महागठबंधन का 'महा-झगड़ा', सीट बंटवारे में उलझकर एनडीए की राह कर दी आसान!
बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर भारी खींचतान मची है। राजद, कांग्रेस और वीआईपी के नेता कई सीटों पर दोस्ताना मुकाबले कर रहे हैं, जिससे एनडीए को फायदा हो सकता है। मुकेश सहनी की नाराजगी और बाद में राहुल गांधी से बातचीत के बाद उनकी नरमी ने महागठबंधन की अस्थिरता को उजागर किया है।

महागठबंधन का महा-झगड़ा
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान इंडिया में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आलम ये है कि जिस महागठबंधन न कभी एकजुट होकर एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ने का वादा किया था आज वही सीट बंटवारे की गणित में ऐसे में उलझे हैं कि राजनीतिक गलियारे में अब उनका मजाक बनना शुरू हो गया है।
पहल चरण के लिए जैसे-जैसे वोटिंग की तारीफ नजदीक आ रही है वैसे ही महागठबंधन में एनडीए से बल्कि अपने गठबंधन में शामिल पार्टियों के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की रेस शुरू हो गई है। ऐसी संभावना है कि महागठबंध में शुरू हुई ये रेस एनडीए को फायदा पहुंचा सकती है। क्योंकि 10 सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच लगभग दोस्ताना मुकाबले हो रहे हैं। जो इंडिया गठबंधन को हार की ओर लेकर जा सकते हैं।
कहां फंसा है पेंच
सीट बंटवारे से नाराज राजद, कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता जिन-जिन सीटों पर दोस्ताना मुकाबले कर रहे हैं एनडीए की रफ्तार को धार मिलना तय माना जा रहा है। वैशाली, तारापुर, कुटुम्बा और अन्य प्रमुख सीटों पर, राजद उम्मीदवार कांग्रेस और वीआईपी उम्मीदवारों के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन के इस आंतरिक कलह को देखकर एनडीए काफी खुश हो रहा है।
वोटिंग के पहले चरण से पहले उम्मीदवारों की घोषणा को लेकर महागठबंधन में काफी खींचतान हुई। कांग्रेस ने जहां पहले चरण में 48 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी, वहीं गठबंधन में शामिल दूसरे दल ऐसा करने में असफल रहे। ऐसे में ये गठबंधन की कमजोर प्रकृति को दर्शाता है
सीट बंटवारे को लेकर अभी भी बातचीत जारी
सीट बंटवारे को लेकर अभी राजद के तेजस्वी यादव और अन्य नेताओं के बीच लगातार बातचीत जारी है, लेकिन नतीजा अभी साफ नहीं हुआ है। वहीं दूसरी तरफ वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने भी चुनाव लड़ने से मना कर दिया और वो अब सिर्फ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन करते हुए नजर आएंगे।
ध्यान देने वाली बात ये है कि मुकेश सहनी ने पहले ही महागठबंधन छोड़ने का फैसला कर लिया था क्योंकि राजद उनकी मांगों को मानने को तैयार नहीं थी। बाद में भाकपा-माले के दीपांकर भट्टाचार्य ने राहुल गांधी से फोन पर बात करके मुकेश सहनी को शांत कराया।
सहानी के गुस्से के बाद आखिरी समय में उनकी यह नरमी महागठबंधन के भीतर गहरी अस्थिरता को दर्शाती है। उनकी यह घोषणा उस व्यापक अस्वस्थता का एक छोटा सा उदाहरण है जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ग्रसित करती है - स्पष्टता और दिशा का अभाव। बिना चुनाव लड़े ही उपमुख्यमंत्री बनने की सहनी की आकांक्षाएँ, सतह के नीचे छिपी प्रतिस्पर्धी महत्वाकांक्षाओं को दर्शाती हैं, जो इस घोर अराजकता को और बढ़ा रही हैं।
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