बांका का रण: NDA की 'विकासनीति' पर महागठबंधन का ट्रंप कार्ड; किसका पलड़ा भारी?
बांका में राजनीतिक सरगर्मी तेज है। भाजपा-राजद की परंपरागत लड़ाई में सीपीआई के आने से समीकरण बदल गए हैं। भाजपा के रामनारायण मंडल विकास पर भरोसा जता रहे हैं तो महागठबंधन को अपनी रणनीति पर पूरा यकीन है। जनसुराज के आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। मतदाता क्या सोचते हैं पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट..

बांका जिले की राजनीति के दो ऐसे ध्रुव हैं, जहां सत्ता और संघर्ष की कहानी हर चुनाव में नए रंग भरती है। विधानसभा क्षेत्र में इस बार फिर राजनीतिक तापमान चरम पर हैं। बांका में परंपरागत भाजपा-राजद की जंग का चेहरा बदल चुका है। राजद की यह सीट अब सीपीआई के पास है, जिससे समीकरणों में हलचल है। भाजपा के रामनारायण मंडल अपनी पुरानी पकड़ और विकास की राजनीति पर भरोसा जता रहे हैं, तो महागठबंधन में मतों की एकजुटता की परीक्षा है। हवा में उत्सुकता है कि क्या बाम मोर्चे का यह प्रयोग बांका की मिट्टी में अंकुरित होगा। पढ़ें बांका विधानसभा से संजय सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट...
बांका सीट: परंपरागत मुकाबला, लेकिन बदल गया समीकरण
बांका विधानसभा की राजनीतिक जमीन हमेशा भाजपा और राजद के बीच के पारंपरिक मुकाबले की साक्षी रही है। यह वही सीट है, जहां कभी भाजपा के रामनारायण मंडल और राजद के जावेद इकबाल अंसारी आमने-सामने रहते थे। दोनों ही नेता इलाके की राजनीति में मजबूत पकड़ रखते हैं। छह बार जीत चुके रामनारायण मंडल और तीन बार विधायक रह चुके जावेद इकबाल, दोनों ही मंत्री रह चुके हैं। लेकिन इस बार का चुनाव समीकरणों के लिहाज से पूरी तरह बदला हुआ है।
राजद ने यह सीट महागठबंधन में अपने सहयोगी दल सीपीआई को दे दी है। पार्टी ने पूर्व विधान पार्षद संजय कुमार को मैदान में उतारा है। सीपीआई पहली बार इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रही है। शुरुआत में यह फैसला महागठबंधन के लिए रणनीतिक माना गया, लेकिन जमीन पर इसका असर कुछ उलट दिख रहा है। गैर-मुस्लिम उम्मीदवार मिलने से राजद का पारंपरिक मुस्लिम वोटर वर्ग नाराज है।
RJD के कार्यकर्ता भ्रमित, BJP नेता आश्वस्त!
राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जावेद इकबाल अंसारी टिकट कटने के बाद से सार्वजनिक रूप से सक्रिय नहीं दिख रहे। इससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, निर्दलीय मैदान में उतरे राजद नेता जमीरूद्दीन ने एक दिन पहले सीपीआई प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है, लेकिन मुस्लिम वोटरों में जोश और एकजुटता अब भी नहीं दिखती। स्थानीय स्तर पर कई मुस्लिम मतदाता अब भी असमंजस की स्थिति में हैं कि किसे वोट दें।
दूसरी ओर, सीपीआई अपने परंपरागत कैडर वोट और वाम समर्थक मतदाताओं को जोड़ने में जुटी है। भाजपा के मौजूदा विधायक रामनारायण मंडल इस बार भी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं। उनका कहना है कि मोदी-नीतीश सरकार के कामों और विकास योजनाओं का असर हर गांव में दिख रहा है।
पिछले चुनाव में उन्होंने राजद के जावेद इकबाल को लगभग 17 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। इस बार वे अपने विकास कार्यों के साथ डबल इंजन सरकार की नीतियों को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं। खासकर सड़कों, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए कामों का हवाला दे रहे हैं।

जनसुराज ने रोचक किया मुकाबला
इस बीच, जनसुराज के उम्मीदवार कौशल सिंह भी चुनावी माहौल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। वे परंपरागत दो ध्रुवीय मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। निर्दलीय जवाहर झा की खासकर युवा मतदाताओं और कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पैठ बनती दिख रही है। उनके समर्थक उन्हें नए विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं।
बांका विधानसभा क्षेत्र में यादव, मुस्लिम, वैश्य, सवर्ण और अतिपिछड़ा मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। बांका की हवा अभी किसी एक दिशा में नहीं बह रही, लेकिन यह तय है कि इस बार जीत का रास्ता आसान नहीं होगा। यह चुनाव बांका के मतदाताओं के लिए सिर्फ दलों का नहीं, बल्कि भरोसे और भविष्य की दिशा तय करने वाला चुनाव है।

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