Ek Deewane ki Deewaniyat Review: बोरियत में डूबी कहानी, हर्षवर्धन की सिर्फ एक्टिंग में दीवानगी
अभिनेता हर्षवर्धन राणे (Harshvardhan Rane) की फिल्म एक दीवाने की दीवानियत (Ek Deewane ki Deewaniyat) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में हर्षवर्धन के साथ सोनम बाजवा नजर आई हैं। वहीं फिल्म को लेकर काफी दिनों से बज बना हुआ था। अब सिनेमाघरों में अगर आप यह फिल्म देखने की योजना बना रहे हैं, तो उससे पहले हमारा ये रिव्यू जरूर पढ़ लें।
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दिल में दीवानगी पैदा करने से चूकी हर्षवर्धन की फिल्म
फिल्म – एक दीवाने की दीवानियत
मुख्य कलाकार – हर्षवर्धन राणे, सोनम बाजवा, सचिन खेड़ेकर, शाद रंधावा
निर्देशक – मिलाप मिलन जावेरी
अवधि- 140 मिनट
रेटिंग – दो
प्रियंका सिंह, मुंबई. दीवाली का मौका आया और इस मौके पर बॉक्स ऑफिस पर भी दो फिल्में आईं। जिसमें पहली है थामा और दूसरी है एक दीवाने की दीवानियत। वहीं इस साल जब अभिनेता हर्षवर्धन राणे (Harshvardhan Rane) की फिल्म 'सनम तेरी कसम' री-रिलीज हुई, तो दर्शकों ने उसे खूब प्यार दिया। जबकि फिल्म साल 2016 में पहली बार रिलीज हुई थी, तब ये फिल्म सिनेमाघरों में नहीं चली थी। इस बार हर्षवर्धन ने बार-बार कहा कि इस बार सिनेमाघर की टिकट जरूर खरीद लेना और अब हर्षवर्धन अपनी फिल्म एक दीवाने की दीवानियत (Ek Deewane ki Deewaniyat) को लेकर आए हैं, जिसमें उनके साथ सोनम बाजवा (Sonam Bajwa) हैं।
अब आपको बताते हैं कि आखिर क्या है एक दीवाने की दीवानियत की कहानी। तो कहानी है विक्रमादित्य भोसले की (हर्षवर्धन राणे) जो मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में है। एक दिन उसकी नजर सुपरस्टार एक्ट्रेस अदा रंधावा (सोनम बाजवा) पर पड़ती है। पहली नजर में विक्रमादित्य को उससे प्यार हो जाता है। जल्द ही प्यार, दीवानगी में बदल जाता है। अदा को विक्रमादित्य से प्यार नहीं है। उससे परेशान होकर अदा, मंच पर ऐलान कर देती है कि विक्रमादित्य को जो मारेगा, उसके साथ वह एक रात गुजारेगी। फिर आगे क्या होता है, यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।
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इस फिल्म को मिलाप जावेरी ने डायरेक्ट किया है और फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले भी डायरेक्टर मिलाप जावेरी ने मुश्ताक शेख के साथ मिलकर लिखा है। यह कहानी अच्छी लगती अगर इसे पिछली सदी के आठवें दशक में रखा गया होता। आज के दौर में यह कहानी हजम नहीं होती है, जहां लड़की, लड़के को मारने की सुपारी खुले आम मंच पर देती है। पुलिस और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। विक्रमादित्य से परेशान अदा की मदद पुलिस और प्रदेश का मुख्यमंत्री तक नहीं कर पाते। इंटरनेट मीडिया के मजबूत दौर में जहां कलाकार का एक ट्वीट ही अपनी बात पहुंचाने के लिए काफी होता है, वहां सुपरस्टार अदा और उसका परिवार बेहद बेबस और कमजोर है, यह बात पचती नहीं है। तर्क की इसमें कमी नजर आती है। सियासी खेल, जो शुरू में शुरू हुआ था, वो कहानी में अचानक से गायब हो जाता है। हालांकि कमजोर कहानी को अंत तक फिल्म का संगीत और इसके दमदार डायलाग्स संभाले रखते हैं। फिल्म के टाइटल ट्रेक से लेकर फिल्म के बाकी सभी गाने अच्छे हैं। जुनून और नफरत से ज्यादा ये एक म्यूजिकल फिल्म लगती है। फिल्म के भारी भरकम संवाद जैसे, तेरे लिए मेरा प्यार तेरा भी मोहताज नहीं... मेरा ये इश्क सिर्फ चिंगारी नहीं आग बनकर भड़केगा... तालियां बटोरते हैं।
अभिनय को लेकर हर्षवर्धन की दीवानगी उनके काम में झलकती है। उन्होंने अपना रोल शिद्दत से निभाया है। सोनम बाजवा सुंदर लगी हैं और अपने रोल में जंची भी हैं। विक्रमादित्य के पिता के रोल में सचिन खेड़ेकर का रोल अधूरा है। दोस्त के रोल में शाद रंधावा शुरू से अंत तक फिल्म में नजर तो आते हैं, लेकिन क्लाइमेक्स को छोड़कर उन्हें कुछ खास करने को नहीं मिलता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि, फिल्म को सिर्फ हर्षवर्धन अपने कंधों पर लेकर आगे बढ़े हैं। हालांकि फिल्म को लेकर बज काफी बना हुआ है और इसका मुकाबला आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना स्टारर थामा से है। ऐसे में देखना यह है कि फिल्म आने वाले दिनों में बॉक्स ऑफिस पर क्या कमाल करती है।
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