भरोसा कर रहे हैं, जितेंद्र सिंह बदलाव की हवा पर सवार हैं, जबकि सुजाता बैध नए विकल्प के तौर पर चर्चा में हैं। अब फैसला इसी पर निर्भर करेगा कि अमरपुर सत्ता की निरंतरता को चुनता है या बदलाव की नई दिशा तय करता है।
जयंत राज सत्ता और अनुभव पर भरोसा कर रहे हैं, जितेंद्र सिंह बदलाव की हवा पर सवार हैं, जबकि सुजाता बैध नए विकल्प के तौर पर चर्चा में हैं। अब फैसला इसी पर निर्भर करेगा कि अमरपुर सत्ता की निरंतरता को चुनता है या बदलाव की नई दिशा तय करता है।
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