Delhi Blast: सीपी साहब, 2923 किलो विस्फोटक कैसे आ गया शहर में, कहां थी आपकी पुलिस? Inside Story
फरीदाबाद में 2923 किलो विस्फोटक मिलने से पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। अल फलाह यूनिवर्सिटी में आतंकियों की मौजूदगी और विस्फोटक सामग्री जमा होने की जानकारी पुलिस को क्यों नहीं हुई, इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। खुफिया एजेंसियों की नाकामी और बीट प्रभारियों की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिह्नल लग रहे हैं। पुलिस ने विस्फोटक बरामद कर अपनी सफलता तो बताई, लेकिन सुरक्षा में चूक कैसे हुई, इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

फतेहपुर तगा गांव में स्थित मकान में वह कमरा, जहां अमोनियम नाइट्रेट रखा हआ था। जागरण
प्रवीन कौशिक, फरीदाबाद। सीपी साहब! 2923 किलो विस्फोटक पदार्थ रिहाेयशी इलाके तक कैसे पहुंच गया? आपकी पुलिस कहां थी? और क्या कर रही थी? सवाल यह भी है कि धौज स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी में सफेदपोश तीन आतंकी काम करते रहे, यहां रह रहे थे और विस्फोटक एकत्रित करते रहे, आपका गुप्तचर सिस्टम क्या कर रहा था? इतने दिन तक पुलिस को भनक तक नहीं लगी।
यहां तक कि यूनिवर्सिटी में तैनात डा. मुज्जमिल का दोस्त उमर तीन दिन तक छुपा रहा और आपकी पुलिस को भनक तक नहीं लगी। कुछ इस तरह के तमाम सवाल अब पुलिस के पूरे सिस्टम पर खड़े हो रहे हैं। गुप्त सूचनाओं के लिए तैनात गुप्तचर एजेंसियाें का तंत्र भी फेल साबित हो गया।
धौज और फतेहपुर तगा से अमोनियम नाइट्रेट बरामद करने के बाद अब पुलिस व गुप्तचर एजेंसियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। आखिर इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक रिहायशी इलाके तक कैसे पहुंच गया। यह अलग बात है कि पुलिस विस्फोटक बरामद कर इसे अपनी बड़ी सफलता मान रही है लेकिन इसके पीछे की कहानी सुलझाने की कोशिश नहीं की जा रही है।
वैसे भी इतना विस्फोटक एक-दो दिन में एकत्रित नहीं किया जा सकता। पता चला है कि 15 दिन से यह विस्फोटक यहां लाया जा रहा था क्योंकि अल फलाह यूनिवर्सिटी में तैनात डाक्टर ने 15 दिन की छुट्टी ली थी।
पूरी आशंका है कि इस दौरान ही विस्फोटक का प्रबंध किया गया होगा। सड़क मार्ग से ही फतेहपुर तगा तक पहुंचा जा सकता है, जाहिर है इसके लिए जिलों के तमाम नाकों को भी पार किया गया होगा और यह सुरक्षित स्थान तक पहुंच गया। पुलिस को भनक तक नहीं लगी। स्थानीय पुलिस भी सोती रही।
राजधानी से सटा जिला आतंकियों की शरणस्थली
राजधानी दिल्ली से सटे औद्योगिक शहर में आतंकी नेटवर्क से संबंध का यह पहला मामला नहीं है। यहां आतंकी पूर्व में शरण लेते रहे हैं। कई साल तक यहां रहकर प्लानिंग बनाते रहते हैं। सवाल यह है कि राजधानी से सटे हुए इस महत्वपूर्ण शहर में आतंकी आ जाते हैं, रहने लगते हैं और काम करते हैं।
हमारी गुप्तचर एजेंसियों व स्थानीय पुलिस को पता ही नहीं चलता, यह बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है। यह भी कह सकते हैं कि स्थानीय पुलिस सहित गुप्तचर एजेंसियाें पूरी तरह से विफल साबित हो रही हैं। पूर्व में ऐसे मामलों में एजेंसियों सहित स्थानीय पुलिस को भनक तक नहीं लगती है।
मूल काम छोड़ अन्य कामों में व्यस्त रहते हैं सीआईडी कर्मी
जिले के सभी पुलिस थाने सीआईडी कर्मियों के बीच बंटे हुए हैं। सीआईडीकर्मी आए दिन अन्य विभागीय कर्मचारियों के काम-काज में तो दखल देते रहते हैं लेकिन जो उनका मूल काम है, वह नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह है कि वह गुप्त सूचनाएं निकालकर सरकार तक पहुंचने में फेल साबित हो रहे हैं।
विभागीय कर्मचारियों की कार्यशैली पर नजर रखना तो ठीक है लेकिन यदि अपना काम पुलिस थानों में पुलिस आयुक्त कार्यालय से सिक्योरिटी ब्रांच से कर्मी भी तैनात रहते हैं जो अंदर की बात पुलिस आयुक्त तक पहुंचाते हैं। इंटेलिजेंसी ब्यूरो के कर्मी भी थाना स्तर पर सूचनाएं एकत्रित कर गृह मंत्रालय तक पहुंचाते हैं।
पुलिस थाना स्तर पर भी दावा किया जाता है कि बीट प्रभारी नियुक्त किए गए जो अपने-अपने इलाके के गणमान्य लोगों की सूची रखते हैं और हर पल की सूचना आती है। जिले की निगरानी के लिए इतना तंत्र है तो चूक कहां और किस स्तर पर हुई है। इस लापरवाही को अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
हमारी पुलिस व जम्मू कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्रवाई की वजह से समय रहते इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामद कर लिया। वरना इतने विस्फोटक से बड़ा हादसा हो सकता था। बाकी की जांच दिल्ली की स्पेशल सेल कर रही है। स्थानीय स्तर पर संदिग्ध जगह चेकिंग चल रही है। जो भी इस मामले में शामिल होंगे, उनकी धरपकड़ की जाएगी।
- सतेंद्र कुमार गुप्ता, पुलिस आयुक्त

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