Diwali में पटाखे फोड़ने के लिए Karan Tacker को मिलते थे 20 रुपये, बताया- कैसी होती है फिल्मी पार्टीज
बड़ी-बड़ी दिवाली पार्टीज में शामिल होने वाले एक्टर करण टैकर (Karan Tacker) बचपन में दिवाली कैसे सेलिब्रेट करते थे, इस बारे में उन्होंने खुलकर बात की है। उनका कहना है कि आज वह बड़ी-बड़ी दिवाली पार्टी में शामिल होते हैं, लेकिन मजा बचपन की दिवाली सेलिब्रेशन में ही है। उन्होंने बचपन की दिवाली पार्टी से कई किस्से भी शेयर किए हैं। जानिए इस बारे में।

करण टैकर ऐसे मनाते हैं दिवाली का पर्व। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम
प्रियंका सिंह, मुंबई। करण टैकर (Karan Tacker) दीपावली पर मां के हाथों से बना हलवा खाने का इंतजार हर साल रहता है। हालांकि करण के लिए तभी से दीपावली शुरू हो चुकी है, जब हाल ही में वे डिजाइनर मनीष मल्होत्रा की दीपावली पार्टी में नजर आए।
दैनिक जागरण के साथ बातचीत में करण टैकर ने फिल्मी दिवाली सेलिब्रेशन के बारे में बात की है।
दीपावली पर होने वाली फिल्मी पार्टियों में जाने की उत्सुकता कैसी होती है?
सच कहूं तो मुझे दीपावली से लेकर क्रिसमस और नए साल तक का यह समय बहुत पसंद है। लोगों से मिलना अच्छा लगता है। मेरा कोई फिल्मी बैकग्राउंड नही रहा है। मुझे इन पार्टियों में जाने का मौका ही तब मिला, जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया। मनीष मल्होत्रा (फैशन डिजायनर) करीबी दोस्त हैं, उनकी दीपावली पार्टी पहले ही होती है। बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन) अब दीपावली पार्टी नहीं करते हैं, लेकिन अगर करते तो वहां का निमंत्रण मिलना मजेदार होता।
आपके लिए अब तक की सबसे यादगार दीपावली कौन सी रही है?
बचपन की दीपावली। भले ही हम कलाकार चकाचौंध पार्टी वाले माहौल में रहते हैं, लेकिन खूबसूरत यादें साधारण ही होती हैं। मैं मुंबई से हूं, लेकिन बचपन में हम दीपावली दिल्ली और पंजाब में मनाते थे, क्योंकि मेरी दादी और नानी वहां रहती थीं। हमारा पूरा परिवार वहां जमा होता था, साथ पूजा करना, गाड़ी भरकर पटाखे लाना सब याद है।
दीपावली की पूजा शाम को दादी ही करती थीं। परिवार के सभी सदस्य साथ मिलकर पूजा करते थे। पहले मामा नारंगी रंग की 20 रुपये वाली गड्डी लेकर आते थे। घर के सभी बच्चों को एक-एक नोट मिलता था। बचपन में 20 रुपये मिलते थे कि जाकर अपनी पसंद के पटाखे खरीद लो।
जालंधर में मेरे तीन मामू रहते हैं। हर मामू के पास जाकर 20 रुपये लेता था, फिर पटाखे खरीदता था। 20 रुपये मिलने की जो खुशी होती थी, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। अब तो डिजिटल इंडिया है। कैश देखे ही बहुत समय हो गया है।
दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा होती है। पैसों की अहमियत किस उम्र में समझ आ गई थी?
बहुत कम उम्र में ही समझ मे आ गया था कि पैसे कमाना बहुत जरूरी है। मैं सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से आता हूं। बचपन से लेकर अब तक माता-पिता को मेहनत करते देखा हैं। मैं इतने पैसे कमाना चाहता था कि माता-पिता को काम न करना पड़े। मुझे याद है कि कई बार स्कूल की फीस देने की दिक्कत हुआ करती थी। फीस न भरने पर सबके सामने क्लास में खड़ा कर दिया जाता था। उस वक्त समझ आ गया था, पैसों की बहुत अहमियत है।
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फिलहाल किन प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है? ‘स्पेशल आप्स’ का तीसरा सीजन बनेगा?
लोगों का प्यार मिलता रहेगा, तो तीसरा सीजन जरूर आएगा। यह फ्रेंचाइज मेरे करियर के लिए बहुत अहम रही है। डिजिटल प्लेटफार्म पर मेरे पूरे सफर को इस शो ने किक स्टार्ट किया था। बाकी मैंने अमेजन एमएक्स प्लेयर के लिए ‘भय’ वेब सीरीज की शूटिंग की है। यह हिंदुस्तान के पहले पैरानार्मल इन्वेस्टिगेटर अफसर गौरव तिवारी पर आधारित है। मैं उसमें गौरव की ही भूमिका निभा रहा हूं। 32 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया था।
कोई एक ऐसा रिवाज, जो दीपावली पर आप बिल्कुल मिस नहीं करते हैं?
हर बार मेरा यही प्रयास होता है कि घर में जितने भी त्योहार या जन्मोत्सव मनाए जाएं, उसमें हम साथ बैठकर ही खाना खाएं। जीवन का असली मजा परिवार के साथ बैठकर बातें करने और खाना खाने में ही है। बाकी मैं दिनभर कहीं पर भी रहूं, शाम की दीपावली पूजा पर सब साथ ही होते हैं। हालांकि जब मुंबई से बाहर होता हूं, तो ऐसा नहीं भी हो पाता है। बाकी दीपावली पर हमारे यहां जिसका सबको इंतजार होता है, वह है मां के हाथ का बना हलवा। हमारे घर में जब भी कोई खुशी का मौका होता है, तो मां पूरे परिवार के लिए हलवा बनाती हैं।
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