नई न्याय संहिता की उलझनों में घिरा सिनेमा और ओटीटी, 'मिर्जापुर' सीरीज को लेकर क्या बोले विनोद अनुपम
पुराने कानून और नई सीरीज का घालमेल है मिर्जापुर का सीजन 3। अमिताभ बच्चन की फिल्म सेक्शन 84 भी कतार में है। लोकप्रिय कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों के उल्लेख के साथ ही संवादों के माध्यम से आईपीसी की धाराओं के अर्थ बताती फिल्में कितनी प्रासंगिक रह जाएंगी साथ ही नई भारतीय न्याय संहिता का क्या असर होगा फिल्मों व ओटीटी के लेखन पर बता रहे हैं विनोद अनुपम...
जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। रमाकांत पंडित को आप भले ही नहीं जानते हों उनके बेटे गुड्डू भैया को तो जानते ही होंगे, वही मिर्जापुर वाले। गुड्डू भैया को फर्जी एनकाउंटर से बचाने के प्रयास में वह एक पुलिस अधिकारी को गोली मार देते हैं और अपराध भी स्वीकार कर लेते हैं। अब कोर्ट में मुकदमा शुरू होता है।
सरकारी वकील और रमाकांत पंडित के बीच जिरह शुरू होती है कि इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 302 के तहत उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जा सकती है या नहीं। अब लेखकों को क्या पता था कि इसके प्रदर्शित होने के दो दिन पहले देश में आईपीसी और उसकी धाराएं ही खत्म हो जाएंगी और उसके स्थान पर नई धाराओं के साथ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की शुरुआत हो जाएगी।
दर्शकों को होगी ये कठिनाई
यह तय तो काफी पहले हो गया था लेकिन लेखकों को शायद लगा होगा कि अभी दर्शकों को नई धाराओं को समझने में कठिनाई होगी, इसीलिए 302 ही सही होगा। वास्तव में आईपीसी 302 के स्थानापन्न बीएनएस 103 को स्वीकार करने में अभी जितनी असुविधा होगी, उससे कहीं अधिक असुविधा तब होगी जब कुछ अंतराल के बाद हम आईपीसी को पूरी तरह भूल चुके होंगे। कुछ वर्ष के बाद जब नए दर्शक यही सीरीज देखेंगे, तो उन्हें समझने में कठिनाई होगी कि हत्या के लिए वकील साहब 302 का मुकदमा क्यों चला रहे हैं।
मुहावरों की तरह स्मृतियों में बसी धाराएं
वाकई 'मिर्जापुर' ऐसा कोई एक उदाहरण नहीं। हिंदी सिनेमा ने तो अपने जन्म के साथ आईपीसी की धाराएं ही पढ़ीं और दर्शकों को उन्हें अच्छी तरह रटवा भी दिया। यदि 302 और 420 जैसी धाराएं मुहावरे की तरह आम लोगों की जुबान पर चढ़ी हैं, तो उसमें सिनेमा का योगदान कम नहीं माना जा सकता। ताजिरात ए हिंद के दफा का मतलब भले ही हम नहीं समझते हों पर कोर्ट रूम ड्रामा हिंदी सिनेमा का प्रिय जॉनर रहा है।विनोद अनुपम ने कहा कि 1960 में बनी बीआर चोपड़ा की कानून से लेकर पिंक और फिर ओएमजी 2 तक, कानून जैसी फिल्मों के तो केंद्र में ही धारा 302 है। अब जब नए दर्शक इस फिल्म को देखेंगे तो किस तरह सारी बहस को समझ पाएंगे। आज महसूस न भी करें, पर आने वाले समय में जैसे-जैसे आईपीसी धाराएं विस्मृति में चली जाएंगी। ऐसी तमाम फिल्मों को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती का सामना करना होगा।