"केवल 10 हजार से नहीं बनी बात", एनडीए की जीत के इस फैक्टर की बहुत कम हो रही चर्चा
Bihar election result: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम घोषित होने के बाद अब विश्लेषण का दौर शुरू हो गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता अभी अनौपचारिक रूप से ही सही, इसकी बातें कर रहे हैं। कौन सा फैक्टर कारगर रहा और कहां चूक हो गई? विपक्षी महागठबंधन के नेताओं के लिए माथापच्ची अधिक है। हर घर में एक नौकरी, जीविका के लिए स्थाई नौकरी और 30 हजार रुपये देने जैसी घोषणाओं पर भी लोगों ने भरोसा क्यों नहीं किया, इस पर मंथन चल रहा है।

Bihar election result: चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिए योजना शुरू की थी। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। Bihar election Result: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतों की गिनती संपन्न होने के बाद जो विश्लेषण सामने आ रहे है उसके केवल जीविका दीदियों को दिए 10 हजार रुपये की बात हो रही है।
जबकि देखा जाए तो महागठबंधन की ओर से हर घर में नौकरी, फ्री बिजली, पेंशन या फिर जीविका दीदियों के लिए जो वादे किए गए वे एनडीए की तुलना में बेहतर होने के बाद भी लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि केवल 10 हजार रुपये ने काम नहीं किया है।
जाति समीकरण, प्रत्येक परिवार को सरकारी नौकरी, महिलाओं को तीस हजार रुपये ...ये सभी वादे महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव के पहले किए। इसका प्रचार भी खूब किया। उम्मीद थी कि यह वादा एनडीए के जीविका दीदियों को दस हजार रुपये, 125 यूनिट फ्री बिजली, मुफ्त राशन, बढ़ी हुई पेंशन राशि आदि पर भारी पड़ जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ।

जनता ने दो चेहरे नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार पर भरोसा किया।जाति समीकरण ने जरूर प्रभाव डाला, मगर यह पुरुषों तक ही सीमित रहा। महिला मतदाताओं ने घर, परिवार, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए जमकर वोट किया।
उसने सभी समीकरणों को ध्वस्त कर दिया। यही कारण था कि पहली बार मैदान में उतरे एनडीए के उम्मीदवारों को भी भरपूर वोट मिले। जबकि स्थानीय राजनीति और भितरघात कम नहीं हुए। दूसरी ओर महागठबंधन के नेता जनता की नब्ज को नहीं पकड़ कसे।
छठ पर्व के तुरंत बाद हुई सकरा की सभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने छठ को लेकर ऐसी बात कह दी जिसे पीएम मोदी ने मुद्दा बना दिया। इसके अलावा राजद नेता तेजस्वी और राहुल गांधी में समन्वय की भी कमी दिखी।

राहुल ने कभी राजद के घोषणा पत्र पर खुलकर मंच से बात नहीं की। इससे जनता तक मैसेज नहीं पहुंच सका। दूसरी ओर एनडीए के बड़े नेताओं के बयानों में विश्वास रहा, विरोधाभास नहीं। जंगलराज को फिर से नहीं आने देने का नैरेटिव सेट हुआ।
पीएम, सीएम और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इसे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करते रहे। इससे जनता में भटकाव नहीं हुआ।
सबसे अधिक भितरघात, मगर मिली जीत
स्थानीय स्तर पर सबसे अधिक भितरघात मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट पर रहा। यहां खुलेआम यह बात आई कि संगठन और पार्टी के जिले में बड़े नेता भाजपा उम्मीदवार रंजन कुमार के विरुद्ध काम कर रहे। यहां तक कि उनके रोड शो में पार्टी के कोई बड़े नेता नजर नहीं आए।
पार्टी के दोनों जिलाध्यक्ष भी नहीं। एक पूर्व माननीय भी मतदान के दिन ही दिखे, जिनसे उम्मीदवार को उम्मीद भी थी। चुनाव के तीन से चार दिन पहले तक स्थिति भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में नहीं दिख रही थी।

ऐसे में यूपी के मुख्यमंत्री की जनसभा और संघ के नेताओं की मेहनत ने बड़ा काम किया। इससे मतदाता घरों से निकले और 59 प्रतिशत से अधिक मतदान ने रंजन कुमार की जीत तय कर दी। इसमें उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की भी भूमिका रही जो पूर्व में संगठन में विभिन्न पदों पर रहे थे। भाजपा को अपने के बगावत का खमियाजा पारू में भुगतना पड़ा।
अशोक कुमार सिंह का टिकट कटने से यह सीट राजद ने जीत लिया। भाजपा यहां बगावत को नियंत्रित नहीं कर सकी। जिला संगठन की ओर से प्रयास भी नहीं हुए। दूसरी ओर जदयू के उम्मीदवारों ने भितरघात और बगावत का डैमेज कंट्रोल बेहतर तरीके से किया।
गायघाट में भाजपा नेता अशोक कुमार सिंह जन सुराज से टिकट लेकर जदयू उम्मीदवार कोमल सिंह के विरुद्ध उतर गए। वहीं पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव और उनके पुत्र प्रभात किरण भी बगावत के साथ भितरघात कर रहे थे।
इसका अधिक असर नहीं पड़ा, मगर अशोक सिंह ने जरूर उनके 10 हजार वोट काटे। अगर अंतर कम होता तो यह जरूर नुकसान करता। कांटी में भी जदयू उम्मीदवार अजीत कुमार को संगठन से अधिक मदद नहीं मिली, मगर लगातार क्षेत्र में बने रहने का उन्हें लाभ मिला।
बहुकोणीय मुकाबले में पिछले दो बार से पराजय झेलने वाले अजीत इसबार सीधी लड़ाई में बाजी मार गए। क्षेत्र में लगातार बने रहने का लाभ बोचहां में लोजपा आर उम्मीदवार बेबी कुमारी को भी मिला। यहां राजद उम्मीदवार अमर पासवान के विरुद्ध जनता में जरूर गुस्सा था।
कई जगहों पर समस्याओं के बावजूद वह वहां लोगों से मिलने नहीं गए। जलजमाव से जूझते लोगों के पास पहुंचकर बेबी ने उनकी समस्या जानी। भाजपा के खाते में सीट नहीं आई तो लोजपा आर से अंतिम समय में टिकट लिया और मैदान मार ली। मीनापुर में भी अजय कुमार को जनता के बीच रहने का लाभ मिला।

चिराग फैक्टर का डैमेज कंट्रोल
पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू ने कांटी, गायघाट और मीनापुर सीट इसलिए गंवा दी थी कि यहां चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। इस बार चिराग ने जदयू के लिए काम भी किया। इससे वोटों का बिखराव नहीं हुआ और एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज कर ली।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत ने न केवल बिहार वरन देश की राजनीति के एक ट्रेंड सेट करने का काम किया है। 20 वर्ष के लगातार शासन के बाद भी कोई विरोधी लहर नहीं होकर सत्ता के पक्ष में सुनामी की स्थिति भी बन सकती है यदि जनभावना के अनुसार कार्य किया जाए।

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