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    Bihar Election 2025: बीच रास्ते से नेताजी ने पटना बुलाया और चाय पिलाकर छीन लिया पार्टी का सिंबल

    Updated: Fri, 17 Oct 2025 09:37 AM (IST)

    वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में, एक समाजसेवी नेताजी को सामाजिक न्याय पार्टी से टिकट मिला। रास्ते में सुप्रीमो ने उन्हें चाय पर बुलाकर सिंबल वापस ले लिया, क्योंकि विरोधी गुट ने उनकी काली करतूतों का खुलासा कर दिया था। निराश नेताजी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

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    चाय की चुस्की में सपने चूर

    संवाद सहयोगी, ब्रह्मपुर (बक्सर)। समाजसेवी से धन कुबेर बने एक नेता जी को चुनाव लड़ने का शौक हुआ और जुगाड़ लगाकर सामाजिक न्याय की एक पार्टी का टिकट भी ले लिया। सिंबल मिलने के बाद नेताजी बक्सर के लिए रवाना हो गए। वे बीच रास्ते ही पहुंचे थे कि पार्टी सुप्रीमो ने चाय पिलाने के बहाने बुलाया और नेताजी के सपनों पर पानी फेर दिया।

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    वाकया वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव का है। जिले के एक समाजसेवी को राजनीति में सेवा करने का शौक चढ़ा। कथित समाजसेवा से ही वे धन कुबेर बन गए थे। उनके कुछ शिष्यों ने विधायक के पावर का सपना दिखा दिया। यह भी समझाया कि समाजसेवा का दायरा और बढ़ जाएगा। 

    ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से टिकट

    नेताजी ने पार्टी और उसके इर्द-गिर्द के प्रभावशाली लोगों को फूल-माला चढ़ाकर खुश कर दिया। पार्टी के सुप्रीमो ने उन्हें पटना बुलाकर ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का सिंबल भी थमा दिया। सिंबल पाकर गदगद हुए नेताजी अपने काफिले के साथ वापस आने लगे। 

    इसी बीच विरोधी गुट के लोगों ने नेताजी के समाजसेवा के नाम पर काली करतूत की पूरी कुंडली पार्टी सुप्रीमो के सामने खोल दी। यह सुनकर सुप्रीमो के होश फाख्ता हो गए। नेताजी का काफिला कोईलवर के पास पहुंचा था। बीच रास्ते में आने पर सुप्रीमो ने नेताजी को फोनकर तुरंत चाय पीने के लिए वापस पटना आने का संदेश सुनाया। 

    चाय के बहाने सिंबल वापस लिया

    इससे नेताजी और उनके समर्थकों की खुशी और बढ़ गई। पटना पहुंचकर सुप्रीमो के साथ बैठकर चाय की चुस्की ली, लेकिन चाय का स्वाद उस समय फीका पड़ गया, जब सुप्रीमो ने त्रुटि होने की बात कहकर सिंबल को वापस ले लिया और कहा कि आपको बाद में खबर दी जाएगी, लेकिन दूसरे दिन सच्चाई सामने आ गई। 

    सिंबल वापसी के बाद फूल माला के खर्च का हिसाब जोड़कर नेताजी काफी उदास हुए, तो उनके शिष्यों ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने की प्रेरणा देते हुए जीत का दावा भी कर दिया। 

    नेताजी निर्दलीय प्रत्याशी बनकर मैदान में कूद गए। चुनाव के दौरान उनके शिष्यों की चांदी कटने लगी, लेकिन समाजसेवा का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और चुनाव में हाशिए पर चले गए।